अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं .
तबस्सुम चेहरे पर लाकर हलाक़ करते हैं ,
अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं .
बरकंदाज़ी करते ये फरीकबंदी की ,
इबादत गैरों की अपनों से फरक करते हैं .
फ़रेफ्ता अपना ही होना फलसफा इनके जीवन का ,
फर्जी फरजानगी की शख्सियत ये रखते हैं .
मुनहसिर जिस सियासत के मुश्तरक उसमे सब हो लें ,
यूँ ही मौके-बेमौके फसाद करते हैं .
समझते खुद को फरज़ाना मुकाबिल हैं न ये उनके,
जो अँधेरे में भी भेदों पे नज़र रखते हैं .
तखैयुल पहले करते हैं शिकार करते बाद में ,
गुप्तचर मुजरिम को कुछ यूँ तलाश करते हैं .
हुआ जो सावन में अँधा दिखे है सब हरा उसको ,
ऐसे रोगी जहाँ में क्यूं यूँ खुले फिरते हैं .
रश्क अपनों से रखते ये वफ़ादारी करें उनकी ,
मिटाने को जो मानवता उडान भरते हैं .
हकीकत कहने से पीछे कभी न हटती ''शालिनी''
मौजूं हालात आकर उसमे ये दम भरते हैं .
शब्दार्थ-तखैयुल -कल्पना ,फसाद-लड़ाई-झगडा ,फरज़ाना -बुद्धिमान ,मुनहसिर-आश्रित ,बरकंदाज़ी -चौकीदारी ,रश्क-जलन ,फरक-भेदभाव .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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ऐसे रोगी जहाँ में क्यूं यूँ खुले फिरते हैं .
रश्क अपनों से रखते ये वफ़ादारी करें उनकी ,
मिटाने को जो मानवता उडान भरते हैं .
हकीकत कहने से पीछे कभी न हटती ''शालिनी''
मौजूं हालात आकर उसमे ये दम भरते हैं .