मुल्क से बढ़कर न खुद को समझें हम,


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''मुख्तलिफ  ख्यालात भले रखते हों ,मुल्क से बढ़कर न खुद  को समझें हम,
बेहतरी हो जिसमे अवाम की अपनी ,ऐसे क़दमों को बेहतर  समझें हम.
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है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम .
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कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से ,
अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती  भूल  समझें हम .
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देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन ,
ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न  समझें हम .
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न कभी अपने हैं न अपने कभी हो सकते ,
पडोसी मुल्कों की फितरत को खुलके समझें हम .
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कहे ये ''शालिनी'' मिल  बैठ मसले  सुलझा लें ,
अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम .
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         शालिनी कौशिक 
                  [ कौशल ]

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना बुधवार 24 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
काश कि लोग बात को समझें-कुछ प्रयास करें !
Dr. Rajeev K. Upadhyay ने कहा…
बहुत ही भावपूर्ण्। देशप्रेम से ओत-प्रोत जो पडोसी के फितरत से सचेत है। स्वयं शून्य
है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें ,
जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम ...

बहुत खूब ... समझनी होगी ये हकीकत सब को ...

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