वो जैसे भंवर में फंसा कर गए.
ज़रा आये ठहरे चले फिर गए,
हमारे दिलों में जगह कर गए.
न कह पाए मन की न सुन पाए उनकी ,
बस देखते आना जाना रह गए.
बिछाए हुए थे उनकी राहों में पलकें,
नयन भी हमारे खुले रह गए.
न रुकना था उनको नहीं था ठहरना ,
फिर आयेंगे कहकर चले वो गए.
न मिलने की चाहत न रुकने की हसरत,
फिर आने का वादा क्यों कर गए.
हमें लौट कर फिर जीना था वैसे ,
वो जैसे भंवर में फंसा कर गए.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
साँसे बहरी होती हैं।
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोडा करते...
हँसना-मुस्कराना
बोलना बतियाना
क़ुबूल है |
जाना
दुखी होना
तड़पना
आंसू बहाना
भूल है ||
आएगा फिर
बस
जरा मशगूल है ||
अरे वो तो
आपकी ही
गली का धूल है ||
लौटकर आता ही होगा
मुस्कराइए |
जाइए एक कप चाय बनाइये |
(शास्त्री जी की तिपियाने वाली
कविता का असर कुछ ज्यादा हो गया है )
फिर आने का वादा क्यों कर गए.
हमें लौट कर फिर जीना था वैसे ,
वो जैसे भंवर में फंसा कर गए.
Ek kasak chhod gayeen ye panktiyan!
कृपया पधारें
चर्चा मंच
हमें लौट कर फिर जीना था वैसे ,
वो जैसे भंवर में फंसा कर गए.
सुन्दर लगी।
jitni khoobsurat panktiyaan utna hi dard mein lipti hui..
bahut sunder ma'am.
"samrat bundelkhand"
Aalekh pe comment nahee de paa rahee hun!
शुक्ल भ्रमर ५
बिछाए हुए थे उनकी राहों में पलकें,
नयन भी हमारे खुले रह गए.