@मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .


Is crime against women an issue of 'Bharat' versus 'India'?

'' बंटवारे की राजनीति ने देश अपाहिज बना दिया ,
    जो अंग्रेज नहीं कर पाए वो हमने करके दिखा दिया -अज्ञात ''

 भारत वर्ष एक ऐसा देश जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और ये तो भारत संविधान निर्माण के पश्चात् हुआ उससे बहुत सदियाँ पहले से भारत विश्व की विभिन्न संस्कृतियों  का शरणदाता रहा .हमारा इतिहास बहुत सुदृढ़ है और नई पुरानी बहुत सी संस्कृतियों के सम्मिलित होने पर भी इसका अस्तित्व कभी विच्छिन्न नहीं हुआ बल्कि एक विशाल समुंद्र की तरह  और भी विस्तृत होता गया और यही इतिहास कहता है -

   ''भारत में वर्तमान में अधिकांश जनसँख्या [आदिवासी को छोड़कर]आर्यों की है .ये भारत के मूल निवासी नहीं हैं .इनके आगमन के बारे में विद्वानों में काफी मतभेद हैं .आधुनिक इतिहासवेत्ताओं के अनुसार इनका मूल निवास उत्तरी-पूर्वी ईरान ,कैस्पियन सागर के समीप क्षेत्र या मध्य एशिया ,यूरोप के आल्पस क्षेत्र में था जबकि दूसरे कुछ इसे अंग्रेजी हुक्मरानों का तर्क बताते हुए आर्यों को यहाँ का मूल निवासी मानते हैं .

    वैदिक आर्यों ने उत्तर पश्चिम की ओर बहने वाली नदी को सिन्धु कहकर पुकारा बाद में ईरानियों ने इसे ही हिन्दू नदी का नाम दिया और इसी [सिन्धु'हिन्दू']नदी के नाम पर इस देश का नाम हिंदुस्तान पड़ा .
     यूनानियों और रोम निवासियों ने क्योंकि इस नदी को 'इंडस'कहा ,इसलिए उसी के आधार पर इस देश का नाम 'इंडिया 'पड़ा .''-प्राचीन भारतीय इतिहास -भारत ज्ञान कोष की प्रस्तुत जानकारी ''

      भारत ज्ञान कोष कहता है कि सिन्धु नदी को यूनानियों और रोम निवासियों ने इंडस कहा और उसके आधार पर हमारे देश का नाम इंडिया पड़ा .इंडिया जो गांवों और शहरों में कोई विभाजन नहीं करता हुआ सभी को अपने साथ लेकर चलता है किन्तु देश का स्वयं सेवक कहने का दम भरने वाले आर.एस.एस.प्रमुख देश के वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा को ठेंगा दिखाते हुए यहाँ भी विभाजन ले आते हैं और कहते हैं -''इस तरह की घटनाएँ इंडिया [शहरों]में होती हैं ,भारत[गावों]में नहीं.''

     आखिर इतना अल्प ज्ञान लेकर और केवल विदेशी विरोध की भावना से ग्रसित होकर वे इतने संवेदनशील मुद्दे पर अपने विचार किस अधिकार से रखते हैं ?देश के इतने विशिष्ट संगठन के प्रमुख होकर क्या देश के वर्तमान संकट से निपटने के लिए वे अपने राजनीति को ही प्रमुखता देते हैं ?देश के इस भयावह मुद्दे पर ऐसे वक्तव्य देने का हक़ उन्हें कहाँ से मिला ''भारतीय संविधान''से या ''इंडियन कोन्सटीट्यूशन  ''से ?

 क्या समाचार  पत्रों में निरंतर छपते हुए ये समाचार उनके  कथित भारत के नहीं हैं -
१-गाँव पांचली बुजुर्ग ,सरूरपुर मेरठ में धर्म स्थल में एक किशोरी से गैंगरेप -४ जनवरी ,मुख्य पृष्ठ अमर उजाला .
२-गाँव जिटकरी ,थाना सरधना मेरठ के युवक द्वारा शामली की किशोरी को शादी का झांसा दे ३ साल तक यौन  शोषण -५ जनवरी २०१३ ,दैनिक जागरण /शामली जागरण
३-गाँव तिसंग ,जानसठ ,किशोरी से सामूहिक दुष्कर्म ,५ जनवरी २०१३ ,दैनिक जागरण/शामली मुजफ्फरनगर जागरण .

