संस्कार की महक



संस्कार न केवल एक शब्द है बल्कि एक ऐसा भाव है जो एक बच्चे के मन में तभी से उत्पन्न होना कहा जा सकता है जब से वह अपनी माँ की कोख में अपना स्थान बनाता है. अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के द्वारा जब कौरवों के साथ युद्ध में चक्रव्यूह में प्रवेश कर कौरवों का सामना किया गया तब यह तथ्य सभी के सामने आया कि अर्जुन द्वारा पत्नी सुभुद्रा से जब चक्रव्यूह के संबंध में वार्ता की गई तब अभिमन्यु सुभुद्रा के गर्भ में आ चुके थे, इसलिए वे चक्रव्यूह में प्रवेश करने की विधि तभी जान गए थे किन्तु चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकलना है ये अभिमन्यु नहीं जान पाए क्योंकि अर्जुन वह विधि बता पाते इससे पूर्व सुभुद्रा को नींद आ गई थी, जिस कारण अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने की विधि नहीं जान पाए.
          इस व्याख्यान से यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि संस्कार के बीज हमारे मन में बहुत गहराई तक जगह बनाये होते हैं जो लाख कोशिशों के बावजूद मिटाये नहीं जा सकते. जैसे कि आप एक ऐसा जार लीजिये जिसमे आप चीनी रखते हैं, अब आप उस जार को खाली कीजिये और ध्यान दीजिये कि सारी चीनी जार में से निकाल देने के बाद भी चीनी जार में अपने निशान छोड़ जाती है बिल्कुल उसी तरह जैसे एक संस्कारी व्यक्तित्व अपने आस पास, अपने समाज, अपने देश में अपने कार्यों से अपने संस्कारों की महक छोड़ जाता है.
   इसलिए अपने आदर्शो को संस्कार रूप में अपने बच्चों में रोपित कीजिये, वे खुद भी महकेंगे और महका देंगे आपके आदर्शो को.
द्वारा 
शालिनी कौशिक 
एडवोकेट 
कैराना (शामली )

टिप्पणियाँ

Ravindra Singh Yadav ने कहा…
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 8 जून 2025 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!
Shalini kaushik ने कहा…
आभार रविंद्र जी 🙏🙏
Shalini ने कहा…
संस्कार पर सुंदर व्याख्यान दिया है आपने
Shalini kaushik ने कहा…
आभार 🙏🙏
Shalini kaushik ने कहा…
आभार 🙏🙏
Onkar ने कहा…
बहुत सुन्दर
Shalini kaushik ने कहा…
आभार 🙏🙏

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