कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें

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''श्री कृष्ण-जन्माष्टमी ''एक ऐसा पर्व जो सारे भारतवर्ष में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है .अभी कुछ वर्षों से ये दो  दिन मनाया जाने लगा है .पंडितों ने इसे ''स्मार्त '' और ''वैष्णव ''में बाँट दिया है.अर्थात स्मार्त से तात्पर्य गृहस्थ जानो द्वारा और वैष्णवों से तात्पर्य कंठी माला धारण करने वाले साधू संतों द्वारा .

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''जो गृहस्थ जीवन  बिताते  हैं वे स्मार्त होते हैं अर्थात जो व्यक्ति जनेऊ धारण करते हैं गायत्री की उपासना करते हैं और वेद पुराण  ,धर्म शास्त्र ,समृत्ति को मानने वाले पञ्च वेदोंपासक हैं सभी स्मार्त हैं.
वैष्णव वे लोग होते हैं जिन लोगों ने वैष्णव गुरु से तप्त मुद्रा द्वारा अपनी भुजा  पर शंख चक्र अंकित करवाएं हैं या किसी धर्माचार्य से  विधिपूर्वक दीक्षा लेकर कंठी और तुलसी की माला धारण की हुई है .वे ही वैष्णव कहला सकते हैं अर्थात वैष्णव को सीधे शब्दों में कहें तो गृहस्थ से दूर रहने वाले लोग.

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सामान्य जन इसे मथुरा  और गोकुल में बाँट देते हैं अर्थात एक दिन मथुरा में कृष्ण के पैदा होने की ख़ुशी में मनाई  जाती  है और एक दिन गोकुल में कृष्ण के आगमन की ख़ुशी में मनाई जाती है.वैसे बहुत से स्थानों पर यह पर्व कई दिन चलता है और कृष्ण की छठी मनाकर ही इसे सम्पन्न किया जाता है.
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बचपन से ही इस पर्व से हमारी बहुत सी यादें जुडी हैं हमें कहीं कृष्ण जी बना दिया जाता तो एक समय तक तो हम इस लालच में खड़े रहते कि सभी आकर हमारी जय बोल  रहे हैं और हमारे चरण छू रहे हैं  किन्तु जब हम खड़े खड़े थक जाते तो एक समय आने पर   हम झांकियां देखने को अपना स्थान त्याग भाग जाते और जगह जगह कृष्ण  जन्माष्टमी की झांकियों का आनंद लेते .


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भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि  के समय वृष के चंद्रमा में हुआ था .आज देखा जाये तो कृष्ण के अनुयायी बहुत बड़ी संख्या में हैं .राम व् कृष्ण दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं और दोनों की लीलाएं अद्भुत हैं किन्तु एक मत यह भी प्रचलित है कि जहाँ राम की लीला थम जाती है कृष्ण लीला वहीँ से आरम्भ होती है राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो कृष्ण चंचल नटखट हैं और हर वह कार्य करने वाले हैं जिसे असंभव समझा  जाये.पूतना का वध जरा से बालक द्वारा ,कालिया नाग का मर्दन नन्हे से बालक द्वारा ऐसे कई कार्य हैं जो श्री कृष्ण ने किये और जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता.
आज और कल पूरे भारत वर्ष में हर्षोल्लास से कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जायेगा और यही वह अखंड आनंद है जिससे हमारा मन ओत-प्रोत हो उठता  है.
आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें
              शालिनी कौशिक

टिप्पणियाँ

कविता रावत ने कहा…
बहुत बढ़िया सामयिक जानकारी प्रस्तुति ...
आपको भीजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
कविता रावत ने कहा…
बहुत बढ़िया सामयिक जानकारी प्रस्तुति ...
आपको भीजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
ePandit ने कहा…
जन्माष्टमी की शुभकामनायें। स्मार्त होने के नाते हमने तो आज ही मना ली।

जय श्रीकृष्ण!
कविता रावत ने कहा…
बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति
आपको भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
कविता रावत ने कहा…
बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति
आपको भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
Unknown ने कहा…
अति-सुन्दर,जन्माष्टमी की सदैव ही शुभ मंगल-कामनाएं,उनको याद करने से ही एक अद्भुत अहसास होता है,ऐसे श्याम सबका मंगल करें,और भी वैष्णवों और स्मार्तों में तिथी व नक्षत्र के आधार पर भी दो कृष्ण-जन्मोत्सव गिने जाते है,वैष्णव नक्षत्र को प्रधानता देते है,जिसके कुछ नियम है और स्मार्तमें तिथि की विशेषता मनी जाती है,आचरणवतदोनों के क्लुच भेद है,परंतु वैष्णव धर्म भी गृहस्थी को लेकर चलता है,गृहस्थवैष्णव,ब्रह्मचारीरवैश्णव,वानप्रस्थीवैष्णव,सन्यासी वैष्णव,ये सब वैष्णवों के भी आश्रम है,कंठी माला धारण करना एक आचरण विशेष है,जो गृहस्थी भी कर सकते है,और करते है,कुछ आचरण और सिद्धांतों की भिन्नता ही उत्सवों की भिन्नता का कारण है.और जो जिस परंपरा का आचरण करे उसे वो मान्य है.,सभी को जय श्री कृष्ण,कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम,

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