    क्या ये गाँव मोहन भागवत  जी के भारत के नहीं हैं ?
आज सारा भारत ,सारी इंडिया ऐसी घटनाओं से आक्रांत हैं ,त्रस्त हैं और यदि वे केवल राजनेता हैं तो ही उनसे ऐसे ही वक्तव्यों  की ही उम्मीद की जा सकती है किन्तु यदि वे वास्तव में स्वयं सेवक हैं ,सच्चे भारतीय हैं और सबसे पहले एक इन्सान हैं तो ऐसी घटनाएँ भले ही शहरों में हों या गांवों में वे इन्हें समस्त देश की ही मानेंगे और इनमे इतना तुच्छ विश्लेषण कर अपनी जिम्मेदारी जो एक नागरिक के तौर पर है उससे मुहं नहीं मोडेंगे.  

     जैसे कि कवि गोपाल दास ''नीरज''जी ने कहा है-
 ''अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाये ,
     जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाये .
आग बहती है यहाँ गंगा में भी ,झेलम में भी,
     कोई बतलाये कहाँ जाके नहाया जाये .
मेरे दुःख दर्द का तुझ पर हो असर ऐसा ,
    मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाये .''

  शालिनी कौशिक
   [कौशल]


  

टिप्पणियाँ

Rohitas Ghorela ने कहा…
शालिनी जी मैं समझता हूँ की भारत को गाँव का नाम देना और इंडिया को शहर का नाम देना कतई उचित नहीं है .. वो बदलती हुई संस्कृति को इंडिया कह रहे है ये बहुत हद तक ठीक है विदेशियों की वेशभूषा का अनुसरण करना और सरेआम नग्नता का प्रदर्शन करना ये भारत में कभी नहीं था। ये सब फिरंगियों के यहाँ होता था ...

recent poem : मायने बदल गऐ
केवल मीडिया जो कह रहा है उसको वैसे ही लेना ठीक नहीं ... गहराई में जा के सोचना जरूरी है ... भारत एक ही है ... भारत वासी जहाँ रहते हैं ... ऐसा भी नहीं है की पुरानी विचारधारा पूर्ण रूप से सही ही है ... पर अपवाद के साथ भी अपनी पुरातन संस्कृति से इस समस्या का हल दूरगामी हो सकता है ...
आपका विश्लेषण सटीक है.
नई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in
Rajput ने कहा…
फिर भी अगर देखा जाये तो फैशन के नाम में नग्नता गावों में नहीं है . मगर ये कहना की ऐसे अधनगे बदन बलात्कार का कारण हैं , ये गलत है।
भागवत जी का व्यान अनुचित है....

recent post: वह सुनयना थी,
kshama ने कहा…
Ye insanon kee aulad insan kyon nahi banti? Bahut aaveshpoorn lekhan hai aapka!
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूं। आपका अच्छा प्रयास है। भागवत जी के बयान से सहमत होना मुश्किल है। भारत को भारत ही रहने दें, तो अच्छा है।
भागवत जी जिस और इशारा कर रहें हैं वो विचारणीय हो सकता था लेकिन उन्होंने जिस तरीके से कहा है वो विवादित ही कहा जाएगा और वो जिस और इशारा कर रहे हैं वो भी कहीं ना कहीं विवादों में खो गया !!
Bhola-Krishna ने कहा…
हम आपसे सहमत हैं! भागवत जी का कथन सर्वथा अनुचित और अप्रासंगिक है
Ayaz ahmad ने कहा…
भागवत समाज का चलन उल्टा है
सच से इसे बैर है
virendra sharma ने कहा…
सार्थक सन्देश और विश्लेषण करती प्रासंगिक रचना .आपकी सद्य टिपण्णी का आभार .

