भूखे पेट ही सोना पड़ता है।-खुशबू(इन्द्री)करनाल
खुशबू(इन्द्री)करनाल
आपने अपने आसपास या फिर रेड लाइट सिग्नल पर ऐसे बच्चों और बुजुर्गो को जरूर देखा होगा, जो दूसरों से मांगकर अपना पेट भरते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इन्हें पूरे दिन कुछ नहीं मिल पाता और भूखे पेट ही सोना पड़ता है। भूख किसी भी सभ्य समाज के लिए एक बदनुमा दाग की तरह होती है। फिर भी इस हकीकत को दरकिनार कर देते हैं। दरअसल, इसके लिए हमारी कुछ आदतें ही जिम्मेदार हैं। जब आप किसी होटल या रेस्त्रां में लंच या डिनर करने जाते हैं तो वहां एक से ज्यादा डिश ऑर्डर तो कर देते हैं, लेकिन पूरा खाना किसी भी रूप में संभव नहीं होता। और जो खाना आप रेस्त्रां की मेज पर छोड़कर आते हैं, वह बर्बाद ही होता है। इसी तरह शादी या किसी समारोह की पार्टी में जो लोग जाते हैं, उनमें से ज्यादातर अपनी प्लेट में अधिक खाना रख लेते हैं, जिसे बाद में कूड़ेदान के हवाले कर दिया जाता है। जरा सोचिए, यह खाना कई लोगों की भूख शांत कर सकता था, लेकिन कूड़ेदान में जाकर बर्बाद हो जाता है। खाने की बर्बादी पर पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड एंड एग्रीकल्चर संगठन यानी एफएओ की रिपोर्ट में ऐसा आंकड़ा उजागर किया है, जो पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में एक साल में करीब 130 करोड़ टन खाद्य सामग्री या तो बेकार हो जाती है या फिर उसे फेंक दिया जाता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि खाना बेकार करने की समस्या औद्योगिक देशों में सबसे ज्यादा है। आंकड़ों के मुताबिक, विकासशील देशों में 63 करोड़ टन और औद्योगिक देशों में 67 करोड़ टन खाने की बर्बादी हर साल होती है। अफ्रीका महाद्वीप में हर साल करीब 23 करोड़ टन भोजन का उत्पादन होता है, जबकि अमीर देशों में 22.2 करोड़ टन खाना बर्बाद हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि जितना खाना एक महाद्वीप में रहने वाले लोगों की एक साल में भूख मिटाता है, उतना तो अमीर देश बर्बाद कर देते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पूरी दुनिया में कई देश भुखमरी की समस्या से जूझ रहे हैं और दूसरी ओर बड़े पैमाने पर खाने की बर्बादी हर साल हो रही है। एक अध्ययन के मुताबिक अमेरिका और ब्रिटेन में संपन्न लोग जितना भोजन खराब करते हैं, उससे दुनिया के 1.5 अरब भूखे लोगों को खाना खिलाया जा सकता है। पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका और ब्रिटेन में संपन्न लोग रेस्त्रां में थोड़ा-बहुत भोजन खाकर शेष छोड़ देते है। यदि इस बचे हुए भोजन को गरीब लोगों को खिला दिया जाता तो इसका सदुपयोग हो जाता, परंतु रेस्त्रां के मालिक इस बचे हुए भोजन को कूड़ेदान के हवाले कर देते हैं। खाने की बर्बादी में भारत भी कम पीछे नहीं है। हमारे यहां सबसे ज्यादा खाने की बर्बादी शादी समारोहों और पार्टियों में होती है। छोटे से छोटे समारोह में भी कम से कम 20 पकवान तैयार कराए जाते हैं। और मामला किसी रईस का हो तो पकवानों की गिनती करना ही मुश्किल हो जाता है। हमारे देश में सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ शादियों की तड़क-भड़क भी बढ़ती ही जा रही है। समाज का नव धनाढ्य तबका विवाह समारोहों को अपनी हैसियत दिखाने का एक अवसर मानता है और इस मौके पर बेहिसाब खर्च करता है। बड़ी शादियों में खाने की स्टॉल कई सौ मीटर तक फैली हो सकती हैं। इसमें शामिल होने वाले लोग पहले तो अपनी क्षमता से ज्यादा प्लेट में