सच ! तू तो बदल गया .

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पड़ोस में आंटी की सुबह सुबह चीखने की आवाज़ सुनाई दी ....
''अजी उठो ,क्या हो गया आपको ,अरे कोई तो सुनो ,देखियो क्या हो गया इन्हें ...'' हालाँकि हमारा घर उनसे कुछ दूर है किन्तु सुबह के समय कोलाहल के कम होने के कारण उनकी आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी ,मैंने ऊपर से आयी अपनी बहन से कहा कि ''आंटी ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही हैं लगता है कि अंकल को कुछ हो गया है ,वैसे भी वे बीमार रहते हैं ''वह ये सुनकर एकदम भाग ली और उसके साथ मैं भी घर को थोडा सा बंदकर भागी ,वहाँ जाकर देखा तो उनके घर के बराबर में आने वाले एक घर से दो युवक उनकी सहायता के लिए आ गए थे किन्तु अंकल को जब डाक्टर को दिखाया तो वे हार्ट-अटैक के कारण ये दुनिया छोड़ चुके थे किन्तु आंटी के बच्चे दूर बाहर रहते हैं और उनके आने में समय लगता इसलिए उन्हें यही कहा गया कि अंकल बेहोश हैं .उनके पास उनके घर का कोई आ जाये तब तक के लिए मैं भी वहीँ रुक गयी .बात बात में मैंने उनसे पूछा कि आंटी ये सामने वाली आंटी क्या आजकल यहाँ नहीं हैं ?मेरा प्रश्न सुनकर उनकी आँख भर आयी और वे कहने लगी कि यहीं हैं और देखलो आयी नहीं .मैं भी आश्चर्य मैं पड़ गयी कि आखिर कोई इतना मतलबी कैसे हो सकता है ?आंटी जिस तरह से चिल्ला रही थी उससे कोई भी इंसान यहाँ आकर उनकी मदद कर सकता था और उस पर वह, जिसके हाथ टूटने पर कितने ही दिन अपनी बेटी को भेजकर उन्होंने खाना बनवाया था,वह ऐसा करे तो इंसानियत से भरोसा तो उठता ही है .
आज मतलब इतना हावी है कि हर जगह आदमी ये देखकर मदद को आगे बढ़ रहा है कि मेरा यहाँ से क्या मतलब हल हो सकता है यदि कोई मतलब हल होता है तो वह पत्थर भी ढो लेगा और यदि मतलब हल न होता हो तो सुपरिचितों से भी अनजानों जैसा व्यवहार करने में संकोच नहीं करेगा.ऐसा नहीं है कि ये कोई आज की बात है ये पिछले काफी वर्षों से चल रहा है .एक लड़की जो हमसे पिछली कक्षाओं की किताबें ले लेती थी वह जब उसे किताब लेनी होती थी तो जब जब हमारे सामने से गुज़रती चाहे एक दिन में दस बार तो मुस्कुराकर ,सर झुकाकर नमस्ते करती थी और जब किताब ले लेती थी तब सामने से ऐसे निकल जाती थी जैसे हमें जानती ही न हो .
यही नहीं मतलब आदमी को कितना विनम्र बनाता है इसका बहुत सुन्दर उदाहरण ये है कि आपसे ३०-४० साल बड़ा आदमी भी आपको ''बेटी नमस्ते ''कहता है भले ही उसे आपके पिता से काम हो ,
मतलब आज १० -१० साल के बच्चों में नज़र आने लगा है जब उन्हें कुछ चाहिए हो तो मुस्कुराना शुरू और नहीं तो ऐसे देखते हैं जैसे हमने उनका सब कुछ लूट लिया हो .
आज मतलब की इस दुनिया पर बस यही कहा जा सकता है -
''देख तेरे संसार की हालत
क्या हो गयी भगवान,
कितना बदल गया इंसान .''



शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

दूसरे का कृतज्ञ होने में लोगों के अपने अहं को चोट पहुँचती है इसलिये ....
अपना और सिर्फ अपना फायदा या मतलब सिद्ध होना चाहिए :-(
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-10-2017) को
"दिया और बाती" (चर्चा अंक 2773)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'


Sudha Devrani ने कहा…
इसीलिए कहते हैं मतलबी दुनिया....
बहुत खूब....
'एकलव्य' ने कहा…
अत्यंत विचारणीय ! एवं मंथन योग्य विषय ! विचार करना होगा !
Rajesh Kumar Rai ने कहा…
आज के हालात पर बिल्कुल सटीक प्रस्तुति !

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