शालिनी जी यह प्रयोग इंडिया देट इज भारत यह संविधान की प्रस्तावना में ही लिखा है जो भ्रामक है .'इंडिया इज इंडिया '/भारत इज भारत

कहाँ राजा भोज और कहाँ

गंगु तेली .एक भारत धर्मी समाज है जो राष्ट्रीय धारा का पोषक और समर्थक है .यह हिंदी भाषी हिन्दुस्तान भारत कहलाता है जो गुलामों की भाषा हिंदी बोलता है .
यह विकासशील भारत है .

इंडिया भरापूरा आङ्ग्ल समाज है .यहाँ देसी विदेसी गर्ल फ्रेंड रखने की परम्परा बड़ी समृद्ध है .यह युवा सम्राट राहुल का इंडिया है .

मोहन भागवत पिछड़े भारत के प्रतिनिधि है राहुल जी अगड़े इंडिया के रहनुमा हैं अजी दोनों का क्या मुकाबला .
virendra sharma ने कहा…
सार्थक सन्देश और विश्लेषण करती प्रासंगिक रचना .आपकी सद्य टिपण्णी का आभार .

शालिनी जी यह प्रयोग इंडिया देट इज भारत यह संविधान की प्रस्तावना में ही लिखा है जो भ्रामक है .'इंडिया इज इंडिया '/भारत इज भारत

कहाँ राजा भोज और कहाँ

गंगु तेली .एक भारत धर्मी समाज है जो राष्ट्रीय धारा का पोषक और समर्थक है .यह हिंदी भाषी हिन्दुस्तान भारत कहलाता है जो गुलामों की भाषा हिंदी बोलता है .
यह विकासशील भारत है .

इंडिया भरापूरा आङ्ग्ल समाज है .यहाँ देसी विदेसी गर्ल फ्रेंड रखने की परम्परा बड़ी समृद्ध है .यह युवा सम्राट राहुल का इंडिया है .

मोहन भागवत पिछड़े भारत के प्रतिनिधि है राहुल जी अगड़े इंडिया के रहनुमा हैं अजी दोनों का क्या मुकाबला .
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
१- जब भारत इण्डिया नहीं बना था , क्या तब यहाँ अहिल्या को छोड़ दिया जाता था ?
२- जब भारत सचमुच भारत था तब औरत का हाल यह था कि सत्यकाम ने अपनी माँ जाबाल से अपने पिता का नाम पूछा तो वह वह बता नहीं पाई.
पंडित अनुराग शर्मा जी के अनुसार -
"उपनिषदों में जाबालि ऋषि सत्यकाम की कथा है जो जाबाला के पुत्र हैं। जब सत्यकाम के गुरु गौतम ने नये शिष्य बनाने से पहले साक्षात्कार में उनके पिता का गोत्र पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि उनकी माँ जाबाला कहती हैं कि उन्होंने बहुत से ऋषियों की सेवा की है, उन्हें ठीक से पता नहीं कि सत्यकाम किसके पुत्र हैं ?"
साभार-http://pittpat.blogspot.in/2012_05_01_archive.html

इस कथा से सच्चे प्राचीन भारत में स्त्री की गरिमा का पूरा पता चल जाता है.
आपकी बात से असहमत होने का कोई कारण नहीं है! हांलांकि ये सच है कि देश भारत और इंडिया में बंट चुका है! जिसे बलात्कार से जोड़ना भागवत की रुग्ण और संकीर्ण मानसिकता का द्योतक है!
आपका विश्लेषण काफी सटीक है.
सही कहा रोहित जी ....लोगों को भारत व इंडिया की समझ ही नहीं है...दौड़ कर टिप्पणी करने पोस्ट लिखने चल देते हैं...
-- अरे मूर्ख लोगो ..जरा कथाएँ ठीक ढंग से तो पढो और अर्थ समझो....सही कथा यह है ...


