कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ......
कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ......
आर.एन.गौड़ ने कहा है -
''जिस देश में घर घर सैनिक हों,जिसके देशज बलिदानी हों.
वह देश स्वर्ग है ,जिसे देख ,अरि के मस्तक झुक जाते हों .''
सही कहा है उन्होंने ,भारत देश का इतिहास ऐसे बलिदानों से भरा पड़ा है .यहाँ के वीर और उनके परिवार देश के लिए की गयी शहादत पर गर्व महसूस करते हैं .माताएं ,पत्नियाँ और बहने स्वयं अपने बेटों ,पतियों व् भाइयों के मस्तक पर टीका लगाकर रणक्षेत्र में देश पर मार मिटने के लिए भेजती रही हैं और आगे भी जब भी देश मदद के लिए पुकारेगा तो वे यह ही करेंगीं किन्तु वर्तमान में भावनाओं की नदी ने एक माँ व् एक पत्नी को इस कदर व्याकुल कर दिया कि वे देश से अपने बेटे और पति की शहादत की कीमत [शहीद हेमराज का सिर]वसूलने को ही आगे आ अनशन पर बैठ गयी उस अनशन पर जिसका आरम्भ महात्मा गाँधी जी द्वारा देश के दुश्मनों अंग्रेजों के जुल्मों का सामना करने के लिए किया गया था और जिससे वे अपनी न्यायोचित मांगे ही मनवाते थे .
हेमराज की शहादत ने जहाँ शेरनगर [मथुरा ]उत्तर प्रदेश का सिर गर्व से ऊँचा किया वहीँ हेमराज की पत्नी व् माँ ने हेमराज का सिर वापस कए जाने की मांग कर सरकार व् सेना पर इतना अनुचित दबाव डाला कि आखिर उन्हें समझाने के लिए सेनाध्यक्ष को स्वयं वहीँ आना पड़ा .ये कोई अच्छी शुरुआत नहीं है .सेनाध्यक्ष की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और इस तरह से यदि वे शहीदों के घर घर जाकर उनके परिवारों को ही सँभालते रहेंगे तो देश की सीमाओं को कौन संभालेगा?
यूँ तो ये भी कहा जा सकता है कि सीमाओं की सुरक्षा के लिए वहां सेनाएं तैनात हैं किन्तु ये सोचने की बात है कि नेतृत्त्व विहीन स्थिति अराजकता की स्थिति होती है और जिस पर पहले ही देश के दुश्मनों से जूझने का दबाव हो उसपर अन्य कोई दबाव डालना कहाँ तक सही है ?
साथ ही वहां आने पर सेनाध्यक्ष को मीडिया के उलटे सीधे सवालों के जवाब देने को भी बाध्य होना पड़ा .सेना अपनी कार्यप्रणाली के लिए सरकार के प्रति जवाबदेह है न कि मीडिया के प्रति ,और आज तक कभी भी शायद किसी भी सेनाध्यक्ष को इस तरह जनता के बीच आकर सेना के बारे में नहीं बताना पड़ा .ये सेना का आतंरिक मामला है कि वे देश के दुश्मनों से कैसे निबटती हैं और उनके प्रति क्या दृष्टिकोण रखती हैं और अपनी ये योग्यतायें सेना बहुत से युद्धों में दुश्मनों को हराकर साबित कर चुकी है .
इसलिए शहीद हेमराज के परिवारीजनों द्वारा उनका सिर लाये जाने के लिए दबाव बनाया जाना भारत जैसे देश में यदि अंतिम बार ही किया गया हो तभी सही है क्योंकि हम नहीं समझते कि अपने परिवारीजनों का ये कदम स्वर्ग में बैठे शहीद की आत्मा तक को भी स्वीकार्य होगा ,क्योंकि कोई भी वीर ऐसी शहादत पर अपने सिर की कीमत में दुश्मनों की किसी भी मांग को तरजीह नहीं देना चाहेगा जिसके फेर में सरकार ऐसी अनुचित मांग को पूरा करवाने की जद्दोजहद में फंस सकती है बल्कि ऐसे में तो हम ही क्या देश का प्रत्येक वीर यही कहेगा कि एक ही क्यों हम अरबों हैं ,काटो कितने सिर काटोगे ,आखिर सजाओगे तो अपने मुल्क में ही ले जाकर.ऐसे में हम तो रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में ही अपनी बात शहीदों के परिजनों तक पहुँचाना चाहेंगे-
''जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
आर.एन.गौड़ ने कहा है -
''जिस देश में घर घर सैनिक हों,जिसके देशज बलिदानी हों.
