वैमनस्य पर लगाम लगाएं जैन धर्म अनुयायी
कल को देश भर में बकरीद का त्योहार मुसलमान धर्मावलम्बियों द्वारा पूरी अकीदत व श्रद्धा से मनाया जाएगा, आजकल देश भर में इस त्यौहार को मनाने वाले बहुत खुशी से इसकी तैयारियों में जुटे हुए हैं, ऐसे में एक समाचार इनकी खुशियों पर विराम लगाने आ जाता है कि मेरठ के 28 जैन मंदिरों में लाखों की संख्या में काटे जाने वाले पशुओं की आत्मा की शांति के लिए णमोकार मंत्र गूंजेगे।
हर धर्म की अपनी मान्यताएं हैं अपने विधान हैं और अनुयायी संबंधित धर्म की मान्यताओं पर ही चलते हैं और अपने अनुसार उन सभी परंपराओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं जो उनके अनुसार धर्म के पालन के लिए ज़रूरी हैं और इस्लाम धर्म में भी बकरीद को लेकर बहुत सी मान्यताएँ हैं -
मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है. इसमें बकरे की कुर्बानी दी जाती है. लेकिन कम लोगों को ही यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है. लेकिन यह रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है.
दरअसल, बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है. यह कहानी है अलैय सलाम नाम के एक आदमी की. अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा.
सलाम ने अल्लाह की बात मानकर इब्राहीम अलैय सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे. तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया.
इस तरह सलाम के हाथों मेमने के जिबह होने के साथ पहली कुर्बानी हुई. अल्लाह इस कुर्बानी से राजी हो गए. तभी से बकरीद मनाई जाने लगी.
इस तरह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक मान्यता को देखते हुए कुर्बानी अल्लाह की खुशी व रजामंदी के लिए की जाती है ऐसे में अन्य किसी भी धर्म द्वारा इनके धर्म की मान्यता पर अपने धर्म की मान्यता के अनुसार कुछ भी करना वैमनस्य की भावना भड़काना ही कहा जाएगा और जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा इस कुर्बानी के लिए अपने मंदिरों में णमोकार मंत्र किया जाना और उसका प्रचार किया जाना इस्लाम धर्म के उसूलों पर उंगली उठाना ही माना जाएगा।
वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना वाले इस देश में अगर इसी तरह जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा उंगली उठाई जाती रही तो इसके घेरे में एक दिन सनातन हिन्दू धर्म भी आएगा क्योंकि हिन्दू धर्म में भी देवी के समक्ष बलि का विधान है, जो कि वर्तमान युग में कुछ पिछड़ी हुई जातियों तक सीमित हो गया है लेकिन इसके कारण यह नहीं कहा जा सकता कि हिन्दू धर्म इस मान्यता से अलग हो गया है.
आज यह देश अपने मूल्य छोड़ रहा है. दूसरे के धर्म का आदर और दूसरे धर्मावलम्बी का सम्मान इस देश के जन जन द्वारा हृदय से किया जाता रहा है और यही कारण है कि यहां कितनी ही सभ्यता व संस्कृति समा गई हैं और अपनी पहचान बनाए रखते हुए जीवित भी रही हैं. और ये सच है कि आज यहां हिन्दुत्व वादी सरकार है किन्तु ये देश मात्र हिंदुओं का नहीं है. हिन्दू व मुसलमान इस देश की दो आंखें हैं अगर इस तरह की गतिविधियों द्वारा एक आंख को फोड़ने का कार्य किया जाएगा तो इसमे कोई शक नहीं है कि देश अंधा नहीं तो काना तो होकर ही रह जाएगा. इसलिए ऐसी गतिविधियों पर हम जितनी जल्दी हो सके अंकुश लगाने के लिए प्रयास करें और अपने मुस्लिम भाई बहनों की खुशियों में शामिल होते हुए उन्हें तहे-दिल से बकरीद की मुबारकबाद दें.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
हर धर्म की अपनी मान्यताएं हैं अपने विधान हैं और अनुयायी संबंधित धर्म की मान्यताओं पर ही चलते हैं और अपने अनुसार उन सभी परंपराओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं जो उनके अनुसार धर्म के पालन के लिए ज़रूरी हैं और इस्लाम धर्म में भी बकरीद को लेकर बहुत सी मान्यताएँ हैं -
मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरा ईद यानी कि बकरीद आती है. इसमें बकरे की कुर्बानी दी जाती है. लेकिन कम लोगों को ही यह मालूम होगा कि बकरीद पर बकरे के अलावा ऊंट की कुर्बानी देने का भी रिवाज है. लेकिन यह रिवाज देश और दुनिया के सिर्फ कुछ ही इलाकों में निभाया जाता है.
दरअसल, बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक कहानी है. यह कहानी है अलैय सलाम नाम के एक आदमी की. अलैय सलाम को एक दिन सपने में अल्लाह आए और उन्होंने सलाम से अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने को कहा.
सलाम ने अल्लाह की बात मानकर इब्राहीम अलैय सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे. तभी अल्लाह के फरिश्तों ने इस्माइल को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया.
इस तरह सलाम के हाथों मेमने के जिबह होने के साथ पहली कुर्बानी हुई. अल्लाह इस कुर्बानी से राजी हो गए. तभी से बकरीद मनाई जाने लगी.
इस तरह मुस्लिम समुदाय की धार्मिक मान्यता को देखते हुए कुर्बानी अल्लाह की खुशी व रजामंदी के लिए की जाती है ऐसे में अन्य किसी भी धर्म द्वारा इनके धर्म की मान्यता पर अपने धर्म की मान्यता के अनुसार कुछ भी करना वैमनस्य की भावना भड़काना ही कहा जाएगा और जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा इस कुर्बानी के लिए अपने मंदिरों में णमोकार मंत्र किया जाना और उसका प्रचार किया जाना इस्लाम धर्म के उसूलों पर उंगली उठाना ही माना जाएगा।
वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना वाले इस देश में अगर इसी तरह जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा उंगली उठाई जाती रही तो इसके घेरे में एक दिन सनातन हिन्दू धर्म भी आएगा क्योंकि हिन्दू धर्म में भी देवी के समक्ष बलि का विधान है, जो कि वर्तमान युग में कुछ पिछड़ी हुई जातियों तक सीमित हो गया है लेकिन इसके कारण यह नहीं कहा जा सकता कि हिन्दू धर्म इस मान्यता से अलग हो गया है.
आज यह देश अपने मूल्य छोड़ रहा है. दूसरे के धर्म का आदर और दूसरे धर्मावलम्बी का सम्मान इस देश के जन जन द्वारा हृदय से किया जाता रहा है और यही कारण है कि यहां कितनी ही सभ्यता व संस्कृति समा गई हैं और अपनी पहचान बनाए रखते हुए जीवित भी रही हैं. और ये सच है कि आज यहां हिन्दुत्व वादी सरकार है किन्तु ये देश मात्र हिंदुओं का नहीं है. हिन्दू व मुसलमान इस देश की दो आंखें हैं अगर इस तरह की गतिविधियों द्वारा एक आंख को फोड़ने का कार्य किया जाएगा तो इसमे कोई शक नहीं है कि देश अंधा नहीं तो काना तो होकर ही रह जाएगा. इसलिए ऐसी गतिविधियों पर हम जितनी जल्दी हो सके अंकुश लगाने के लिए प्रयास करें और अपने मुस्लिम भाई बहनों की खुशियों में शामिल होते हुए उन्हें तहे-दिल से बकरीद की मुबारकबाद दें.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
टिप्पणियाँ
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'