अब तो आर. एस. एस. की ही लाठी
बयान / भागवत ने कहा- भारत हिंदुओं का देश, इसीलिए दुनिया में सबसे सुखी मुसलमान यहां मिलेंगे.
देश पर जान कुर्बान करने वाले, देश का संविधान बनाने वाले, देश का नव निर्माण करने वाले जिस भावना के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगा गए उसे मिटाने के लिए आरंभ से प्रयत्नशील आर. एस. एस. को आखिर अपने इरादों में सफल होने का अवसर भारतीय जनता ने दे ही दिया और आर. एस. एस. प्रमुख मोहन भागवत को उस देश को एक धर्म विशेष का कहने का मौका मिल गया जिसके लिए वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को मद्देनजर रखते हुए देश के संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान की उद्देशिका में ही निम्न व्यवस्था की गई थी -
"हम भारत के लोग, भारत को एक ( सम्पूर्ण प्रभुत्व - संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय:
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता :
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और
(राष्ट्र की एकता और अखंडता) सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्दवारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.
और अब जब देश की नयी सरकार की जड़ें ही जहां से प्रस्फुटित हुई हैं वहां से इस देश को मात्र हिंदुओं का देश कहा जा रहा है तो ऐसे में कहा जा सकता है कि देश की वह मूल भावना जो हमारे संविधान की नींव थी, अपने पराभव काल की ओर कदम बढ़ा चुकी है ऐसे में हमारा संविधान भी नहीं टिक पाएगा इस संशय को लेकर चिंता के बादल घिर आना कुछ गलत तो नहीं कहा जा सकता है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
देश पर जान कुर्बान करने वाले, देश का संविधान बनाने वाले, देश का नव निर्माण करने वाले जिस भावना के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगा गए उसे मिटाने के लिए आरंभ से प्रयत्नशील आर. एस. एस. को आखिर अपने इरादों में सफल होने का अवसर भारतीय जनता ने दे ही दिया और आर. एस. एस. प्रमुख मोहन भागवत को उस देश को एक धर्म विशेष का कहने का मौका मिल गया जिसके लिए वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को मद्देनजर रखते हुए देश के संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान की उद्देशिका में ही निम्न व्यवस्था की गई थी -
"हम भारत के लोग, भारत को एक ( सम्पूर्ण प्रभुत्व - संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय:
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता :
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और
(राष्ट्र की एकता और अखंडता) सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद्दवारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.
और अब जब देश की नयी सरकार की जड़ें ही जहां से प्रस्फुटित हुई हैं वहां से इस देश को मात्र हिंदुओं का देश कहा जा रहा है तो ऐसे में कहा जा सकता है कि देश की वह मूल भावना जो हमारे संविधान की नींव थी, अपने पराभव काल की ओर कदम बढ़ा चुकी है ऐसे में हमारा संविधान भी नहीं टिक पाएगा इस संशय को लेकर चिंता के बादल घिर आना कुछ गलत तो नहीं कहा जा सकता है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
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