बेटे-बेटी में फर्क नहीं कोई



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वह

मर गयी

जलकर

अकेली थी

बीमार थी

बुढ़ापे की ओर बढ़ रही

साठ वर्षीया लाचार थी

और खास बात ये

वो बेटों की माँ थी

बेटे

जिनके व्यस्त जीवन में

माँ की जगह ना थी

पर

वह

ज़िंदा है

लाचार है

बूढी है

पति की दौलत से

बेटी का घर बनाया

और बेटी

ने माँ को

वृद्धाश्रम भिजवाया

आज

जलकर मरती माँ

वृद्धाश्रम में बैठी माँ

देख

समझ में

यही आया

बेटे-बेटी

में नहीं

कोई

अंतर

दोनों ने

ही अलग

किया है

माँ

को

बोझ

समझकर !



.....

शालिनी कौशिक

[कौशल ]


टिप्पणियाँ

समाज का यह दुर्गुण इसे कमजोर कर देगा।

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