नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले
अभी अभी देश ने पूर्ण श्रृद्धा और उल्लास से अपना ६४ वां गणतंत्र दिवस मनाया और ये बात गौर करने लायक है कि ये श्रृद्धा और उल्लास जितना भारत में निवास करने वालों में था उससे कहीं अधिक विदेश में रह रहे भारतीयों में था [आखिरकार ये ही कहना पड़ेगा क्योंकि वैसे भी भारत में रह रहे लोग कुछ ज्यादा ही विदेश में रह रहे भारतीयों के आकर्षण में बंधें हैं ]इसलिए उनके द्वारा मनाया गया भारत का कोई भी पर्व धन्य माना जाना चाहिए और फिर ये तो है ही गर्व की बात कि वे आज भी भारतीय गणतंत्र से जुड़े हैं और इसके प्रति श्रृद्धा रखते हैं भले ही इसके लिए अपना जो योगदान उन्हें करना चाहिए उसे यहाँ की सरकार की,अर्थव्यवस्था की आर्थिक मदद द्वारा सहयोग कर अपने इस देश के प्रति उसी प्रकार कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं जैसे हम सभी किसी आयोजन चाहे धार्मिक हो या सामाजिक ,पारिवारिक हो या वैवाहिक में अपने पास किसी वस्तु न होने की स्थिति में रूपये /पैसे दे उसकी आपूर्ति मान लेते हैं . हम अगर अपने देश से प्रेम करते हैं और इसकी तरक्की के आकांक्षी हैं तो क्या ये सही है कि हम स...