"सत्यकाम जाबाल, महर्षि गौतम के शिष्य थे जिनकी माता जबाला थीं और जिनकी कथा छांदोग्य उपनिषद् में दी गई है। सत्यकाम जब गुरु के पास गए तो नियमानुसार गौतम ने उनसे उनका गोत्र पूछा। सत्यकाम ने स्पष्ट कह दिया कि मुझे अपने गोत्र का पता नहीं, मेरी माता का नाम जबाला और मेरा नाम सत्यकाम है। मेरे पिता युवावस्था में ही मर गए और घर में नित्य अतिथियों के आधिक्य से माता को बहुत काम करना पड़ता था जिससे उन्हें इतना भी समय नहीं मिलता था कि वे पिता जी से उनका गोत्र पूछ सकतीं। गौतम ने शिष्य की इस सीधी सच्ची बात पर विश्वास करके सत्यकाम को ब्राह्मणपुत्र मान लिया और उसे शीघ्र ही पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई।"
---इसी प्रकार सभी कथाएं हैं----आप जैसे लोगों की यह औकात नहीं है कि इन कथाओं के तत्व को जन सकें .....
----और सत्य तो यह है कि ऐसे ही लोगों व विचारों के कारण रेप बढ़ रहे हैं इंडिया में..
---इंडिया - भारत का अर्थ शहर व गावं नहीं अपितु ..पाश्चात्यीकरण के पथ पर चलने वाला समाज व स्व-संस्कृति पर चलने वाला अमाज है....
जो सदा स्वयं शराब के नशे में रहता हो उसके कथन--कविता का क्या मूल्य...
virendra sharma ने कहा…
शालिनी जी आपने बहुत मेहनत की है यह पोस्ट लिखने में लेकिन आर्य अनार्य का भागवत सन्दर्भ से क्या लेना देना .फिर आर्य /अनार्य का बलात्कार से क्या सम्बन्ध है ?स्पस्ट नहीं है .भागवत जी

आपसे दो और हमसे भी एक पीढ़ी पहले के हैं .परम्परा पोषक हैं .अपने पल्लवन से जो सीखा वही कहा है .परम्परा गत रोल की आज भी हिमायत की है अपने एक वक्तव्य में लेकिन उनके कहे को

सामाजिक तत्कालीन सन्दर्भों में ही देखा जाना चाहिए .

जहां तक इंडिया और भारत का सवाल है विभाजन दो टूक है .मूल्य बोध अलग अलग हैं .दोनों के .

आपकी सद्य टिप्पणियाँ हमारी धरोहर हैं .आंकड़ों से कुछ सिद्ध नहीं होता सच यह है शहर में हर तीसरे आदमी का दवाब थाणे पे पड़ता है मुजरिम छूट जाते हैं .बलात्कार तो अब इंडिया का आधार

कार्ड बनता जा रहा है इसे रोका जाना हमारे वक्त की सबसे बड़ी समस्या है .

आज सबसे बड़ी समस्या नाबालिग बालिगों की बढ़ती खुराफातों की है .इन्हें अपराध का अपने किए का बा -कायदा इल्म होता है नियोजित तरीके से करते हैं यह अपराध .जुनेनाइल जैसा इनमें

कुछ भी नहीं है
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ डा. श्याम गुप्त जी ! क्या आपको अपनी स्टोरी में झोल नज़र नहीं आता कि सत्यकाम के पिता जी जवानी में ही मर गए थे और जाबाला उनसे उनका गोत्र नहीं पूछ पाईं थीं ?
क्या सत्यकाम के दादा, चाचा और ससुराल के लोगों में से कोई भी जीवित न था ?
सत्यकाम के पिता जी का उपनयन भी किसी पंडित ने ज़रूर किया होगा और वह जिस गुरुकुल में पढ़े होंगे , उनसे भी पूछा जा सकता था कि मेरे मरे हुए पति का गोत्र क्या था ?
आज भी किसी का पति मर जाता है तो क्या उसे उसका गोत्र पता नहीं लग पाता ?
पति के बजाय मां को आज भी स्कूल में अपना नाम लिखाना पड़ता है. बच्चे के बाप का नाम पता न हो तो जो आज करना पड़ता है और प्राचीन भारत में भी यही किया जाता था.
प्राचीन भारत का समाज आज के पश्चिमी समाज से बहुत अधिक उदार था.
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ @ डा. श्याम गुप्त जी ! अगर आप पोस्ट भी ढंग से न पढ़ सकें तो आपकी नासमझी की वजह से दूसरे मूर्ख कैसे हो जाएंगे ?
कृप्या ध्यान दीजिए कि
1. सत्काम जाबालि ऋषि की कथा को हिंदी के प्रतिष्ठित ब्लॉगर पं. अनुराम शर्मा जी की पोस्ट के हवाले से पेश किया गया है। उनकी पोस्ट का लिंक यह है। लिहाज़ा आपको जो कहना हो, उनकी इस पोस्ट पर जाकर कहें-
http://pittpat.blogspot.in/2012_05_01_archive.html

