मन चाहे खुश हो या दुखी कुछ कहता ज़रूर है.दुःख बाँटने से कम होता है और सुख बाँटने से बढ़ता है तो क्यों ना मन की बात आपसे बांटू ......
पुरुष मन की कल्पना
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अधिकार सार्वभौमिक सत्ता सर्वत्र प्रभुत्व सदा विजय सबके द्वारा अनुमोदन मेरी अधीनता सब हो मात्र मेरा कर्तव्य गुलामी दायित्व ही दायित्व झुका शीश हो मात्र तुम्हारा मेरे हर अधीन का बस यही कल्पना हर पुरुष मन की . शालिनी कौशिक
कर जाता है.... दिखाता मुख की सुन्दरता,टूट जाता इक झटके में, वहम हम रखते हैं जितने खत्म उनको कर जाता है. है हमने जब भी ये चाहा,करें पूरे वादे अपने, दिखा कर अक्स हमको ये, दफ़न उनको कर जाता है. करें हम वादे कितने भी,नहीं पूरे होते ऐसे, दिखा कर असलियत हमको, जुबां ये बंद कर जाता है कहें वो आगे बढ़ हमसे ,करो मिलने का तुम वादा, बांध हमको मजबूरी में, दगा उनको दे जाता है. शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com --
ऐसी पढ़ी लिखी से तो अनपढ़ ही अच्छी लड़कियां दैनिक जागरण के 13 जनवरी 2013 के''झंकार ''में दुर्गेश सिंह के साथ चित्रांगदा सिंह की बातचीत के अंश पढ़े , तरस आ गया चित्रांगदा की सोच पर ,जो कहती हैं - '' मुझे कुछ दिनों पहले ही एक प्रैस कांफ्रेंस में एक वरिष्ठ महिला पत्रकार मिली ,उन्होंने मुझसे कहा कि अपनी इस हालत के लिए महिलाएं ही जिम्मेदार हैं ,कौन कहता है उनसे छोटे कपडे पहनने के लिए ?मैं दंग रह गयी इतनी पढ़ी लिखी महिला की यह दलील सुनकर ...........'' दंग तो चित्रांगदा आपको ही नहीं सभी को होना होगा ये सोचकर कि क्या पढ़े लिखे होने का मतलब ये है कि शरीर को वस्त्र विहीन कर लिया जाये ?सदियों पहले मानव सभ्यता की शुरुआत में जैसे जैसे खोजकर कपड़ों का निर्माण आरम्भ हुआ और मानव ने अपने तन को वस्त्र से ढंकना आरम्भ किया नहीं तो उससे पहले तो मनुष्य नंगा ही घूमता था देखिये ऐसे - और आज की लड़कियां अपने तन की नुमाइश कर आदि काल की ओर खिसकती जा रही हैं और समझ रही हैं खुद की अक्ल से खुद को आधुनिक .सही कपडे पहनकर कॉलिज आने...
आंसू ही उमरे-रफ्ता के होते हैं मददगार, न छोड़ते हैं साथ कभी सच्चे मददगार. मिलने पर मसर्रत भले दुःख याद न आये, आते हैं नयनों से निकल जरखेज़ मददगार. बादल ग़मों के छाते हैं इन्सान के मुख पर , आकर करें मादूम उन्हें ये निगराँ मददगार. अपनों का साथ देने को आरास्ता हर पल, ले आते आलमे-फरेफ्तगी ये मददगार. आंसू की एहसानमंद है तबसे ''शालिनी'' जब से हैं मय्यसर उसे कमज़र्फ मददगार. कुछ शब्द-अर्थ: उमरे-रफ्ता--गुज़रती हुई जिंदगी, जरखेज़-कीमती, मादूम-नष्ट-समाप्त, आलमे-फरेफ्तगी--दीवानगी का आलम. शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com
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