मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की
मज़म्मत करनी है मिलकर बिगड़ते इस माहौल की ,
मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की.
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.
मुकम्मल रखती शख्सियत नहीं चाहत मदद की है ,
मुकर्रम करनी है हालत हमें अपने सम्मान की.
गलीज़ है वो हर इन्सां जिना का ख्याल जो रखे ,
मुखन्नस कर देना उसको ख्वाहिश ये यहाँ सब की.
बहुत गम झेले औरत ने बहुत हासिल किये हैं दर्द ,
फजीहत करके रख देगी मुकाबिल हर ज़ल्लाद की .
भरी है आज गुस्से में धधकती एक वो ज्वाला है ,
खाक कर देगी ''शालिनी''सल्तनत इन हैवानों की.
शालिनी कौशिक
[कौशल]
शब्दार्थ-मज़म्मत-निंदा ,मरम्मत-शारीरिक दंड ,मुकर्रम-सम्मानित,मशक्कत-कड़ी मेहनत,मुकाबिल -सामने वाला ,गलीज़-अपवित्र,मुखन्नस-नपुंसक,मुकम्मल-सम्पूर्ण ,जिना-व्यभिचार
टिप्पणियाँ
खाक कर देगी ''शालिनी''सल्तनत इन हैवानों की."
आज आग सबमे धधग रही है , अंजाम तक पहुँचने तक बुझना नहीं चाहिए .-बहुत अच्छा
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फजीहत करके रख देगी मुकाबिल हर ज़ल्लाद की .
bilkul sahi----------
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♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की
मर्द से खौफ़-डर की ज़रूरत ही नहीं ...
अगर वाकई मर्द है तो !
शालिनी जी
नज़्म अच्छी है , हम सबके जज़्बातों को बयान करने वाली है ।
... लेकिन इतने भारी-भरकम उर्दू अल्फ़ाज़ का प्रयोग रचना के प्रवाह में बाधा डाल रहा है । बेशक शब्दार्थ देकर आपने अच्छा किया ...
औरत जात पुरुषों के बराबर ही , बल्कि कुछ ज़ियादा ही समाज का अहम हिस्सा है । समाज की अन्य बुराइयों , दहशतगर्दी ,राजनीतिक भ्रष्टाचार , महंगाई आदि मसअलों पर भी मिल कर ऐसी ही जागरूकता दिखाए तो बहुत अच्छे नतीजे पाए जा सकते हैं ।
घोर अवसरवादी और भ्रष्टतम शासन व्यवस्था के कारण गुंडे आतंकी अपराधी और भ्रष्टाचारी बेखौफ़ हैं । संसद और विधानसभाओं में कितने बलात्कारियों / अपराधियों को संरक्षण दे कर सत्ता का हिस्सा बना कर हमारे सिर पर थोपा हुआ है !!
# अपने स्वार्थों के लिए जनता को खतरे में डाल कर जिन जिन राजनीतिक दलों ने अपराधियों को सुरक्षा संरक्षण देकर सत्ता का हिस्सा बना रखा है , वक़्त रहते उन-उनका उन्मूलन परमावश्यक है !
पुनः चेतना जगाती रचना के लिए आभार !
और हां आपकी लेखनी उत्तरोतर निखार पर है... बधाई स्वीकारें !
:)
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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जो निकले है कदम अपने हक के लिए
फैसले उन पर करवा कर महफूज़ करेगी
अपने को और आने वाली पीढी भी हो जायेगी।
फजीहत करके रख देगी मुकाबिल हर ज़ल्लाद की .
भरी है आज गुस्से में धधकती एक वो ज्वाला है ,
खाक कर देगी ''शालिनी''सल्तनत इन हैवानों की.
आफ़रीन ॥सच्चाई बया करती हुई पोस्ट
शक्ति पुरुष की जो बढ़ी, अंड-बंड व्यवहार ।
अंड-बंड व्यवहार, करें संकल्प नारियां ।
होय पुरुष का जन्म, हाथ पर चला आरियाँ ।
काट रखे इक हाथ, बने नहिं अत्याचारी ।
कर पाए ना घात, पड़े भारी इक नारी ।।
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.
सबसे पहले उस शातिर बदमाश कथित नाबालिग को पकड़ा जाए जो करतूत बालिगों से बत्तर करता है भले संविधान में संशोधन करना पड़े
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.
ये जोश ये खरोश ये आवाज़ बुलंदियों को छुए शालिनी जी .
आपका नया अवतार (छाया चित्र )आपकी शख्शियत को एक अलग पहचान दे रहा है .मुबारक यह चित्र यह हौसला चीरता आसमान को ,फाड़ के रखदो शातिरों की छाती पी डालो इनका लहू ....
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.
ये जोश ये खरोश ये आवाज़ बुलंदियों को छुए शालिनी जी .
आपका नया अवतार (छाया चित्र )आपकी शख्शियत को एक अलग पहचान दे रहा है .मुबारक यह चित्र यह हौसला चीरता आसमान को ,फाड़ के रखदो शातिरों की छाती पी डालो इनका लहू ....
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