2. मोहन भागवत जी ने भारत और इंडिया का अंतर अपने बयान में ख़ुद ही स्पष्ट कर दिया है कि भारत से तात्पर्य जंगल और गांव हैं और इंडिया से तात्पर्य शहर हैं।
ऐसे में आप भारत और इंडिया से क्या अर्थ लेते हैं ?, यह आपका विचार है न कि मोहन भागवत जी जैसे उदभट् विद्वान का। फिर भी अगर आप करेक्शन करना चाहें तो उनसे पत्राचार करके उन्हें सही अर्थ बता दें कि भारत और इंडिया का सही अर्थ आपने क्या निश्चित किया है ?
आप आगे भी उनका मार्गदर्शन करते रहा करें तो बहुत सी कमियां दूर हो जाएंगी। ज़माना आपका इंतेज़ार कर रहा है। सब मूर्ख हैं। बस एक आप ही के पास अक्ल है।
कमेंट के लिए शुक्रिया .
----किसी भी पोस्ट की बजाय कहानी को गूगल-विकीपेडिया पर जिसमें बहुत से बिंदु दिए होते हैं शास्त्रीय भी ..फालतू भी ..अपना-अपना नज़रिया भी ..या मूल शास्त्र पर पढ़ें --ब्लोगर अनुराग शर्मा कोइ शास्त्रकार तो हैं नहीं जो उनकी बात सत्य सर्वमान्य होगयी .. उनहोंने भी आपकी ही भाँति किसी पोस्ट में पढ़ लिया होगा...आपको सिर्फ अपने अर्त्ढ़ निकालने से मतलब है ...वास्तविकता से आपको क्या लेना-देना....
---किस मूर्ख ने मो.भागवत के कथन का अर्थ --शहर व गाँव लिया है....इसका अर्थ ही आप लोग नहीं समझ पा रहे हैं .... यह सांस्कृतिक मूल्यानुसार विभाजन है....
अरे ...उपनयन संस्कार के लिए ही तो गुरुकुल में भरती होने गया था ...

--- वो समय सारे दादा--चाचा--मामा के साथ-साथ रहने का नहीं था अपितु किशोर होने से पहले ही व्यक्ति परिवार से अलग होकर ज्ञानार्जन में लग जाता था एवं तत्पश्चात घर लौटने की अपेक्षा आगे तप हेतु अपना पृथक घर बना लेता था ... संयुक्त -परिवार--कुटुंब--में सभी के साथ-साथ रहने की व्यवस्था बहुत बाद में प्रारम्भ हुई --
तो उद्भट विदान भी आपके ( व अन्य कमेंटेटरों) अनुसार मूर्ख है जो सब लोग उसे वेवकूफी की बातें कह रहे है .... यदि उद्भट विद्वान् हैं तो उनकी बातें भी सही माने जाने चाहिए .....
शर्मा जी --- आर्य -अनार्य का सही अर्थ समझेगे तो भागवत जी की टिप्पणी का अर्थ भी समझ में आ जायगा ...और बलात्कार से सम्बन्ध भी....वही संस्कारवान एवं कुसंस्कारवान .....
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
@ श्याम गुप्ता जी ! आप पण्डित अनुराग शर्मा के द्वारा बताई कहानी को भी मानने से इंकार कर रहे हैं और ऐसा दिखा रहे हैं जैसे कि आपने य्ह कथा मूल ग्रंथ में पढी है.
कृपया मूल श्लोक का हवाला दें वर्ना अपनी कल्पनाओं के आधार पर सबको गलत न कहें.
Zafar ने कहा…
Very nice post. Every one give the meanings to the words as per his own interest, totally ignoring the truth and facts. But he wise persons always accept and embrace the truth.
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
ham satykaam ke pita ji ke upnayan sankar ki baat kar rahe hain, pahle samajh to lijiye bhai sahab.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

बेटी का जीवन बचाने में सरकार और कानून दोनों असफल

नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले