ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ?
ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ?
दामिनी गैंगरेप कांड अब न्यायालय में विचाराधीन है और न्यायालय अपनी प्रक्रिया के तहत इसके विचारण व् निर्णय में त्वरित कार्यवाही के लिए प्रयत्न शील हैं .१६ दिसंबर २०१२ की रात को बर्बरता की हदें लांघने वाला ये मामला जैसे ही जनता के संज्ञान में आया वैसे ही सोयी जनता एक ओर तो दामिनी के दर्द से कराह उठी और दूसरी ओर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की सुरक्षा के लिए व्याकुल हो उठी और चल पड़ी सोये व् अत्याचारी ,लापरवाह व् निरंकुश सरकार व् प्रशासन को जगाने .न केवल दिल्ली बल्कि सम्पूर्ण देश -पूरी दुनिया ने इस मामले का संज्ञान लिया और हिला कर रख दिया आज के राजनीतिज्ञों के रवैय्ये को जिसके परिणाम स्वरुप सरकार के बड़े बड़े चेहरे कभी जनता के बीच आकर, कभी दामिनी के घर जाकर हमदर्दों की सूची में जुड़ने की कोशिश करने लगे लेकिन जनता ने केवल उनको इस दुर्दांत घटना के लिए जिम्मेदार माना और उन्हें किसी तरह का कोई स्थान अपनी भावनाओं के बीच नहीं लेने दिया .जो विरोध प्रदर्शन दामिनी के साथ हुई बर्बरता से आरम्भ हुए थे वे उसकी दुर्दांत मृत्यु के पश्चात् भी चलते रहे थे और चलते रहते यदि न्यायालय की कार्यवाही में उन्हें कोई भी लापरवाही का अंश दिखाई देता .जिस दिन से दामिनी गैंगरेप कांड हुआ उस दिन से तो देश भर की अदालतें ऐसे मामलों में अति सक्रिय हो गयी .और ऐसे अपराधों के त्वरित विचारण व् निबटारे के लिए प्रयत्नशील हो गयी .न्यायालयों की ऐसी कार्यवाही ने जनता में ये विश्वास उत्पन्न किया ''कि दामिनी को अवश्य न्याय मिलेगा.''
किन्तु शायद ये विश्वास दामिनी के पिता को नहीं हो पाया और इसी का परिणाम है कि वे न्यायालयों से ज्यादा राजनीतिज्ञों में भरोसा कर रहे हैं .कभी वे सोनिया गाँधी तो कभी राहुल गाँधी से मिलने की इच्छा जताते हैं और वे क्या नहीं समझते कि ये जनता की उनसे हमदर्दी व् चुनाव २०१४ के निकट होने का ही परिणाम है कि ये दोनों उनके घर पहुँच जाते हैं .
क्या वे नहीं समझ पाते हमारी राजनीति को जो आज फ़ोन नंबर दे व्यक्तिगत संपर्क में रहने की बात कह रहे हैं चुनाव पश्चात् सामने उपस्थित को भी पहचानने में भी अनभिज्ञता जताते देर नहीं करेंगे .
राजनीतिज्ञों द्वारा फ़्लैट दिए जाने को दामिनी का परिवार समस्या से निजात पाने के रूप में देख रहा है क्या अनभिज्ञ है इस बात से कि राजनीतिज्ञ ही वे शख्सियत होते हैं जो शहीदों के परिवार को आवंटित प्लॉट तक निगल जाते हैं और डकार तक नहीं लेते .
अभी ताज़ा घटना क्रम में दामिनी के पिता ने राष्ट्रपति जी से मुलाकात के लिए समय माँगा है क्या औचित्य है इस मुलाकात का ?अभी न तो दामिनी कांड के आरोपियों को मृत्यु दंड मिला है जो मिलने पर आरोपी राष्ट्रपति जी से क्षमादान की अपील कर सकते हैं और न ही राष्ट्रपति जी संविधान के अनुच्छेद ७२ के अंतर्गत उन्हें मिलने वाले मृत्यु दंड का क्षमादान ,प्रविलंबन ,विराम या परिहार ही कर रहे हैं और न ही हमारे यहाँ कार्यपालिका को न्यायपालिका को न्याय करने के सम्बन्ध में निर्देश देने की कोई शक्ति ही दी गयी है .
राजनीतिज्ञों के प्रति जनता का वर्तमान रवैय्या कोई एक दिन की उपज नहीं है यह धीरे धीरे हुए अनुभवों का परिणाम है जिसके कारण आज राजनीतिज्ञ अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं .ये तो वह ईद का चाँद भी नहीं जो साल भर में दिखाई देता है ये तो उस कड़कती बिजली के सामान हैं जो जब जब बादल रुपी चुनाव सिर पर आते हैं चमकना शुरू कर देती है .और फिर कहीं न कहीं गिरकर आग लगा देती है .ऐसे में दामिनी के पिता को चाहिए कि वे न्याय व्यवस्था पर यकीन करते हुए अपने घर को ऐसी बिजली से बचाएं जो केवल तबाह करना जानती है बिलकुल वैसे ही जैसे कारगिल शहीद संदीप उन्नीकृष्णन के माता पिता ने राजनीतिज्ञों के लिए अपने घर के दरवाजे बंद कर अपने घर को उनसे बचाया था .
