करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
भावनाएं वे क्या समझेंगे जिनकी आत्मा कलुषित हो ,
अटकल-पच्चू अनुमानों से मन जिनका प्रदूषित हो .
सौंपा था ये देश स्वयं ही हमने हाथ फिरंगी के ,
दिल पर रखकर हाथ कहो कुछ जब ये बात अनुचित हो .
डाल गले में स्वयं गुलामी आज़ादी खुद हासिल की ,
तोल रहे एक तुला में सबको क्यूं तुम इतने कुंठित हो .
देश चला है प्रगति पथ पर इसमें मेहनत है किसकी ,
दे सकता रफ़्तार वही है जिसमे ये काबिलियत हो .
अपने दल भी नहीं संभलते कहते देश संभालेंगें ,
क्यूं हो ऐसी बात में फंसते जो मिथ्या प्रचारित हो .
आँखों से आंसू बहने की हंसी उड़ाई जाती है ,
जज्बातों को आग लगाने को ही क्या एकत्रित हो .
गलती भूलों से जब होती माफ़ी भी मिल जाती है ,
भावुकतावश हुई त्रुटि पर क्यूं इनपर आवेशित हो .
पद लोलुपता नहीं है जिसमे त्याग की पावन मूरत हो ,
क्यूं न सब उसको अपनालो जो अपने आप समर्पित हो .
बढें कदम जो देश में अपने करने को कल्याण सभी का ,
करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
हाथ करें मजबूत उन्ही के जिनके हाथ हमारे साथ ,
करे ''शालिनी ''प्रेरित सबको आओ हम संयोजित हों .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
recent post : बस्तर-बाला,,,
आँखों से आंसू बहने की हंसी उड़ाई जाती है ,
जज्बातों को आग लगाने को ही क्या एकत्रित हो .
बढ़िया अभिव्यक्ति है तंज है .लेकिन -
देश को आंसुओं की नहीं गवर्नेंस की ज़रुरत है .चुप्पा मुंह और रोबोट ,रोतड़े चेहरे नहीं चाहिए .
आपकी अभिव्यक्ति कुछ के लिए तंज कुछ के लिए मनोरंजन लिए है जिन खोजा तिन पाइयां .
लेकिन मैँ इसमे इतना सहमत नही क्योकि मँहगाई बढाकर लोगो का दिवाला निकाल दिया हैँ
गैस
तेल
डिजल
प्रट्रोल
खाद्य सम्रागी सब कुछ
उसपर से इतने घोटाले
अनितिपुर्वक जनता अधिकार का हनन [दिल्ली रेप काँड]
अब तारिफो के इतने पुल अच्छे नही लगते
भारत की आत्मा हैँ गाँव
और किसान इसकी नीव
जाकर देखियेँ बढती मँहगाई से कितने किसान भुमिहीन हो गये कितनोँ ने आत्महत्या कर ली
मैँ किसी अन्य पछ मेँ नही लेकिन इतना सहमत भी नहीँ
बहुत दिनो के बाद एक कहानी लिखी अपने ब्लाँग उमँगे और तरंगे पर कहानी मेँ हैँ एक रात कि बातएक रात की बात हैँ आँसमा के चाँद को शुकून से देख रहा था बस देख रहा था कि चाँद को और चाँदनी रात हो गयी और एक रात वह थी जो चाँद को देख रहा था...[ पुरा पोस्ट पढने के लिए टाईटल पर क्लिक करेँ ]
क्यूं हो ऐसी बात में फंसते जो मिथ्या प्रचारित हो .
कुनबे का इकठ्ठा रखना ज़रूरी अलग अलग मुंह अलग अलग बातें न बोलें,पार्टी और सरकार का घाल मेल न हो ,ये सभी दलों पर लागू होता है .
बढ़िया प्रस्तुति ,शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी के लिए जो हमारे लिए बेशकीमती है .