अरे भई मेरा पीछा छोडो .






     कविवर गोपाल दास ''नीरज''ने कहा है -
  ''जितनी देखी दुनिया सबकी दुल्हन देखी ताले में
   कोई कैद पड़ा मस्जिद में ,कोई बंद शिवाले में ,
    किसको अपना हाथ थमा दूं किसको अपना मन दे दूँ ,
   कोई लूटे अंधियारे में ,कोई ठगे उजाले में .''
धर्म के   ये ही दो रूप हमें भी दृष्टिगोचर होते हैं .कोई धर्म के पीछे अँधा है तो किसी के लिए धर्म मात्र दिखावा बनकर रह गया है .धर्म के नाम पर सम्मेलनों की ,विवादों की ,शोर-शराबे की संख्या तो दिन-प्रतिदिन तेजी से बढती जा रही है लेकिन जो धर्म का मर्म है उसे एक ओर रख दिया गया है .आज जहाँ देखिये कथा वाचक कहीं भगवतगीता ,कहीं रामायण बांचते नज़र आयेंगे ,महिलाओं के सत्संगी संगठन नज़र आएंगे .विभिन्न समितियां कथा समिति आदि नज़र आएँगी लेकिन यदि आप इन धार्मिक समारोहों में कथित सौभाग्य से  सम्मिलित होते हैं तो ये आपको पुरुषों का  बड़े अधिकारियों, नेताओं से जुड़ने का बहाना ,महिलाओं का एक दूसरे की चुगली करने का बहाना  ही नज़र आएगा .
     दो धर्म विशेष ऐसे जिनमे एक में संगीत पर पाबन्दी है तो गौर फरमाएं तो सर्वाधिक कव्वाली,ग़ज़ल गायक आपको उसी धर्म विशेष में मिलेंगे और एक अन्य धर्म के प्रवचन स्थल पर उन उपदेशों को दरकिनार कर उनके ही धर्मावलम्बियों का बड़ी संख्या आगमन भी दिखेगा .
     धर्मान्धता देखकर ही कबीर दास ने कहा था -
''पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहार ,
ताते ये चाकी भली ,पीस खाए संसार .''

''कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाये ,
ता चढ़ी मुल्ला बाँगी  दे ,क्या बहरा हुआ खुदाए .''
इन  धर्मों के कामों में यदि कुछ कहा जाये तो बबाल पैदा हो जाते हैं  और न कहने पर जो शोर-शराबे की मार पड़ती है वह असहनीय है .लाउडस्पीकर ,जेनरेटर,डी.जे.जैसे अत्याधुनिक यंत्रों के प्रयोग ने आज जनता को वास्तव में ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन के रूप में सिरदर्द दे दिया है .रोज कोई न कोई आयोजन है और प्रतिदिन उपदेशों के नदियाँ बह रही हैं .फिर भी देश समाज के हाल बेहाल हुए जा रहे हैं .
   कहीं भजन बजता है -
''भला किसी का कर न सको तो बुरा किसी का मत करना ,
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम कांटे बनकर मत रहना .''

लोग गाते हैं गुनगुनाते हैं ,तालियाँ बजाते हैं और करते क्या हैं वही जो करना है -लूट -खसोट ,इधर का मॉल उधर -उधर का मॉल इधर .चारों ओर ढकोसले बाजी चल रही है ..भगवा वेश में २५-३० लोगों की बस रोज किसी न किसी शहर में पहुँचती है ,दिन निर्धारित है किस किस दिन आएंगे .भगवा वस्त्र पहनकर आते हैं लोगों से, दुकानदारों से धार्मिक भावना के नाम पर ५०-५० पैसे लेते हैं और अपने अड्डे पर पहुंचकर शराब ,जुए,भांग में उड़ाते हैं .धर्म आज ऐसे ही दिखावों का केंद्र बनकर रह गया है .
     जगह जगह आश्रम खुले हैं .अन्दर के धंधे सभी जानते हैं यही कि ये आश्रम राजनीतिज्ञों के दम पर फल फूल रहे हैं और आम जनता बेवकूफ बन उन साधू महात्माओं के चरण पूज रही है .जिनके काले कारनामे आये दिन सभी के सामने आ रहे हैं .कहने को इन साधू संतों को सांसारिक माया-मोह से कुछ लेना -देना नहीं और  सांसारिक  सुख सुविधा का हर सामान इनके आश्रमों में भरा पड़ा है .दिन प्रतिदिन आश्रमों की चारदीवारी बढती जा रही है और कितने ही अपराधिक कार्य यहाँ से संचालित किये जाते हैं और प्रशासन जनता में इनके प्रति निष्ठा के कारण उसके भड़कने की आशंका से इनपर हाथ डालते हुए घबराते हैं और इसी का दुष्प्रभाव है कि आज जनता की धर्मान्धता का लाभ उठाकर ये आश्रम बहुत बड़े क्षेत्र को निगलते जा रहे हैं .
   इसी कारण लगता है कि आज धर्म भी जनता से अपना पीछा छुड़ाने के मूड में है क्योंकि जो काम आज धर्मस्थलों से संचालित हो रहे हैं और धर्म के नाम पर संचालित किये जा  रहे है उन्हें हमारे किसी भी धर्म ने महत्व नहीं दिया .इसलिए लगता है कि धर्म भी आज यही कह रहा है -
''वो आये मेरी कब्र पे दिया बुझाके चल दिए ,
दिए में जितना तेल था सर पे लगाके चल दिए .''
           शालिनी कौशिक
                  [कौशल ]


