अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .
तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .
फराखी इनको न भाए ताज़िर हैं ये दहशत के ,
मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं .
न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे ,
तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं .
इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को ,
रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं .
अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये ,
अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,
मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,
शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,
अज़ाब -पीड़ा-परेशानी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
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रविवार, 10 फरवरी 2013
ये जीवित पुतले नुमा आदमी कौन है ?प्रधानमंत्री है?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .हमारी महत्वपूर्ण धरोहर बन जातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .उत्प्रेरक का काम करतीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .नव सृजन की आंच बनतीं हैं .
आशा
गौर कीजिएगा....
गुज़ारिश : ''........तुम बदल गये हो..........''
--- ये जमीं लेगी बदला ऐसे हैवानों से ..
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