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''तुमने सुना नीलम की बेटी नूतन ने ब्रह्मण होते हुए जाट से शादी कर ली ''कमलेश के यह कहते ही सरोज ने हाथ से मुहं छिपाते हुए कहा ''अरे कौन नई बात है उनके तो घर का ढंग ही बिगड़ा हुआ था लड़कों का तो उनके घर पर पहले ही आना-जाना था ''.सुनकर कमलेश ने कहा पर ऐसे को तो बिरादरी से बाहर कर देना चाहिए ;हाँ बहन होना तो ऐसा ही चाहिए पर आज के समाज में ऐसा करता कौन है ,हम तो बस यह कर सकते हैं की हम उससे बोलचाल बंद कर दें और मतलब ख़त्म कर दें.सरोज कमलेश से यह कह ही रही थी कि सरोज के बेटे ने एक शादी का कार्ड आकर माँ के हाथ में थमा दिया .कार्ड हाथ में आते ही सरोज चहक उठी कहने लगी कमलेश सुनो,''कल शाम को तैयार रहना ,इंजीनियर साहब की बेटी कीशादी का कार्ड मिल गया है तुम्हारा भी तो आ गया होगा ,चलना है.''
माँ के मुहं से यह सुनते ही बेटा जो खड़ा हुआ माँ की ख़ुशी देख रहा था बोला-'माँ !इंजीनियर साहब तो वैश्य हैं और उनकी बेटी भी जाट लड़के से शादी कर रही है और आप वहां जाने की आंटी से बाते कर रही हैं और अभी तो आप नीलम आंटी की बेटी के जाट लड़के से शादी करने पर बहिष्कार की व् मतलब ख़त्म करने की बातें कर रही थी .''सुनकर सरोज बोली -''बेटा !तू नहीं समझता,अभी छोटा है न,ये सब बातें गरीबों के लिए की जाती है इंजीनियर साहब बड़े आदमी हैं ,और बड़े लोगों में ये सब चलता ही रहता है ,उनमे कोई बुराई नहीं है और मुझे सिखाने की जरूरत नहीं है ''.यह कहते हुए कमलेश से कल चलने का वायदा ले लिया .
टिप्पणियाँ
सामाजिक मापदंड भी लक्ष्मी माता ही तय करती है..
सुन्दर भाव समेटे हुए सुन्दर लघुकथा के लिए आभार
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
मतलब यह कि एक आम आदमी को तो सिर्फ दबना ही है.सच भी यही है.
बहुत अच्छा लिखा आपने.
सादर
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
इसी विचार पर मैने भी अपने ब्लॉग शिवमेवम् सकलम् जगत में पोष्ट किये लेख <a href="http://ddmishra.blogspot.com/2011/05/blog-post_02.html> ...लोकतंत्र सी आत्मा को। </a> में निम्न पंक्तियों में व्यक्त किया है।
स्वयं मिथ्याचार पर दूजा
सची हो , यह बडा पाखंड है।
सुविधानुसार नियमविग्रह
यह बडा ही प्रवंच है
इसी विचार पर मैने भी अपने ब्लॉग शिवमेवम् सकलम् जगत में पोष्ट किये लेख ...लोकतंत्र सी आत्मा को। में निम्न पंक्तियों में व्यक्त किया है।
स्वयं मिथ्याचार पर दूजा
सची हो , यह बडा पाखंड है।
सुविधानुसार नियमविग्रह
यह बडा ही प्रवंच है