सोशल मीडिया की आजादी सम्भाल नहीं पा रही महिलाएं


 हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता."

   अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं. नारी की महत्ता विश्व संस्कृति में पुरुषों से ऊपर स्थान रखती है. ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने कहा था कि-" यदि आप कुछ कहना चाहते हैं, तो एक आदमी से पूछें; यदि आप कुछ करना चाहते हैं, तो एक महिला से पूछें।" इससे उन्होंने साफ साफ यह संदेश दिया है कि पुरुष कार्य करने से ज्यादा बोलते हैं किन्तु महिला चुप रहकर ही कार्य को अंजाम तक पहुंचा देती है. भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री जिन्हें आयरन लेडी ऑफ इंडिया भी कहा जाता है श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने भी कहा था कि - 

"महिलाएं केवल घर की देखभाल करने वाली नहीं बल्कि समाज की दिशा निर्धारित करने वाली होती हैं."

बच्चे को जन्म देने वाली, बच्चे को हर संकट से बचाने वाली, बच्चे को मौत से बचाने वाली, जीवन में आगे बढ़ाने वाली उसकी माँ ही होती है, यहां तक कि किसी सफल व्यक्ति के पीछे उसकी माँ या उसकी पत्नी अर्थात एक नारी का ही हाथ कहा जाता रहा है और ये सब सदियों के अनुभवों पर आधारित सत्य है. श्री रामचरित मानस के रचयिता कवि श्रेष्ठ तुलसीदास की भी यदि सफलता भक्ति काव्य में देखी जाए तो नेपथ्य में पत्नी रत्नावली ही खड़ी नजर आती हैं. जिनसे विवाह के पश्चात तुलसीदास जी उनके मायके जाने पर पत्नी प्रेम में इस कदर व्याकुल हुए कि पत्नी के मायके बहुत तेज तूफान में नदी में तैरकर पत्नी के घर पहुंचे और गहरी रात होने पर दीवार पर लटके सर्प को भी नहीं देखा और उसी पर चढ़कर पत्नी रत्नावली के कमरे में पहुंच गए, तब पति की यह दशा देख पत्नी रत्नावली उन्हें धिक्कारते हुए कहती हैं -

"लाज न आवत आपको, दौरे आयहु साथ,

धिक धिक ऐसे प्रेम को, कहा कहूँ मैं नाथ.........

और इस तरह धिक्कारते हुए रत्नावली तुलसीदास के प्रेम को प्रभु प्रेम की ओर मुड़ने के लिए संकेत दे देती हैं -

" अस्थि चर्म मय देह मम, तामै ऐसी प्रीति,

ऐसी जो श्री राम में, होत न तो भवभीती।"

अर्थात यह जो मेरा शरीर है पूरा चमड़े से बना हुआ है जो कि नश्वर है, यदि इस चमड़े से इतना मोह छोडकर राम नाम में अपना ध्यान लगाते तो आज भवसागर से पार हो जाते और भारत का इतिहास साक्षी है कि रत्नावली की इस धिक्कार ने ही पति तुलसीदास को श्रेष्ठ राम भक्त और कवि शिरोमणि बनाया. ये तो मात्र एक उदाहरण है महिला की श्रेष्ठता का, भारतीय और विश्व इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलेंगे, मिल भी रहे थे किंतु जब से यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया से कमाई का जरिया महिलाओं को मिला है,कुछ चंद महिलाओं ने पूरे नारी समाज के सम्मान को दांव पर लगा दिया है, नारी के चरित्र को हँसी मज़ाक का विषय बना दिया है.

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि - "महिलाओं की स्थिति देखकर ही किसी समाज की सभ्यता का मापदंड किया जा सकता है." और आज हम समाज में गिरते सभ्यता के मापदंड को देखकर कह सकते हैं कि महिलाओं की स्थिति गिरती जा रही है और यह दुख और क्षोभ की बात है कि इसका मुख्य कारण गिरती जा रही महिलाओं की नीयत और मानसिकता है. पहले तो समाज ही महिलाओं को सम्मानित दर्जा देने से बचता रहा है जिसे नारी शक्ति द्वारा अपनी श्रेष्ठता के बल पर हासिल किया गया किन्तु आज जबकि देश की सर्वोच्च न्याय संस्था माननीय उच्चतम न्यायालय स्त्री को उसका सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत है ऐसे में यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, प्लेटफॉर्म आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्वयं महिला अपनी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा रही है.

सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य विवाह में भरण पोषण के अधिकार को तो बरकरार रखा ही, साथ में बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्ण खंडपीठ द्वारा दिए गए निर्णय में नारी के प्रति प्रयोग किए गए शब्दों को स्त्री-द्वेषपूर्ण माना.न्यायालय ने टिप्पणी की, "भारत के संविधान की धारा 21 के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को "अवैध पत्नी" या "वफादार रखैल" कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इन शब्दों का उपयोग करके किसी महिला का वर्णन करना हमारे संविधान के लोकाचार और आदर्शों के विरुद्ध है। कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला का उल्लेख करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता, जो अमान्य विवाह में पक्षकार है। दुर्भाग्य से, हम पाते हैं कि हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले में ऐसी आपत्तिजनक भाषा का उपयोग किया गया। ऐसे शब्दों का प्रयोग स्त्री-द्वेषपूर्ण है। बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच द्वारा बनाया गया कानून स्पष्ट रूप से सही नहीं है और यह भी कहा कि न्यायिक चर्चा में महिलाओं की गरिमा को बरकरार रखा जाना चाहिए. "

माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में महिलाओं के सम्मान को लेकर व्यक्त की गई यह चिंता महत्वपूर्ण है किन्तु अन्य कोई महिलाओं का सम्मान तब ही तो करेगा जब महिलाओं में स्वयं के लिए कोई आत्म सम्मान की भावना, इच्छा दिखाई देती हो, जो कि वर्तमान में कहीं भी नजर ही नहीं आती. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर महिला व्लॉगस में से अधिकांश उसकी पैसे पैसे की भूख को ही दिखा रहे हैं. जिस नृत्य को देखने के लिए पहले लोग बदनाम गलियों की, थिएटर की, सिनेमाघरों की खाक छानते फिरते थे, अब वे सब मोबाइल पर इन्टरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन दिनों एक लड़की में व्यू बढ़ाने की हवस इस हद तक बढ गई कि बिस्तर पर बीमार पड़ी मां को छोड़कर लड़की माँ की देखभाल करने के बजाय कमरे के भीतर ठुमके लगाने लगी, रील बनाने लगी,और भी ज्यादा बेशर्मी तब हो गई जब व्यू बढ़ाने के लिए लड़की शमशान में ही डांस करने पहुंच गई. श्मशान घाट जहां पहुंचकर आदमी की भौतिक वादी प्रवृत्ति पर कुछ समय के लिए अंकुश ही लग जाता है और सामन्यतः हिन्दू स्त्री के लिए तो हिन्दू धर्म में यह स्थान लगभग अर्थी पर ही जाने के लिए मान्यताओं के अनुसार तय है, उस स्थान पर इस तरह नाच गाना करना चकित करता है. और डांस के लिए गाने का चयन, वह भी अस्थियों भरे कलश के आगे इससे भी अधिक चौंकाने वाला है कि लव तुझे लव गाना अस्थियों के सामने नाचना हिन्दू धर्म की मान्यताओं को धक्का पहुंचाने के लिए काफी है.पैसे कमाने के लिए लड़कियां, महिलाएं खुले आम नाच रही हैं पति को नचा रही हैं, जो नृत्य घर के लोगों के काफी मिन्नतें करने के बाद भी करने को नव वधू तैयार नहीं होती थी आज रील बनाने के लिए बैंड बाजे तक के सामने खुलेआम कर रही है. पैसे की भूख महिलाएं किस तरह मिटा रही हैं इसके कुछ दृश्य निम्न हैं -

*दृश्य-1-पत्नि को हक है पति का पैसा खर्च करने का.

*दृश्य-2-पत्नि पति की चोरी से उसका बटुआ निकाल रही है और उसमें से रुपये चुरा रही है.

*दृश्य-3-पति पत्नि को बाईक पर ससुराल लेकर जा रहा है तो वह बाईक पर पति से दूर बैठती है तो पति उसे पास बैठने के लिए कई बार पैसे देता है और वह पैसे लेकर मुस्कराती हुई पति से चिपककर बैठती है.

*दृश्य-4-बिस्तर पर बीमार मां पड़ी है और बेटी रील बना रही है ‘नमक इश्क का’ गाना बजाकर अस्पताल के कमरे में ठुमके लगा रही है. 

*दृश्य-5-शमशान घाट पर लड़की अस्थियों के कलश के सामने लव तुझे लव मैं करती …गाने पर डांस कर रही है. 

क्या दिखाना चाह रही हैं आज की ये आधुनिक महिलाएं? जिस गंदी सोच से माननीय उच्चतम न्यायालय तक उन्हें उबारना चाह रहा है उस दूषित सोच को ये मात्र कुछ हज़ार-लाख रुपये बटोरने के लिए अपने व्लॉगस के व्यू, लाइक, कमेन्ट बढ़ाने के लिए अपने ऊपर सहन कर रही हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन कुछ महिलाओं के चेनल पर कमेन्ट सेक्शन को देखकर ऐसा लगने लगा है कि देश की सभ्यता संस्कृति का पतन काल अब शायद करीब है, कलियुग का काल शायद अब आने ही वाला है. आज रणवीर इलाहाबादिया के गंदे कमेंट को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर, समाज में, राजनीतिक हल्कों में हंगामा मचा हुआ है किन्तु भद्दे और गंदे कमेंट करने वाले केवल रणवीर इलाहाबादिया ही नहीं थे उनके साथ एपिसोड में एक लड़की भी बैठी थी जिसने भी वहां बेहद ही आपत्तिजनक शब्द बोले थे,अपूर्वा नाम की उस लड़की ने मां के प्राइवेट पार्ट पर ही बेहद गंदा और अश्लील कमेंट किया था,क्या कहा जाए इन नारी शक्तियों को? क्या इन्हें शक्ति की श्रेणी में रखा जाना चाहिए जो स्वयं महिला होकर महिला पर और उससे भी अधिक माँ पर इतना भद्दा बोल रही है और नारी के सबसे बड़े गहने शर्म की सारी सीमाएं ही लांघ रही हैं. 

       ऐसे में यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जल्द ही भारत में इन्हें लेकर नियम बनाने होंगे या फिर भारतीय सरकार को देश की संस्कृति को बिगड़ने से बचाने के लिए इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के चलने पर ही पूर्ण रूप से विराम लगाने होंगे.

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना (शामली)




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