मेरी माँ - मेरा सर्वस्व
वो चेहरा जो
शक्ति था मेरी ,
वो आवाज़ जो
थी भरती ऊर्जा मुझमें ,
वो ऊँगली जो
बढ़ी थी थाम आगे मैं ,
वो कदम जो
साथ रहते थे हरदम,
वो आँखें जो
दिखाती रोशनी मुझको ,
वो चेहरा
ख़ुशी में मेरी हँसता था ,
वो चेहरा
दुखों में मेरे रोता था ,
वो आवाज़
सही बातें ही बतलाती ,
वो आवाज़
गलत करने पर धमकाती ,
वो ऊँगली
बढाती कर्तव्य-पथ पर ,
वो ऊँगली
भटकने से थी बचाती ,
वो कदम
निष्कंटक राह बनाते ,
वो कदम
साथ मेरे बढ़ते जाते ,
वो आँखें
सदा थी नेह बरसाती ,
वो आँखें
सदा हित ही मेरा चाहती ,
मेरे जीवन के हर पहलू
संवारें जिसने बढ़ चढ़कर ,
चुनौती झेलने का गुर
सिखाया उससे खुद लड़कर ,
संभलना जीवन में हरदम
उन्होंने मुझको सिखलाया ,
सभी के काम तुम आना
मदद कर खुद था दिखलाया ,
वो मेरे सुख थे जो सारे
सभी से नाता गया है छूट ,
वो मेरी बगिया की माली
जननी गयी हैं मुझसे रूठ ,
गुणों की खान माँ को मैं
भला कैसे दूं श्रद्धांजली ,
ह्रदय की वेदना में बंध
कलम आगे न अब चली .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
मदद कर खुद था दिखलाया""
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यह पंक्ति मेरे माँ के बहुत करीब है। बहुत ही सुंदर एवं बेहतरीन रचना।
माँ की कमी कितनी दुखद।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार (१० -०५ -२०२१) को 'फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं'(चर्चा अंक-४०६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर