धरती माँ की चेतावनी पर्यावरण दिवस पर



दुश्मन न बनो अपने ,ये बात जान लो ,
कुदरत को खेल खुद से ,न बर्दाश्त जान लो .

चादर से बाहर अपने ,न पैर पसारो,
बिगड़ी जो इसकी सूरत ,देगी घात जान लो . 

निशदिन ये पेड़ काट ,बनाते इमारते ,
सीमा सहन की तोड़ ,रौंदेगी गात जान लो .

शहंशाह बन पा रहे ,जो आज चांदनी ,
करके ख़तम हवस को ,देगी रात जान लो .

जो बोओगे काटोगे वही कहती ''शालिनी ''
कुदरत अगर ये बिगड़ी ,मिले मौत जान लो .

      शालिनी कौशिक 
           [कौशल ]

टिप्पणियाँ

जो बोओगे काटोगे वही कहती ''शालिनी ''
कुदरत अगर ये बिगड़ी ,मिले मौत जान लो .
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recent post : ऐसी गजल गाता नही,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार (04-06-2013) को तुलसी ममता राम से समता सब संसार मंगलवारीय चर्चा --- 1265 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
sushila ने कहा…
एक सार्थक रचना के लिए बधाई !
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
मानव के विकास की कहानी प्रकृति के साथ उसके संघर्षों की कहानी है-जहां प्रकृति ने राह दी वहीं वह आगे बढ़ गया और जहां प्रकृति की विषमताओं ने रोका वहीं रुक गया।
लेकिन आज मानव प्रकृति की चेतावनी को दरकिनार करके प्रकृति का दोहन करने लगा है,'सागर से आकाश की ओर' जैसी योजनाओं की विफलता से भी सबक नहीं सीखा गया है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं,नदियां व झीलें सिकुड़ रहे है। मानव ही मानव जीवन को नष्ट करने की ओर बढ़ रहा है-मानवता तो नष्ट कर ही चुका है।
मानवता को जाग्रत करने हेतु इस प्रकार की रचनाएँ प्रेरक एवं सराहनीय हैं।
बहुत सुन्दर और प्रभावी।
दिल की आवाज़ ने कहा…
बेहतरीन रचना शालिनी जी ... बधाई
Tamasha-E-Zindagi ने कहा…
आपकी सर्वोत्तम रचना को हमने गुरुवार, ६ जून, २०१३ की हलचल - अनमोल वचन पर लिंक कर स्थान दिया है | आप भी आमंत्रित हैं | पधारें और वीरवार की हलचल का आनंद उठायें | हमारी हलचल की गरिमा बढ़ाएं | आभार
सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ !!
Anita ने कहा…
पर्यावरण दिवस पर सुंदर प्रस्तुती..
निसंदेह प्रकृति सबसे शक्तिशाली होती है
चेतावनी भरे शब्द ... बेहतरीन

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