मेरी माँ - मेरा सर्वस्व
वो चेहरा जो शक्ति था मेरी , वो आवाज़ जो थी भरती ऊर्जा मुझमें , वो ऊँगली जो बढ़ी थी थाम आगे मैं , वो कदम जो साथ रहते थे हरदम, वो आँखें जो दिखाती रोशनी मुझको , वो चेहरा ख़ुशी में मेरी हँसता था , वो चेहरा दुखों में मेरे रोता था , वो आवाज़ सही बातें ही बतलाती , वो आवाज़ गलत करने पर धमकाती , वो ऊँगली बढाती कर्तव्य-पथ पर , वो ऊँगली भटकने से थी बचाती , वो कदम निष्कंटक राह बनाते , वो कदम साथ मेरे बढ़ते जाते , वो आँखें सदा थी नेह बरसाती , वो आँखें सदा हित ही मेरा चाहती , मेरे जीवन के हर पहलू संवारें जिसने बढ़ चढ़कर , चुनौती झेलने का गुर सिखाया उससे खुद लड़कर , संभलना जीवन में हरदम उन्होंने मुझको सिखलाया , सभी के काम तुम आना मदद कर खुद था दिखलाया , वो मेरे सुख थे जो सारे सभी से नाता गया है छूट , वो मेरी बगिया की माली जननी गयी हैं मुझसे रूठ , गुणों की खान माँ को मैं भला कैसे दूं श्रद्धांजली , ह्रदय की वेदना में बंध कलम आगे न अब चली . शालिनी कौशिक [कौशल ]
टिप्पणियाँ
recent poem : मायने बदल गऐ
नई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in
recent post: वह सुनयना थी,
सच से इसे बैर है
शालिनी जी यह प्रयोग इंडिया देट इज भारत यह संविधान की प्रस्तावना में ही लिखा है जो भ्रामक है .'इंडिया इज इंडिया '/भारत इज भारत
कहाँ राजा भोज और कहाँ
गंगु तेली .एक भारत धर्मी समाज है जो राष्ट्रीय धारा का पोषक और समर्थक है .यह हिंदी भाषी हिन्दुस्तान भारत कहलाता है जो गुलामों की भाषा हिंदी बोलता है .
यह विकासशील भारत है .
इंडिया भरापूरा आङ्ग्ल समाज है .यहाँ देसी विदेसी गर्ल फ्रेंड रखने की परम्परा बड़ी समृद्ध है .यह युवा सम्राट राहुल का इंडिया है .
मोहन भागवत पिछड़े भारत के प्रतिनिधि है राहुल जी अगड़े इंडिया के रहनुमा हैं अजी दोनों का क्या मुकाबला .
शालिनी जी यह प्रयोग इंडिया देट इज भारत यह संविधान की प्रस्तावना में ही लिखा है जो भ्रामक है .'इंडिया इज इंडिया '/भारत इज भारत
कहाँ राजा भोज और कहाँ
गंगु तेली .एक भारत धर्मी समाज है जो राष्ट्रीय धारा का पोषक और समर्थक है .यह हिंदी भाषी हिन्दुस्तान भारत कहलाता है जो गुलामों की भाषा हिंदी बोलता है .
यह विकासशील भारत है .
इंडिया भरापूरा आङ्ग्ल समाज है .यहाँ देसी विदेसी गर्ल फ्रेंड रखने की परम्परा बड़ी समृद्ध है .यह युवा सम्राट राहुल का इंडिया है .
मोहन भागवत पिछड़े भारत के प्रतिनिधि है राहुल जी अगड़े इंडिया के रहनुमा हैं अजी दोनों का क्या मुकाबला .
२- जब भारत सचमुच भारत था तब औरत का हाल यह था कि सत्यकाम ने अपनी माँ जाबाल से अपने पिता का नाम पूछा तो वह वह बता नहीं पाई.
पंडित अनुराग शर्मा जी के अनुसार -
"उपनिषदों में जाबालि ऋषि सत्यकाम की कथा है जो जाबाला के पुत्र हैं। जब सत्यकाम के गुरु गौतम ने नये शिष्य बनाने से पहले साक्षात्कार में उनके पिता का गोत्र पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि उनकी माँ जाबाला कहती हैं कि उन्होंने बहुत से ऋषियों की सेवा की है, उन्हें ठीक से पता नहीं कि सत्यकाम किसके पुत्र हैं ?"
साभार-http://pittpat.blogspot.in/2012_05_01_archive.html
इस कथा से सच्चे प्राचीन भारत में स्त्री की गरिमा का पूरा पता चल जाता है.
"सत्यकाम जाबाल, महर्षि गौतम के शिष्य थे जिनकी माता जबाला थीं और जिनकी कथा छांदोग्य उपनिषद् में दी गई है। सत्यकाम जब गुरु के पास गए तो नियमानुसार गौतम ने उनसे उनका गोत्र पूछा। सत्यकाम ने स्पष्ट कह दिया कि मुझे अपने गोत्र का पता नहीं, मेरी माता का नाम जबाला और मेरा नाम सत्यकाम है। मेरे पिता युवावस्था में ही मर गए और घर में नित्य अतिथियों के आधिक्य से माता को बहुत काम करना पड़ता था जिससे उन्हें इतना भी समय नहीं मिलता था कि वे पिता जी से उनका गोत्र पूछ सकतीं। गौतम ने शिष्य की इस सीधी सच्ची बात पर विश्वास करके सत्यकाम को ब्राह्मणपुत्र मान लिया और उसे शीघ्र ही पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई।"
---इसी प्रकार सभी कथाएं हैं----आप जैसे लोगों की यह औकात नहीं है कि इन कथाओं के तत्व को जन सकें .....
----और सत्य तो यह है कि ऐसे ही लोगों व विचारों के कारण रेप बढ़ रहे हैं इंडिया में..
---इंडिया - भारत का अर्थ शहर व गावं नहीं अपितु ..पाश्चात्यीकरण के पथ पर चलने वाला समाज व स्व-संस्कृति पर चलने वाला अमाज है....
आपसे दो और हमसे भी एक पीढ़ी पहले के हैं .परम्परा पोषक हैं .अपने पल्लवन से जो सीखा वही कहा है .परम्परा गत रोल की आज भी हिमायत की है अपने एक वक्तव्य में लेकिन उनके कहे को
सामाजिक तत्कालीन सन्दर्भों में ही देखा जाना चाहिए .
जहां तक इंडिया और भारत का सवाल है विभाजन दो टूक है .मूल्य बोध अलग अलग हैं .दोनों के .
आपकी सद्य टिप्पणियाँ हमारी धरोहर हैं .आंकड़ों से कुछ सिद्ध नहीं होता सच यह है शहर में हर तीसरे आदमी का दवाब थाणे पे पड़ता है मुजरिम छूट जाते हैं .बलात्कार तो अब इंडिया का आधार
कार्ड बनता जा रहा है इसे रोका जाना हमारे वक्त की सबसे बड़ी समस्या है .
आज सबसे बड़ी समस्या नाबालिग बालिगों की बढ़ती खुराफातों की है .इन्हें अपराध का अपने किए का बा -कायदा इल्म होता है नियोजित तरीके से करते हैं यह अपराध .जुनेनाइल जैसा इनमें
कुछ भी नहीं है
क्या सत्यकाम के दादा, चाचा और ससुराल के लोगों में से कोई भी जीवित न था ?
सत्यकाम के पिता जी का उपनयन भी किसी पंडित ने ज़रूर किया होगा और वह जिस गुरुकुल में पढ़े होंगे , उनसे भी पूछा जा सकता था कि मेरे मरे हुए पति का गोत्र क्या था ?
आज भी किसी का पति मर जाता है तो क्या उसे उसका गोत्र पता नहीं लग पाता ?
पति के बजाय मां को आज भी स्कूल में अपना नाम लिखाना पड़ता है. बच्चे के बाप का नाम पता न हो तो जो आज करना पड़ता है और प्राचीन भारत में भी यही किया जाता था.
प्राचीन भारत का समाज आज के पश्चिमी समाज से बहुत अधिक उदार था.
कृप्या ध्यान दीजिए कि
1. सत्काम जाबालि ऋषि की कथा को हिंदी के प्रतिष्ठित ब्लॉगर पं. अनुराम शर्मा जी की पोस्ट के हवाले से पेश किया गया है। उनकी पोस्ट का लिंक यह है। लिहाज़ा आपको जो कहना हो, उनकी इस पोस्ट पर जाकर कहें-
http://pittpat.blogspot.in/2012_05_01_archive.html
2. मोहन भागवत जी ने भारत और इंडिया का अंतर अपने बयान में ख़ुद ही स्पष्ट कर दिया है कि भारत से तात्पर्य जंगल और गांव हैं और इंडिया से तात्पर्य शहर हैं।
ऐसे में आप भारत और इंडिया से क्या अर्थ लेते हैं ?, यह आपका विचार है न कि मोहन भागवत जी जैसे उदभट् विद्वान का। फिर भी अगर आप करेक्शन करना चाहें तो उनसे पत्राचार करके उन्हें सही अर्थ बता दें कि भारत और इंडिया का सही अर्थ आपने क्या निश्चित किया है ?
आप आगे भी उनका मार्गदर्शन करते रहा करें तो बहुत सी कमियां दूर हो जाएंगी। ज़माना आपका इंतेज़ार कर रहा है। सब मूर्ख हैं। बस एक आप ही के पास अक्ल है।
कमेंट के लिए शुक्रिया .
---किस मूर्ख ने मो.भागवत के कथन का अर्थ --शहर व गाँव लिया है....इसका अर्थ ही आप लोग नहीं समझ पा रहे हैं .... यह सांस्कृतिक मूल्यानुसार विभाजन है....
--- वो समय सारे दादा--चाचा--मामा के साथ-साथ रहने का नहीं था अपितु किशोर होने से पहले ही व्यक्ति परिवार से अलग होकर ज्ञानार्जन में लग जाता था एवं तत्पश्चात घर लौटने की अपेक्षा आगे तप हेतु अपना पृथक घर बना लेता था ... संयुक्त -परिवार--कुटुंब--में सभी के साथ-साथ रहने की व्यवस्था बहुत बाद में प्रारम्भ हुई --
कृपया मूल श्लोक का हवाला दें वर्ना अपनी कल्पनाओं के आधार पर सबको गलत न कहें.