वह देश स्वर्ग है ,जिसे देख ,अरि के मस्तक झुक जाते हों .''
सही कहा है उन्होंने ,भारत देश का इतिहास ऐसे बलिदानों से भरा पड़ा है .यहाँ के वीर और उनके परिवार देश के लिए की गयी शहादत पर गर्व महसूस करते हैं .माताएं ,पत्नियाँ और बहने स्वयं अपने बेटों ,पतियों व् भाइयों के मस्तक पर टीका लगाकर रणक्षेत्र में देश पर मार मिटने के लिए भेजती रही हैं और आगे भी जब भी देश मदद के लिए पुकारेगा तो वे यह ही करेंगीं किन्तु वर्तमान में भावनाओं की नदी ने एक माँ व् एक पत्नी को इस कदर व्याकुल कर दिया कि वे देश से अपने बेटे और पति की शहादत की कीमत [शहीद हेमराज का सिर]वसूलने को ही आगे आ अनशन पर बैठ गयी उस अनशन पर जिसका आरम्भ महात्मा गाँधी जी द्वारा देश के दुश्मनों अंग्रेजों के जुल्मों का सामना करने के लिए किया गया था और जिससे वे अपनी न्यायोचित मांगे ही मनवाते थे .
हेमराज की शहादत ने जहाँ शेरनगर [मथुरा ]उत्तर प्रदेश का सिर गर्व से ऊँचा किया वहीँ हेमराज की पत्नी व् माँ ने हेमराज का सिर वापस कए जाने की मांग कर सरकार व् सेना पर इतना अनुचित दबाव डाला कि आखिर उन्हें समझाने के लिए सेनाध्यक्ष को स्वयं वहीँ आना पड़ा .ये कोई अच्छी शुरुआत नहीं है .सेनाध्यक्ष की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और इस तरह से यदि वे शहीदों के घर घर जाकर उनके परिवारों को ही सँभालते रहेंगे तो देश की सीमाओं को कौन संभालेगा?
यूँ तो ये भी कहा जा सकता है कि सीमाओं की सुरक्षा के लिए वहां सेनाएं तैनात हैं किन्तु ये सोचने की बात है कि नेतृत्त्व विहीन स्थिति अराजकता की स्थिति होती है और जिस पर पहले ही देश के दुश्मनों से जूझने का दबाव हो उसपर अन्य कोई दबाव डालना कहाँ तक सही है ?
साथ ही वहां आने पर सेनाध्यक्ष को मीडिया के उलटे सीधे सवालों के जवाब देने को भी बाध्य होना पड़ा .सेना अपनी कार्यप्रणाली के लिए सरकार के प्रति जवाबदेह है न कि मीडिया के प्रति ,और आज तक कभी भी शायद किसी भी सेनाध्यक्ष को इस तरह जनता के बीच आकर सेना के बारे में नहीं बताना पड़ा .ये सेना का आतंरिक मामला है कि वे देश के दुश्मनों से कैसे निबटती हैं और उनके प्रति क्या दृष्टिकोण रखती हैं और अपनी ये योग्यतायें सेना बहुत से युद्धों में दुश्मनों को हराकर साबित कर चुकी है .
