लिव इन रिलेशनशिप को कानूनन रोका जाये ..

लिव इन रिलेशनशिप को कानूनन रोका जाये ..

लिव इन रिलेशनशिप अर्थात सम्बन्ध में रहना किन्तु एक ऐसा सम्बन्ध या रिलेशनशिप जिसे जन्म देने वाले मात्र दो लोग एक नारी एक पुरुष उनके न पीछे कोई न आगे कोई जबकि भारतीय समाज एक ऐसा समाज जहाँ ये सम्बन्ध बड़ो के ,मित्रों के अपने बहुत से अपनों के सहयोग से उत्पन्न होता है ,विशेषकर नारी व् पुरुष का ये रिश्ता सामाजिक समझदारी ,पारिवारिक सहयोग के आधार पर निर्मित होता है क्योंकि यहाँ ये रिश्ता मात्र एक नारी व् पुरुष का संयोग न होकर दो परिवारों ,दो सभ्यताओं का मिलन माना जाता है .
किन्तु आज ये दुर्भाग्य है भारत का कि यहाँ पाश्चात्य सभ्यता अपने पैर पसार रही है और उसी का असर है पहले 'लव मैरिज 'जैसी विसंगतियां यहाँ के समाज में आना और उसके बाद लिव इन रिलेशनशिप का यहाँ भी पैर पसारना ,
उस देश में जहाँ सीता जैसी आर्य पुत्री जो सर्व सक्षम हैं ,भूमि से ऋषि मुनियों के रक्त से उत्पन्न आर्य कन्या हैं ,तक श्री राम को अपने वर के रूप में पसंद करते हुए भी अपने पिता के प्रण को ऊपर रखती हैं और माता गौरी से कहती हैं -
''मोर मनोरथ जानहु नीके ,बसहु सदा उर पुर सबही के ,
कीनेउ प्रगट न कारन तेहि ,अस कही चरण गहे वैदेही .''
अर्थात मेरी मनोकामना आप भली-भांति जानती हैं ,क्योंकि आप सदैव सबही के ह्रदय मंदिर में वास करती हैं ,इसी कारण मैंने उसको प्रगट नहीं किया ,ऐसा कहकर सीता ने उमा के चरण पकड़ लिए .[बालकाण्ड ]
आज सीता जैसे आदर्श की कल्पना ही की जा सकती है हालाँकि सीता जैसी आदर्श हमें ढूंढने पर आज भी मिल जाएँगी किन्तु लिव इन रिलेशनशिप जैसी बुराई की आलोचना तो स्वयं ऐसी बुराई के अपनाने वालों के ही कार्यों द्वारा सरलता से की जा सकती है उसके लिए कोई सूक्ष्मदर्शी लेकर बुराई ढूंढने की ज़रुरत नहीं है और न ही सीता राम के आदर्श से इसकी तुलना के क्योंकि ये तुलना तो साफ़ साफ़ इनके आदर्श को गिराना ही कहा जायेगा क्योंकि ये तुलना तो भगवान की शैतान से और अच्छाई की बुराई से तुलना के सामान होगी जो कि सम्भव ही नहीं है .
कहते हैं कि लिव इन रिलेशनशिप अपराध या पाप नहीं है किन्तु ये वास्तव में इन दोनों ही श्रेणी में आ जाता है क्योंकि ये सम्बन्ध ,यदि इसे स्थापित करने वाले स्वयं के गिरेबां में झांककर देखें तो कभी भी खुलेआम स्थापित नहीं करते और इसके दोनों सदस्य ऐसे सम्बन्ध अपने अपने घरों से बहुत अलग अलग रहकर स्थापित करते हैं .ये तो विपाशा बासु व् जॉन अब्राहम जैसी बॉलीवुड हस्तियां ही हैं जो इस सम्बन्ध को खुलेआम निभा रहे थे और उनका ये सम्बन्ध आज टूट चुका है और ये फ़िल्मी बातें ही हैं कि आज उनके सम्बन्ध कहीं और स्थापित हो रहे हैं और ये किसी कानूनी अधिकार की भी इस समबन्ध में मांग नहीं कर रहे किन्तु सामान्य नारी पुरुष के साथ यदि ऐसा हो जाये तो वे कहीं के भी नहीं रहते .
सामान्य नारी पुरुष एक दुसरे के बारे में जानते नहीं कि जिससे वे जुड़ रहे हैं उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है और एक अज्ञानता भरी सामायिक प्रेम रस में डूबी ज़िंदगी गुज़ारते रहते हैं जो बाद में जीवन की असलियत देखकर जहरीली हो जाती है जब बॉलीवुड हस्ती तक इस मामले में बेवकूफ बन जाती हैं तो सामान्य की तो बात ही क्या करें हेमामालिनी जैसी अभिनेत्री तक को शादी के बाद पता चलता है कि धर्मेन्द्र शादीशुदा और सनी ,बॉबी जैसे बड़े बड़े बच्चों के बाप हैं ,जो समझौता कर वे रह रही हैं जिन कानूनी अधिकारों की अवहेलना कर वे रह ली हैं एक सामान्य नारी के वश की बात नहीं है .
जिस देश में कानून द्विविवाह को अपराध मानता है ,दूसरी पत्नी की कानून की नज़र में कोई स्थिति नहीं है वहाँ सबसे छिपाकर रखे जाने वाले इस संबंध की सुरक्षा के लिए कानून की अग्रणी संस्था की चिंता व्यर्थ का कदम है जबकि इस सम्बन्ध पर पूरी तरह से रोक लगायी जानी चाहिए क्योंकि ये संबंध मात्र आकर्षण के आधार पर बनाया जाता है ,दोनों में से कोई भी इस स्थिति में नहीं होता कि एक दुसरे की स्थिति जाने ,दोनों को अपने परिवार का कोई सहयोग मिला हुआ नहीं होता और न ही कोई सामाजिक स्वीकृति ,जैसे विवाह की निश्चित तिथि होती है ,गवाह होते हैं वैसे इसका कोई प्रमाण नहीं होता इसलिए ये संबंध कभी भी हमारे समाज में विवाह से ऊपर स्थान नहीं पा सकता और कभी भी ऐसी खतरे की स्थिति में आ जाता है कि इसका खामियाजा नारी को ही भुगतना होता है या फिर ऐसे सम्बन्ध से उत्पन्न संतान को .ये सम्बन्ध हमारे समाज में क्या विकृति पैदा करेगा ये न्यायालय के निम्न आदेश में भी देखा जा सकता है -
'लिव इन' पर कोर्ट ने सुनाया अनोखा फैसलाcourt ruled Unique decision on live in partnership
मध्य प्रदेश के खंडवा में एक लोक अदालत ने अनोखा फैसला सुनाया है। अदालत ने याचिकाकर्ता व्यक्ति से पत्नी और लिव इन पार्टनर के साथ एक बराबर वक्त गुजारने को कहा है।
इसके तहत अदालत ने कहा कि व्यक्ति को अपनी पत्नी और लिव इन के साथ 15-15 दिन व्यतीत करना चाहिए।
अप्ने आदेश में जज गंगा चरण दुबे ने शनिवार को कहा कि पत्नी, लिव इन पार्टनर समेत तीनों एक ही छत के नीचे रहें और व्यक्ति आपसी सहमति से 15-15 दिन इन दोनों के साथ समय व्यतीत करे।[अमर उजाला से साभार ]
अतः इस संबंध को यदि कानून इस संबंध में बनाये जाने की कोशिश की ही जानी है तो इसे कानूनन रोका जाना चाहिए क्योंकि ये केवल नारी या उससे उत्पन्न संतान के लिए ही नही अपितु परिवार ,समाज और हमारे देश की संस्कृति के भी विरुद्ध है जो वसुधैव कुटुंबकम की शिक्षा देती है जबकि ये उसे ''एक नारी व् एक पुरुष ''के संबंध में विभक्त कर देती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
shalini jee,samya ke anusar duniya ke bahav ko rokna sambhav nahi hai parantu nari ke hiton ki raksha ke liye avashyak kanoon banaye jaayen to adhik uchit hoga ,shayad aap is bat se sahamat n hon.
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
रोकना मुश्किल है. आजकल देसी लोग अंग्रेज़ बनना चाहते हैं.
रविकर ने कहा…
चढ़े देह पर *देहला, देहात्मक सिद्धांत |
लेशन लिव-इन-रिलेशनी, जीने के उपरान्त |

