contest 4-मात्र दिखावा हैं ये आयोजन हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला?
पखवारे का आयोजन हिंदी पखवारे का आयोजन एक लम्बे समय से हो रहा है और आगे भी होता रहेगा किन्तु ये आयोजन हिंदी को कोई समृद्ध स्थान नहीं दिला सकते क्योंकि आयोजक ही इसके प्रति वफादार नहीं हैं पखवारे में हिंदी के बारे में बढ़ चढ़कर बोलने वाले जब अपने घर पहुँचते हैं तो सबसे पहले उनके शब्द होते हैं ''where is your madam ''.बच्चे के मुंह से अगर गलती से भी पापा निकल जाये तो उसके मुहं पर जोरदार तमाचा पड़ता है और फिर उसके मुहं से डैडी ही निकलता है और कुछ नहीं ,जल्दी में अगर मोबाइल नुम्बर .बताने में वह हिंदी के एक दो बोल दे तो उसे धिक्कारा जाता है और ऐसा दिखाया जाता है कि वह बहुत नीचे गिर गया है और फिर वह भले ही हिंदी नंबर .का मोबाइल लिए हो नंबर अंग्रेजी में ही बोलेगा और ये हाल उनके घरों का है जो थोड़ी देर पहले लम्बे चौड़े भाषण देकर हिंदी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं और उसे बेचारी दिखाकर उसके प्रति सहानुभूति भी व्यक्त करते हैं किन्तु नहीं देख पाते कि आज अगर हिंदी बेचारी है तो स्वयं ऐसे लोगों के कारण जिन्हें उसे अपनाने में अपनी हेठी दिखाई देती है जो समझते हैं कि हम हिंदी बोलकर पिछड़े हुए समझें जायेंगे जबकि कहने को वे पढ़े लिखे समझदार लोग हैं और जानते हैं कि भाषा मात्र विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है और हम कोई भी भाषा बोलें किन्तु हम आधुनिक व् समझदार अपने विचारों से समझे जायंगे न कि भाषा से और हिंदी हमारी मातृभाषा है हम सभी जानते हैं कि हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति जितनी कुशलता से हिंदी में कर सकते हैं उतनी किसी और भाषा में नहीं .रूस के नागरिकों को देखिये वे जहाँ जाते हैं अपनी भाषा ही बोलते हैं उन्हें क्यूं शर्म महसूस नहीं होती ये हम ही हैं जिन्होंने अपनी भाषा को अपनी ही नज़रों में गिर लिया है क्योंकि हम हैं ही ऐसे ज़रा सा उच्च पद पर पहुँचते ही तो हम अपने माँ-बाप तक को अपने माता पिता कहने से हिचकते हैं फिर ये तो भाषा है हम इसके प्रति कैसे दूसरा दृष्टिकोण रख सकते हैं और इसलिए ये कहना पड़ता है कि ये आयोजन मात्र खाना पूर्ति हैं दिवस की और कुछ नहीं हम जिसके प्रति वफादार हैं जिसे अपनाने के लिए लालायित हैं उसके लिए ऐसे किसी दिखावे की कोई आवश्यकता नहीं और जिसके लिए हमारे मन में शर्म है उसके लिए लाख दिवस मनाएं हज़ार पुरुस्कार बांटे तब भी उसे वह स्थान नहीं दिलवा सकते जिसका वह वास्तव में हक़दार है और इसलिए इन आयोजनों से हिंदी की स्थिति में तनिक भी फर्क पड़ने वाला नहीं है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-09-2013) तुकबन्दी: चर्चामंच - 1383 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरेया-
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