खाना परोस लेते हैं, जो जब खाया नहीं जाता तो उसे बर्बाद कर देते हैं। हमारे यहां शादियों में मेहमानों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसलिए मेजबान हमेशा कुछ अधिक लोगों के भोजन का इंतजाम करके चलता है ताकि अधिक लोग आने पर खाने की कमी नहीं रहे, लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है कि किसी समारोह में भोजन कम पड़ जाए। समारोहों में अक्सर खाना ज्यादा बन जाता है और अंत में उसे कूड़ेदान के हवाले ही करना पड़ता है। कैटर्स भी मानते हैं कि शादी या दूसरी पार्टियों में कई प्रकार के व्यंजन रखने से खाने की बर्बादी होती है। उनके मुताबिक, खाने की बर्बादी दो तरह से होती है, एक तो लोगों द्वारा थाली में ज्यादा जूठन छोड़ने से और दूसरा, मेहमानों के उम्मीद से कम आने पर। कैटर्स का मानना है कि जितने ज्यादा पकवान होंगे उतनी ही बर्बादी होगी। पिछले दिनों भारत सरकार ने शादी-ब्याह और अन्य सामाजिक समारोहों में खाने की बर्बादी को लेकर चिंता जताई और इसे रोकने के लिए गंभीर कदम उठाने की बात भी कही। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री केवी थॉमस का कहना था कि इसके लिए जागरूकता अभियान तो चलाया ही जाएगा और सरकार जल्द ही ऐसा विधेयक लाने वाली है, जिससे शादियों में बनने वाले विभिन्न व्यंजनों की संख्या पर रोक के साथ-साथमेहमानों की संख्या को भी नियंत्रित किया जा सके। सरकार का कहना है कि इसके लिए पाकिस्तान में शादियों के लिए लागू एक व्यंजन व्यवस्था का अध्ययन किया जाएगा। अगर यह हमारे देश के हिसाब से सही रही तो इसे कानून बनाकर लागू किया जा सकता है। थॉमस का कहना था कि सरकार ने विवाह समारोहों में खाने की बर्बादी का पता लगाने के लिए कोई विधिवत अध्ययन तो नहीं कराया है, लेकिन अनुमान है कि यह बर्बादी 15 से 20 प्रतिशत तक की है। भारत जैसे देश के लिए जहां अब भी एक बड़ा तबका भुखमरी का शिकार है, यह शर्मनाक है। शादी में अपव्यय रोकने के लिए तमाम सामाजिक तथा धार्मिक संगठन भी अपनी ओर से पहल करते रहे हैं, लेकिन उसका कोई खास असर पड़ता नजर नहीं आ रहा है। सवाल है कि क्या सरकार के प्रयासों का कोई लोगों पर प्रभाव पड़ेगा? वैसे तो सामाजिक समारोहों पर किसी तरह के नियंत्रण का विचार कोई नया नहीं है। साठ के दशक में सरकार गेस्ट कंट्रोल ऑर्डर ला चुकी है। सरकार जो करेगी, वह तो बाद की बात है, लेकिन इससे पहले हमें इस बात का प्रण लेना होगा कि आगे से हम जब भी किसी शादी या पार्टी में जाएंगे, वहां उतना ही खाना अपनी प्लेट में लेंगे, जितना हम खा सकते हों। साथ ही अपने साथियों, रिश्तेदारों और दोस्तों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। भारतीय परंपराओं में माना गया है कि किसी भूखे व्यक्ति को खाना खिलाना सबसे बड़ा पुण्य होता है। खाने की बर्बादी को रोककर हम न केवल अपने देश से बल्कि पूरी दुनिया से भुखमरी नामक राक्षस का अंत कर सकेंगे। यदि भोजन की बर्बादी तुरंत नहीं रोकी गई तो वह दिन दूर नहीं, जब पूरी दुनिया के देशों भयानक अकाल का सामना करना पड़ेगा। खाने की बर्बादी को हमें हर हालत में रोकना होगा ताकि कोई भी व्यक्ति भूखा न सोए
खुशबू गोयल जी ने ये आलेख मुझे मेल के ज़रिये भेजा है आप सभी इसे पढ़ कर अपने विचार खुशबू जी के निम्न मेल पर भेज सकते हैं-
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टिप्पणियाँ
खाने की बर्बादी को रोककर हम न केवल अपने देश से बल्कि पूरी दुनिया से भुखमरी नामक राक्षस का अंत कर सकेंगे।
शुक्ल भ्रमर ५
आभार