इसलिये है गुड़िया बच्ची का सहारा


सुनो छोटी सी गुड़िया की नन्ही कहानी...सच में एक ऐसी मासूम कहानी जो आज पूरे देश में सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल हो गई। अमर उजाला ने शुक्रवार के अंक में एक मासूम बच्ची की खबर फोटो के साथ प्रकाशित की थी। जिसमें उस मासूम बच्ची की जिद थी कि उसकी गुड़िया के पैरों पर प्लास्टर चढ़ाया जाए फिर उसके बेड पर ही उसको लिटाया जाए। 

डॉक्टरों ने उनकी जिद को पूरा किया तब उसका ऑपरेशन हुआ। इस केस में चाइल्ड सायकोलॉजी को अब इंटरनेशनल जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक जर्नल्स समेत इंटरनेशनल जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक्स में भी बतौर केस स्टडी रखा जाएगा। ताकि देश विदेश में बच्चों के इलाज को इस तरह से भी आसान बनाया जा सके।
          बहुत चर्चा है इस समाचार का इस वक़्त सोशल मीडिया पर और हो भी क्यूँ ना ये वक़्त केवल और केवल सोशल मीडिया का ही होकर रह गया है. देश विदेश के डाक्टर आज बच्ची के इलाज के लिए उसकी गतिविधियों पर नज़र डाल रहे हैं और सोच रहे हैं कि इस तरह वे दुनिया भर के बच्चों का सफलतापूर्वक इलाज कर पाएंगे लेकिन जो वास्तविकता है उस तरफ किसी की नज़र नहीं जा रही है. 
             पैसा और सोशल मीडिया आज हर व्यक्ति की ज़रूरत बन चुकी हैं और इसका खामियाजा घर के बड़ों व बच्चों को भुगतना पड़ रहा है..कहीं घर की महिलाएं बड़ों व बच्चों को ताले में बंद कर नौकरी करने जा रही हैं तो कहीं किटी पार्टी आदि के लिए बड़ों व बच्चों को अकेले छोड़ा जा रहा है.
        आज बहुत सी महिलाएं अपनी स्वतंत्रता के नाम पर नौकरी कर रही हैं और स्वतंत्रता के नाम पर नौकरी करने वाली महिलाएं ही ऐसी होती हैं जो कभी किटी पार्टी तो कभी समाज सेवा के नाम पर अपने बच्चों को घर में ताला बंद कर छोड़ जाती हैं, और ऐसे में दो दिन पहले पैदा हुए बच्चों को भी छोड़ नौकरी पर जा रही हैं. सरकारी नौकरी में तो एक निश्चित समय सीमा तक अवकाश लिया जा सकता है किन्तु सरकारी नौकरी आसानी से मिलती कहाँ है ऐसे में निजी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए बच्चा पैदा होने के बाद जल्द से जल्द नौकरी पर जाना पड़ता है. 
        ऐसे में वे अपने बच्चे को कभी काम वाली बाई तो कभी गुड़िया खिलौने के भरोसे छोड़ जाती हैं और अगर हम बच्ची की हरकतों का सही रूप में आकलन करें तो हम पाएंगे कि बच्ची को गुड़िया ही अपनी लगती है क्योंकि वह ही उसका हर वक़्त का सहारा है क्योंकि अगर बच्ची के माँ बाप के पास उसके लिए समय होता तो बच्ची को उनसे बढ़कर कोई अपना नहीं लगता.. हम सभी ने हमेशा ये बात महसूस की है कि जब भी हम किसी परेशानी में होते हैं तो मुंह से ऊई माँ या पापा ही निकलता है अब जब इन दोनों को कभी अपने पास देखा ही न हो तो मुहँ से क्या निकलेगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट 
(कौशल)

टिप्पणियाँ

अजय कुमार झा ने कहा…
वाकई बच्चों के मनोविज्ञान को समझने और खासकर बीमार बच्चों के इलाज के लिए ऐसे उपायों पर शोध करने के लिहाज़ से भी बहुत ही महत्वपूर्ण खबर है ये | साझा करने के लिए आपका आभार
Nisha Khatoon ने कहा…
Thank You for this useful information. It's very useful for everyone-THANKS

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

बेटी का जीवन बचाने में सरकार और कानून दोनों असफल

नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले