वो चेहरा जो शक्ति था मेरी , वो आवाज़ जो थी भरती ऊर्जा मुझमें , वो ऊँगली जो बढ़ी थी थाम आगे मैं , वो कदम जो साथ रहते थे हरदम, वो आँखें जो दिखाती रोशनी मुझको , वो चेहरा ख़ुशी में मेरी हँसता था , वो चेहरा दुखों में मेरे रोता था , वो आवाज़ सही बातें ही बतलाती , वो आवाज़ गलत करने पर धमकाती , वो ऊँगली बढाती कर्तव्य-पथ पर , वो ऊँगली भटकने से थी बचाती , वो कदम निष्कंटक राह बनाते , वो कदम साथ मेरे बढ़ते जाते , वो आँखें सदा थी नेह बरसाती , वो आँखें सदा हित ही मेरा चाहती , मेरे जीवन के हर पहलू संवारें जिसने बढ़ चढ़कर , चुनौती झेलने का गुर सिखाया उससे खुद लड़कर , संभलना जीवन में हरदम उन्होंने मुझको सिखलाया , सभी के काम तुम आना मदद कर खुद था दिखलाया , वो मेरे सुख थे जो सारे सभी से नाता गया है छूट , वो मेरी बगिया की माली जननी गयी हैं मुझसे रूठ , गुणों की खान माँ को मैं भला कैसे दूं श्रद्धांजली , ह्रदय की वेदना में बंध कलम आगे न अब चली . शालिनी कौशिक [कौशल ]
टिप्पणियाँ
साँसे बहरी होती हैं।
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोडा करते...
हँसना-मुस्कराना
बोलना बतियाना
क़ुबूल है |
जाना
दुखी होना
तड़पना
आंसू बहाना
भूल है ||
आएगा फिर
बस
जरा मशगूल है ||
अरे वो तो
आपकी ही
गली का धूल है ||
लौटकर आता ही होगा
मुस्कराइए |
जाइए एक कप चाय बनाइये |
(शास्त्री जी की तिपियाने वाली
कविता का असर कुछ ज्यादा हो गया है )
फिर आने का वादा क्यों कर गए.
हमें लौट कर फिर जीना था वैसे ,
वो जैसे भंवर में फंसा कर गए.
Ek kasak chhod gayeen ye panktiyan!
कृपया पधारें
चर्चा मंच
हमें लौट कर फिर जीना था वैसे ,
वो जैसे भंवर में फंसा कर गए.
सुन्दर लगी।
jitni khoobsurat panktiyaan utna hi dard mein lipti hui..
bahut sunder ma'am.
"samrat bundelkhand"
Aalekh pe comment nahee de paa rahee hun!
शुक्ल भ्रमर ५
बिछाए हुए थे उनकी राहों में पलकें,
नयन भी हमारे खुले रह गए.