टिप्पणियाँ

धर्म के नाम पर जितना गोरख धंधा अपने देश में होता है शायद कहीं होता हो....

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Bhola-Krishna ने कहा…
बिलकुल सच कहा है आपने ! पूर्णतः सहमत हैं हम आपसे ! मानव का वास्तविक धर्म क्या है? भूल गई है मानवता ! आजकल हमदोनों भी उसे समझने का प्रयास कर रहे हैं ! जो थोड़ा बहुत हमारी समझ मे आजाता है उसे अपने ब्लॉग द्वारा भारतीय नौनिहालों के लिए प्रेषित कर देते हैं ! - बेटा दुआ करें ! सद्बुद्धि मिले समग्र मानवता को [जिसमे हम भी शामिल हैं]! आशीर्वाद ,
"भोला-कृष्णा" - ब्रूक्लाइन,[ एम् ए]. यू.एस.ए.
लोगों का स्वार्थ ही अन्ततः सर चढ़ कर बोलता है।
Rajendra kumar ने कहा…
''कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाये ,
ता चढ़ी मुल्ला बाँगी दे ,क्या बहरा हुआ खुदाए .''

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,शुभकामनायें.
रविकर ने कहा…
बढ़िया प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||
Amrita Tanmay ने कहा…
हम ही बेवकूफ हैं तब तो किसी की चांदी कटती है..कब बदलेगी हालत..
behatareen andaj aur usse bhi kahi behatareen chintan
Blogvarta ने कहा…
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धन्यवाद
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vishvnath ने कहा…
बहुत सुन्दर लिखा है शालिनी जी,
आपने मुझे भी प्रेरित कर दिया इस लेख से ...
आज बस स्वार्थ हावी है ... चाहे किसी भी नाम से हो ...
पैसा कमाना सबसे बड़ा धर्म है ...
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
''कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाये ,
ता चढ़ी मुल्ला बाँगी दे ,क्या बहरा हुआ खुदाए .''

यह बात कबीर दास के संग्रह बीजक में नहीं मिलती। कबीर दास जी की बातों से मूर्ति पूजा का खंडन हो रहा था और इससे उनके इसलाम में जाने का मूड बन सकता था। इसी संभावना का द्वार बंद करने के लिए कुछ तत्वों ने इस तरह की बातें कबीर साहब के नाम से लिख कर प्रचारित कर दीं। कबीर साहित्य पर शोध करने वालों ने ऐसे ढेरों फ़र्ज़ी दोहे चिन्हित किए हैं।
इसलाम में सादगी और मर्यादा के साथ गाने, नाचने और दफ़ बजाने की अनुमति है। उसे ज़्यादा किया जाएगा तो फिर अनर्थ हो जाएगा।
.
आस्था के नाम से धर्म में जो शोषण हो रहा है उसे रोकने में इस प्रकार का लेख अधिक से अधिक लिखा जाना चाहिए और जनता के सज्ञान में लाना चाहिए . शालिनी जी बधाई !
new postक्षणिकाएँ
सही लेखन और सार्थक प्रस्तुति !!
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Satish Saxena ने कहा…
नीरज जी ने ठीक ही कहा है ..
Vishnukant Mishra ने कहा…
yeh lekh ek sarthak aur sateek vivechna hai aaj ke aadmbr grst smaj ke liye....Shalini ji hardik vadhai.

शारदा अरोरा ने कहा…
सार्थक पोस्ट ...इन्ही कारणों से धर्म पर से विश्वास उठ जाता है....
rishivichar ने कहा…
उत्तम विचार
धारणात धर्म किसी अच्छे गुण को जीवन में धारण करना धर्म है अपने मानवीय कर्त्तव्यों का निर्वहन करना धर्म है वर्तमान में धर्म की दुकानें ज्यादा है वास्तव में वे धर्म नहीं अपितु मत हैं जो व्यक्ति विशेष के द्वारा प्रचारित किये गए हैं
rishivichar ने कहा…
शालिनी जी आपके ब्लाग में यदि ई-मैल द्वारा लेख प्राप्ति की सुविधा होवे तो और अच्छा होगा आपके द्वारा की गई पोस्ट शीघ्र ही पाठक को मिल जायेगी व अच्छे विचारों का व्यापक प्रचार होगा
rishivichar ने कहा…
http://rishivichar.blogspot.in/

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