आलोचना की रोटी
''वो आये मेरी कब्र पे दिया बुझाके चल दिए,
दिए में जितना तेल था सर पे लगाके चल दिए.''
कई लेख पढ़े ''तवलीन सिंह जी''के और मन में आया कि क्या वास्तव में वे अपनी लेखनी को बर्बाद करने पे तुली हैं?पर रविवार १५ मई के अमर उजाला में ''तमाशे की रोटी''शीर्षक युक्त उनके आलेख ने शक को यकीन में बदल दिया .राहुल गाँधी जी के जिस कार्य की तारीफ मीडिया में,जनता में जोर शोर से की गयी उसे पढ़कर सुनकर तो लगा जैसे तवलीन सिंह जी की लेखनी जल भुन गयी और जला भुना पाठकों के समक्ष परोस दिया.
हमारे यहाँ प्राचीन समय से राजा महाराजा [ये उदाहरण इसलिए क्योंकि तवलीन जी राहुल जी को युवराज कहती हैं जबकि वे अपने बारे में ऐसा कुछ नहीं कहते]जनता की समस्याएँ स्वयं देखने के लिए रातों को चोरी छिपे जनता के बीच जाया करते थे .राहुल जी ने भी कई दिन से चर्चाओं में छाये भट्ठा पारसोल गाँव में किसानो के बीच जाकर ऐसी ही कार्यवाही को अंजाम दिया और अत्याचार की आग में झुलस रहे किसानो को दो पल की राहत दी.उन्होंने किसानो के ही बताने पर बिटोड़े की राख अपनी गाड़ी में जाँच हेतु भरवाई.मैं आपसे पूछती हूँ कि इसमें राहुल जी ने सही कार्य किया या गलत?और यदि गलत तो वह क्यों?
तवलीन सिंह जी के आलेख की निकृष्टता तो यहीं ज़ाहिर होती है कि वे राजनीति में सुन्दरता और जवानी को लाभदायक बताती हैं [फिर तो सारी फिल्म इंडस्ट्री यहीं होनी चाहिए] और अपने इसी तराजू पर वे राहुल गाँधी की सफलता को तोलती हैं भला वे बताएं कि यदि राजनीति सुन्दरता और जवानी पर टिकी है तो विश्व के सबसे वयोवृद्ध नेता हमारे यहाँ कैसे जनता में छाये हैं?वे राहुल जी की तुलना राजनाथ सिंह जी से करती हैं और राहुल जी की चमक को उनके ऊपर छाये अँधेरे का कारण बताती हैं.जबकि राजनाथ सिंह जी की असंवेदनशीलता वह बाधा है जो उन्हें राजनीति के आकाश में चमकने से रोकती है और राहुल जी की संवेदनशीलता ही राजनीति में उनकी चमक को निरंतर बढ़ा रही है.राजनाथ सिंह जी के हेलीकोप्टर का पायलट मर जाता है और वे पहले सभा को संबोधित करने पहुँच जाते हैं जबकि राहुल जी इलाज के लिए तड़प रहे एक ऐसे व्यक्ति की मदद को आगे बढ़ते हैं और जीवन की आशा उसके मुख पर बिखेरते हैं जो उन्हें चेहरे से पहचानता भी नहीं था.
भट्ठा पारसोल में हुए किसानो पे अत्याचार के हालत पर राहुल जी की ये टिपण्णी''कि उन्हें भारतीय होने पर शर्म महसूस होती है''तवलीन जी के लिए उनकी देशभक्ति पर ऊँगली उठाने का मुद्दा बन गया जबकि राहुल जी का यह कथन एक सच्चे भारतीय का कथन है .वे राहुल जी को पंजाब में खेतों में सड़ते अनाज पर ऐसी टिपण्णी करने की सलाह देती हैं पर क्या भूल जाती हैं कि जलियाँ वाला बाग कांड १३ अप्रैल १९१९ को पंजाब में ही हुआ पर वह अंग्रेजों के शासनकाल में हुआ था तब देश गुलाम था और आज देश आज़ाद है और सत्ता में बैठे भारतीय अंग्रेज बन गए हैं और जनता वही गुलामों की श्रेणी में है .अपने ही लोगों द्वारा अत्याचार की आग में झुलसाये जा रहे किसानो की हालत देखकर किसी भी सच्चे भारतीय को अपने भारतीय होने पर शर्म आएगी.खेतों में सड़ता अनाज तो तवलीन जी की आँखों में आंसू भर देता है किन्तु जीते जागते इन्सान की दुर्दशा देख यदि राहुल जी ऐसे टिपण्णी करते हैं तो तवलीन जी को एतराज है क्योंकि वे गाँधी फैमली के हैं .ऐसा आलेख लिखने से पहले तवलीन जी को आज के हिंदुस्तान के पृष्ठ ११ पर भट्ठा पारसोल में पुलिस बर्बरता की चशमदीद गवाह नेहा की जुबानी ही जान लेना चाहिए था कि ''आवाज़ उठाने का मुआवजा चुका रहे हैं हम''नेहा जिसकी वहां पुलिस ने टांग तोड़ दी नेहा के पिता कहाँ किस हालत में हैं पता नहीं.और यह नेहा का ही देश है जहाँ आज उसे गैर देश में रहने जैसी जिंदगी गुजारनी पद रही है .क्या एक सच्चे भारतीय के उद्गार राहुल जी से अलग हैं?मैं तो नहीं मानती मेरा मानना तो यह है कि जो ऐसी स्थिति में भारतीय होने का गर्व दिखा रहा है वह महज़ बनावट ओढ़ रहा है .
बात बात में सत्ता की बागडोर सोनिया जी के हाथों में कहकर तवलीन सिंह जी और कुछ अन्य आलोचक भी भारतीय संविधान को ही नकारते से लगते हैं जिसके अनुसार सत्ता की धुरी संसद है,संविधान का संरक्षक सर्वोच्च न्यायालय है और सर्वोच्च न्यायालय की जनता के अधिकारों के प्रति जवाबदेही व् जागरूकता हमारे लिए गौरव का विषय है चुनाव आने पर सभी नेता जनता में अधिक सक्रीय होते हैं किन्तु लगता है कि तवलीन सिंह जी हमारे नेताओं से भी अधिक सक्रिय हैं जिनकी लेखनी का केवल एक विषय होता है और वह है गाँधी परिवार और इस परिवार की आलोचना ही उन्हें चर्चा में बनाये रखती है.तो वे इससे पीछे क्यों हटें?
मेरा तवलीन सिंह जी से यही कहना है की अपनी लेखनी को स्वस्थ आलोचना की कसोटी पर परखें और उसी पर रहें वर्ना वही होगा जो अधिकांश आलोचकों के साथ होता है .कटु आलोचना और वह भी प्रतिद्वन्द पर आधारित प्रतीत होने वाली आलोचना सदैव पठनीय नहीं होती और ऐसे आलोचक गुमनामी के अंधेरों में खो जाते हैं.इस देश के पाठक चाहे वे किसी भी क्षेत्र से हों तथ्यों पर आधारित स्वस्थ आलोचना ही स्वीकार करते हैं व्यक्तिगत द्वन्द पर आधारित आलोचना नहीं .
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनायें!
राहुल गाँधी राजनीति में रहकर वही कर रहे हैं जो एक राजनेता को करना चाहिए.अब इससे किसी के पेट में मरोड़ है तो हम-आप क्या कर सकते हैं ?