बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया .


 

पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
खुशियों का बवंडर पल भर में थम गया .


चाहत थी बेटा आकर इस वंश को बढ़ाये ,
रखवाई का ही काम उल्टा सिर पे पड़ गया .

बेटा जने जो माता ये है पिता का पौरुष ,
बेटी जनम का पत्थर माँ के सिर पे बंध गया .


गर्मी चढ़ी थी आकर घर में सभी सिरों पर ,
बेडा गर्क ही जैसे उनके कुल का हो गया .

गर्दिश के दिन थे आये ऐसे उमड़-घुमड़ कर ,
बेटी का गर्द माँ को गर्दाबाद कर गया .

बेठी है मायके में ले बेटी को है रोटी ,
झेला जो माँ ने मुझको भी वो सहना पड़ गया .


न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

सदियाँ गुजर गयी हैं ज़माना बदल गया ,
बेटी का सुख रुढियों की बलि चढ़ गया .


 सच्चाई ये जहाँ की देखे है ''शालिनी ''
बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया .
      शालिनी कौशिक
           [कौशल]

शब्दार्थ-गर्दाबाद-उजाड़ ,विनाश



टिप्पणियाँ

सोच को बदलने केलिए महिलायों को ही पहल करना पड़ेगा .कन्या को जनम देने वाली बहु के पीछे यदि उसकी सास चट्टान की तरह उसका सहारा बने तो समाज में किसी की हिम्मत नहीं होगी बहु को कुछ कहने की. आपकी गजल अच्छी है
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Anita ने कहा…
घोर आश्चर्य है..बेटी को जन्म देने वाली खुद भी तो बेटी है यह कैसे भूल जाती है..
Rajendra kumar ने कहा…
बहुत ही सुन्दर,एव सार्थक अभिव्यक्ति।
सही कहा है लेकिन सोच परिवर्तित हो रही है !!
एक प्रकृति, मै भी हिस्सा हूँ..
न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .

न मायका है अपना ससुराल भी न अपनी ,
बेटी के भाग्य में प्रभु कांटे ही भर गया .

न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .
इसपर पहले भी टिप्पणी दे चुके
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न करता कदर कोई ,न इच्छा है किसी की ,
बेटी का आना माँ को ही लो महंगा पड़ गया .......भावपूर्ण कविता, पर इतना दुखी न हों। हम आपके साथ हैं।
Shalini kaushik ने कहा…
aabhar sweekar karne ke liye
Shalini kaushik ने कहा…
kuchh parivartan to aa hi raha hai .
Shalini kaushik ने कहा…
koi maa nahi chahti jo maine jhela vah meri santan jhele isliye beti maa ko bhi buri lagti hai .
Shalini kaushik ने कहा…
विकेश जी मैं जिस घर में हुई हूँ वहां मुझे कभी भी लड़की होने का दुःख नहीं झेलना पड़ा ये तो समाज में लड़कियों की स्थिति है जिस पर ये उद्गार ह्रदय से प्रगट हो जाते है.आपके साथ के लिए हार्दिक धन्यवाद्
Aditi Poonam ने कहा…
सार्थक रचना ,मानसिकता तो बदल रही है -
कोशिशें जारी रखनी होंगी
Kailash Sharma ने कहा…
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..पर अब समय बदल रहा है और लोगों के विचारों में परिवर्तन आ रहा है..
मार्मिक ... नारी की दुविधा ओर कदम कदम पर होने वाली व्यथा को रक्खा है ...
Ankur Jain ने कहा…
वर्तमान की यथार्थ तस्वीर को व्यक्त करती रचना।।।
दुख हुआ पढ़कर...
नादान हैं, अभागे हैं.... जिनके घर में बेटियों के बारे में ऐसे विचार उठते हैं....
~सादर!!!

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