जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

   
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .


न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है .


पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .


नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.


मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह  हमने हासिल की है .


जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी ,
मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .
                       शालिनी कौशिक
                                 [कौशल ]




टिप्पणियाँ

सदा ने कहा…
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
वाह ... बहुत खूब
रविकर ने कहा…
मार्मिक पंक्तियाँ -
virendra sharma ने कहा…
रूहानी संबंधों की ,ज़िन्दगी की ,हकीकत की बात की है ,


फलसफा ए ज़िन्दगी से मुलाक़ात की है ,

कुछ ऐसी बात की है आपने इस पोस्ट में ,

सभी के तो ये सवालात हैं ,ख्यालात हैं शालिनी जी .मुबारक इस पोस्ट के लिए .
virendra sharma ने कहा…
रूहानी संबंधों की ,ज़िन्दगी की ,हकीकत की बात की है ,


फलसफा ए ज़िन्दगी से मुलाक़ात की है ,

कुछ ऐसी बात की है आपने इस पोस्ट में ,

सभी के तो ये सवालात हैं ,ख्यालात हैं शालिनी जी .मुबारक इस पोस्ट के लिए .
virendra sharma ने कहा…
रूहानी संबंधों की ,ज़िन्दगी की ,हकीकत की बात की है ,


फलसफा ए ज़िन्दगी से मुलाक़ात की है ,

कुछ ऐसी बात की है आपने इस पोस्ट में ,

सभी के तो ये सवालात हैं ,ख्यालात हैं शालिनी जी .मुबारक इस पोस्ट के लिए


मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह हमने हासिल की है .


फिर भी गुमान है कितना हैवान को अपनी हविश पे ,


पृथ्वी के संसाधनों की हड़प पे .
नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.

वाह,,,बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति,,,

resent post काव्यान्जलि ...: तड़प,,,
virendra sharma ने कहा…
SHUKRIYAA शुक्रिया शालिनी जी आपकी टिपण्णी का .


ram ram bhai
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बुधवार, 28 नवम्बर 2012
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