क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा ?

क्या   करूं कुछ  समझ  नहीं आ रहा ?आजकल ब्लॉग जगत से बिलकुल कट कर रह गयी हूँ.इतने अच्छे वैचारिक आलेख आ रहे हैं और मैं उन पर अपनी राय भी प्रस्तुत नहीं कर पा रही हूँ टिपण्णी करने के लिए जैसे ही सम्बंधित ब्लॉग के लिंक पर क्लिक करती हूँ  ऊप्स लिख कर आ जाता है न ही मेल खुल पा रहे हैं .कल तो सारे दिन ब्लोग्गर पर यही लिख कर आता रहा कि असुविधा के लिए खेद है .आज जैसे ही ब्लॉग खुले मैंने सोचा कि ब्लॉग जगत से पोस्ट के माध्यम से ही जुड़ जाऊं.
            अभी पिछले रविवार को एक मैगजीन में मैंने प्रख्यात गायिका आशा भोंसले जी का एक साक्षात्कार आधारित आलेख पढ़ा और सच कहूं तो बहुत गुस्सा आया पूछेंगे क्यों ?क्योंकि वे कह रही थी कि वे आजकल की कोई फिल्म नहीं देखती हैं क्योंकि इनमे इमोशंस नहीं होते हैं इससे अच्छा तो कार्टून मूवी देख लो.उनकी ऐसी बाते मैंने अपनी बहन को बताई तो वह कहने लगी कि आशा भोंसले जी से ऐसी उम्मीद नहीं थी.ये तो पुरानी पीढ़ी द्वारा नई पीढ़ी को नीचा दिखाने की बात हुई.वह कहने लगी कि एक तरफ अमिताभ बच्चन जी हैं जो कहते हैं कि आज के कलाकार हमसे ज्यादा मेहनत करते हैं मैं भी उसकी बात को सुनकर सोचने लगी कि वास्तव में पुरानी पीढ़ी के लोग नई पीढ़ी को कम करके ही आंकते हैं आये दिन पुराने संगीत से नए संगीत की तुलना की जाती है और पुराने के सामने नए को बेकार कह नीचा दिखाया जाता है.जहाँ तक संगीत की बात है तो उसमे मुझे कुछ खास ज्ञान नहीं है किन्तु मैं यह दावे के साथ कह सकती हूँ कि कुछ नई फिल्मे ऐसी है जिनकी तारीफ हर पीढ़ी के व्यक्ति को मुक्त कंठ से करनी चाहिए.जैसे ''विवाह''आदर्श के मामले में और स्वच्छ प्रदर्शन के मामले में इस फिल्म पर कोई ऊँगली नहीं उठाई जा सकती .वे कैसे कह सकती हैं कि आजकल की फिल्मो में इमोशंस नहीं होते ''एक विवाह ऐसा भी''इमोशंस से भरपूर एक ऐसी फिल्म है कि शायद ही किसी भावुक  व्यक्ति की आँखों से आंसू न टपका दे.
                             ये नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी का वास्तव में देखा जाये तो कोई झगडा ही नहीं है क्योंकि अपने आसपास के कई परिवारों को देखकर मैं ये सही अनुमान लगा चुकी हूँ कि जैसे माँ-बाप होते है वैसे ही बच्चे होते हैं .मेरी बहन के साथ पढने वाली एक लड़की ऐसी थी कि जब मेरी बहन की कक्षा में पोजीशन आती तो वो उसके पीछे फिरने लगती और जब दूसरी लड़की की आती तो वह उनके पीछे फिरने लगती हमें बहुत अजीब लगता किन्तु जब हम उसके माँ-बाप को जाने तो हमारी शंका का समाधान हो गया.जिन घरों में हमने देखा कि बेटा माँ बाप की सेवा करता है वहां बच्चों में सेवा के भाव पनपते देखे किन्तु जहाँ बेटे ही माँ -बाप से अलग रहते हैं उन घरों में बच्चे भी सेवा से दूर जा रहे हैं और इस कार्य को खुद पर बोझ  समझ रहे हैं .इसलिए नई पीढ़ी को दोष देना पुरानी पीढ़ी को छोड़ना होगा और अपने कार्य कलापों में सुधार कर उनके समक्ष आदर्श प्रस्तुत करना होगा  जब नई पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी द्वारा महत्व दिया जायेगा और उनमे संस्कारों का ज्ञान भरा जायेगा तभी एक सार्थक समाज हम सभी के सामने आ पायेगा.नई पीढ़ी को कम करके आंकना पुरानी पीढ़ी की ही हार की पहचान है और उन्हें ये स्वीकारना होगा .

टिप्पणियाँ

Shikha Kaushik ने कहा…
aapne sahi kaha hai .aaj kee peedhi bhi bahut achchha kam kar rahi hai par unki tareef nahi hoti .
ब्लागेर की साफ सफाई चल रही थी इसलिए कुछ दिन समस्या थी..

कई फिल्म ऐसी हैं जिनकी प्रसंशा की जानी चाहिए मगर जब अनुपातिक विश्लेषण करते हैं तो वो कम ही होती है..इसी सन्दर्भ में शायद आशा जी ने बोला होगा..

नई पीढ़ी और पुराणी में द्वन्द हमेशा चलेगा..मगर अगर आप ध्यान से देखें तो आने वाली पीढ़ी में विषय विकार की भरमार है..जिसका कारण पश्चिम का अन्धानुकरण है...
अमितजी का व्यक्तित्व तो मिसाल है.....
amit kumar srivastava ने कहा…
"तुलना" कभी भी नही करनी चाहिये , न दो बच्चों की ,ना दो परिवारों की ,ना दो पीढियों की ।

सब को ईश्वर ने अद्भुत एवं विलक्षण प्रतिभा दी है । हां ,बस तनिक समय एवं परिवेश का असर अवश्य पड़ता है उनकी कार्यशैली पर ।
मनोज कुमार ने कहा…
विश्व परिवार दिवस पर इस आलेख का महत्त्व और बढ़ जाता है। एक नई सोच के साथ आपने इस समस्या को देखने की कोशिश की है। हर पीढ़ी की अपनी विशेषता और सीमाबद्धता होती है। हमें आपस में सामंजस्य बनाकर आगे बढ़ना चाहिए।
सुंदर, प्रेरक और विचारोत्तेजक आलेख।
प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?
Anita ने कहा…
रोचक लेख !

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