तुम्हारी याद
अब तुम्हारी याद में मिलकर रोते हैं अक्सर.
कभी सोचा भी न था तुम यूं चले जाओगे,
रोता बिलखता देखकर भी पास नहीं आओगे.
कौन जानता था कि तुम धोखेबाज़ हो,
धोखा देने वालों के सर का तुम ताज हो.
भले हम हों लड़ते भले हम झगड़ते ,
भले दिन में कई बार मिलते बिछड़ते.
तुम्हारे साथ थे रोते तुम्हारे साथ थे हँसते,
पर अब तो अकेले ही रोते तड़पते.
फूल सूख जाते हैं पेड़ गिर जाते हैं,
मगर अपने पीछे खुशबू छोड़ जाते हैं.
पर तुम तो वो फूल थे,
जो खुशबू के साथ अपना सब कुछ छोड़ गए .
टिप्पणियाँ
बहुत बहुत आभार बधाई के लिए !
आपके आलेख तो कई पढ़े है पर आज रचनासे
पहली बार परिचय हुआ है बहुत सुंदर रचना है !
बहुत बहुत बधाई !
बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/
लगता है आप मेरी कविता वाली ब्लॉग पर आई नही अब तक । न आपने फोलो किया न ही आपकी टिप्पणी मिली मुझे ।
शुभकामनाएँ!
रोता बिलखता देखकर भी पास नहीं आओगे.
सुंदर संवेदनशील भाव ......