जीने के उपरान्त, सोच क्या खोया पाया |
हरदम रहे अशांत, स्वार्थ सुख आगे आया |

त्याग समर्पण छोड़, ओढ़ ले चादर रविकर |
है समाज का कोढ़, वासना चढ़े देह पर ||
*मद्य
Dharmesh ने कहा…
It has good and bad. We should not detect terms to others. Marriage are not just meant for sex and so the Ladies. Live in relationship is possible only when Women are empowered. "Mistress" and "Live-in-relation" are different & so, we should not aware of these things. In one, the women is more like Slave while in other the woman is empowered & posses equal right as of man:
One Blog post: Why Live-in relation not possible in India ?
http://merisoc.blogspot.fr/2013/10/why-live-in-relation-not-possible-in.html
रोकना आसान न होगा .. पर कोशिश होनी चाहिए .... गति धीमी हो तो भी अच्छा होगा ...
लीव इन रिलेसन से उत्पन्न संतान नाजायज नहीं होंगे ? उन्हें समाजमें किस दृष्टि से देखेंगे ? इन बातों को भी ध्यान रखकर इसे रोकने के लिए एक इमानदार कोशिश होना चाहिए !
नई पोस्ट वो दूल्हा....
लेटेस्ट हाइगा नॉ. २
Kailash Sharma ने कहा…
समय के बहाव को रोकना कठिन है, पर प्रयास अवश्य होना चाहिए...जब तक हमारी सोच में बदलाव नहीं आता, केवल क़ानून से कुछ नहीं होगा..उत्तरदायित्वों से भागती पीढ़ी को रोकना बहुत कठिन है...

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