चर्चा कार


करते हैं बैठ चर्चा,
        खाली ये जब भी होते,
कोई काम इनको करते
         मैने कभी न देखा.
...................................................
वो उसके साथ आती,
          उसके ही साथ जाती,
गर्दन उठा घुमाकर
           बस इतना सबने देखा.
...................................................
खाते झपट-झपट कर,
           औरों के ये निवाले,
अपनी कमाई का इन्हें
           टुकड़ा न खाते देखा.
....................................................
बेचारा उसे कहते,
         जिसकी ये जेब काटें,
कुछ करने के समय पर
           मौके से भागा देखा.
.....................................................
ठेका भले का इन पर,
        मालिक ये रियाया के,
फिर भी जहन्नुमों में
         इनको है बैठे देखा.
........................................................
शालिनी कौशिक
    (कौशल)
   

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को

"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Rebecca Cao ने कहा…
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