इसलिए शहीद हेमराज के परिवारीजनों द्वारा उनका सिर लाये जाने के लिए दबाव बनाया जाना भारत जैसे देश में यदि अंतिम बार ही किया गया हो तभी सही है क्योंकि हम नहीं समझते कि अपने परिवारीजनों का ये कदम स्वर्ग में बैठे शहीद की आत्मा तक को भी स्वीकार्य होगा ,क्योंकि कोई भी वीर ऐसी शहादत पर अपने सिर की कीमत में दुश्मनों की किसी भी मांग को तरजीह नहीं देना चाहेगा जिसके फेर में सरकार ऐसी अनुचित मांग को पूरा करवाने की जद्दोजहद में फंस सकती है बल्कि ऐसे में तो हम ही क्या देश का प्रत्येक वीर यही कहेगा कि एक ही क्यों हम अरबों हैं ,काटो कितने सिर काटोगे ,आखिर सजाओगे तो अपने मुल्क में ही ले जाकर.ऐसे में हम तो रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में ही अपनी बात शहीदों के परिजनों तक पहुँचाना चाहेंगे-
''जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
पूर्णतया असहमत आपकी इस प्रस्तावना से .आज यह उबाल हर भारतीय के दिल में है हेमराज की माँ और पत्नी इस देश की वीरांगनाएं हैं बलिदानी माँ और पत्नी हैं .ये भाषा दिगविजय सिंह जी
को
ही सोहती है .
फौजी पुत्र समान होता है सेना नायक के लिए .आपके द्वारा शहीद की माँ और पत्नी के लिए -अनुचित दवाब शब्द का इस्तेमाल अशोभनीय और एक दम से बे -मानी है निंदनीय है .
आकर देखो सेलर और आफिसर के रिश्ते जहाज पर ,युद्ध पोतों पर तब इल्म होगा .हम तो रहते ही इनके बीच हैं .
recent post : बस्तर-बाला,,,
आभार आदरेया ||
की सर्वोच्चसत्ता के शौर्य के प्रतीक सेनापति पे दवाब
नहीं डाल रहीं था सिर्फ
अपने बेटे का सिर वापस मांग रही थीं . ताकि शव की कोई शिनाख्त तो बने .एक माँ और पत्नी के दिल से पूछो ,उन्हें कैसा लगा होगा
बिना पहचान का शव . उसका दाह संस्कार करते वक्त कैसा लगा
होगा .
अगर कोई आप की नाक काटके ले जाए तो क्या आप अपनी नाक उससे वापस भी नहीं मांगेंगे .
और हेमराज कोई आमने सामने के युद्ध में ललकारने के बाद नहीं मारा गया था .कोहरे का लाभ उठाते हुए छलबल से उसपर हमला किया
गया था .बेशक इससे हेमराज की शहादत का वजन कम नहीं होता लेकिन यह हमला भारत के स्वाभिमान पे हमला था .जिसे
पाक ने जतला दिया -हम तुम्हें कुछ नहीं समझते .
इस प्रकार की बातें कांग्रेसी ही करते हैं जिसकी सदस्यता लेने से पहले हाईकमान के पास सबको दिमाग गिरवीं रखना पड़ता है .आप जैसी
प्रबुद्ध महिला के अनुरूप नहीं है तर्क का यह स्तर .कहीं आप युवा कांग्रेस की राहुल सेना तो नहीं ?
एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :
आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-01-2013) के चर्चा मंच-1130 (आप भी रस्मी टिप्पणी करते हैं...!) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
बात की बात कि बेबात की फिक्र ---विजय राजबली माथुर
आपका सोचना कुछ हद तक सही है, मगर वीरेंदर सर ने जो बातें कही उनपर भी जरा सोचियेगा ,,,,
हेमराज किसी एक घर का नहीं था, वह पूरे हिन्दुस्तान का था ,,,,
जो भी हो महा कवि दिनकर जी की पंक्तियाँ वाकई बहुत अच्छी लगी ,,,
भारत माँ का कण-कण इन वीरों की गाथा गायेगा।।
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल .''
निष्पक्ष सार्थक विचार..
क्यूं हो ऐसी बात में फंसते जो मिथ्या प्रचारित हो .
कुनबे का इकठ्ठा रखना ज़रूरी अलग अलग मुंह अलग अलग बातें न बोलें,पार्टी और सरकार का घाल मेल न हो ,ये सभी दलों पर लागू होता है .
बढ़िया प्रस्तुति ,शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए जो हमारे लिए बेशकीमती है .