बेंच खत्म कर रही बार से सुमधुर सम्बन्ध

 


29 अक्टूबर 2024 को न्याय के इतिहास का काला दिन अगर कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि इस दिन एक न्यायाधीश द्वारा न्याय के पैरोकार अधिवक्ताओं पर न्यायालय कक्ष में ही पुलिस बुलाकर लाठीचार्ज करवा दिया जाता है, मात्र इसलिए कि वे अपने केस की जल्द सुनवाई की मांग कर रहे थे और जिसके लिए न्यायाधीश के पास समय न होने पर केस अन्य कोर्ट में स्थानांतरित किये जाने का आग्रह कर रहे थे, जो कि न्याय प्रक्रिया के नियमों में पहले से ही सम्मिलित है. 

     अभी हाल ही में न्याय के क्षेत्र में बहुत से ऐसे कार्य हो रहे हैं जिन्हें न्यायिक दृष्टि में कदापि खरे नहीं उतरते और इन्ही कार्यों में एक कार्य हुआ है "न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी का उतारा जाना" जिसे कोई भी न्यायविद सही नहीं कह सकता क्योंकि न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बांधने का मतलब निष्पक्ष न्याय से है जिसके बारे में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि - 

   "आंखों पर पट्टी बांधने का मतलब है कि न्याय समान रूप से और निष्पक्ष रूप से किया जाना चाहिए, चाहे अदालत में कोई भी खड़ा हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके सामने कौन पेश होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके सामने कौन व्यक्ति है। इसलिए, यही कारण था कि न्याय के देवता की आंखों पर पट्टी बंधी थी,”

     और यही काला अध्याय लिखा जा रहा है आज न्यायिक क्षेत्र में , न्याय मे उत्पन्न हर विसंगति का जिम्मेदार न्याय के पैरोकार अधिवक्ताओं को ठहराकर लगातार उसी बेंच के द्वारा बार को अपमानित किया जा रहा है. जिस बेंच और बार के सुमधुर सम्बन्धों की नींव से अदालती कामकाज न्याय की बुनियाद रखकर निबटाये जाते थे उसी बेंच और बार के सम्बन्धों को बेंच द्वारा बार को धक्का मारकर, लाठियां बरसा कर मुँह बंद रखवाने का प्रयास किया जा रहा है और यही होता है न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटने का परिणाम कि न्याय भेदभाव पूर्ण हो जाता है और न्यायालय कक्ष में ही न्याय के पैरोकार अधिवक्ताओं पर लाठी चार्ज किया जाता है. 

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना (शामली)

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