आज की स्थितियों में तो ये राजनीतिज्ञ उन्हें चुनाव लड़ दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद तक प्रस्तावित कर सकते हैं किन्तु चुनाव पश्चात् इनके तरीके जैसे कि सभी जानते हैं ''रात गयी बात गयी ''की तरह ये उन्हें कहीं का भी नहीं छोड़ेंगे जैसे बीजेपी ने कानूनी मामले के कारण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से उमा भारती जी से इस्तीफा तो ले लिया किन्तु मामला समाप्त होने पर पहले तो उन्हें मुख्यमंत्री पद वापस नहीं किया और तो और बीजेपी छोड़ने को ही विवश कर दिया .
अतः मेरा दामिनी के पिता से यही अनुरोध है कि वे हमारी न्याय व्यवस्था पर विश्वास करें और इन राजनीतिज्ञों से दूरी बनाये रखें और इस प्रकार राजनीतिज्ञों से जुड़कर दामिनी के संघर्ष को जो उसे वर्तमान व्यवस्था के पंगु होने के कारण करना पड़ा और जनता के विरोध प्रदर्शन ,जो उसे दामिनी को न्याय दिलाने व् सबकी सुरक्षा के लिए करने पड़े ,पर पानी न पड़ने दें .
शालिनी कौशिक
{कौशल }
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दामिनी गैंगरेप कांड अब न्यायालय में विचाराधीन है और न्यायालय अपनी प्रक्रिया के तहत इसके विचारण व् निर्णय में त्वरित कार्यवाही के लिए प्रयत्न शील हैं .१६ दिसंबर २०१२ की रात को बर्बरता की हदें लांघने वाला ये मामला जैसे ही जनता के संज्ञान में आया वैसे ही सोयी जनता एक ओर तो दामिनी के दर्द से कराह उठी और दूसरी ओर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की सुरक्षा के लिए व्याकुल हो उठी और चल पड़ी सोये व् अत्याचारी ,लापरवाह व् निरंकुश सरकार व् प्रशासन को जगाने .न केवल दिल्ली बल्कि सम्पूर्ण देश -पूरी दुनिया ने इस मामले का संज्ञान लिया और हिला कर रख दिया आज के राजनीतिज्ञों के रवैय्ये को जिसके परिणाम स्वरुप सरकार के बड़े बड़े चेहरे कभी जनता के बीच आकर, कभी दामिनी के घर जाकर हमदर्दों की सूची में जुड़ने की कोशिश करने लगे लेकिन जनता ने केवल उनको इस दुर्दांत घटना के लिए जिम्मेदार माना और उन्हें किसी तरह का कोई स्थान अपनी भावनाओं के बीच नहीं लेने दिया .जो विरोध प्रदर्शन दामिनी के साथ हुई बर्बरता से आरम्भ हुए थे वे उसकी दुर्दांत मृत्यु के पश्चात् भी चलते रहे थे और चलते रहते यदि न्यायालय की कार्यवाही में उन्हें कोई भी लापरवाही का अंश दिखाई देता .जिस दिन से दामिनी गैंगरेप कांड हुआ उस दिन से तो देश भर की अदालतें ऐसे मामलों में अति सक्रिय हो गयी .और ऐसे अपराधों के त्वरित विचारण व् निबटारे के लिए प्रयत्नशील हो गयी .न्यायालयों की ऐसी कार्यवाही ने जनता में ये विश्वास उत्पन्न किया ''कि दामिनी को अवश्य न्याय मिलेगा.''
किन्तु शायद ये विश्वास दामिनी के पिता को नहीं हो पाया और इसी का परिणाम है कि वे न्यायालयों से ज्यादा राजनीतिज्ञों में भरोसा कर रहे हैं .कभी वे सोनिया गाँधी तो कभी राहुल गाँधी से मिलने की इच्छा जताते हैं और वे क्या नहीं समझते कि ये जनता की उनसे हमदर्दी व् चुनाव २०१४ के निकट होने का ही परिणाम है कि ये दोनों उनके घर पहुँच जाते हैं .
क्या वे नहीं समझ पाते हमारी राजनीति को जो आज फ़ोन नंबर दे व्यक्तिगत संपर्क में रहने की बात कह रहे हैं चुनाव पश्चात् सामने उपस्थित को भी पहचानने में भी अनभिज्ञता जताते देर नहीं करेंगे .
राजनीतिज्ञों द्वारा फ़्लैट दिए जाने को दामिनी का परिवार समस्या से निजात पाने के रूप में देख रहा है क्या अनभिज्ञ है इस बात से कि राजनीतिज्ञ ही वे शख्सियत होते हैं जो शहीदों के परिवार को आवंटित प्लॉट तक निगल जाते हैं और डकार तक नहीं लेते .
अभी ताज़ा घटना क्रम में दामिनी के पिता ने राष्ट्रपति जी से मुलाकात के लिए समय माँगा है क्या औचित्य है इस मुलाकात का ?अभी न तो दामिनी कांड के आरोपियों को मृत्यु दंड मिला है जो मिलने पर आरोपी राष्ट्रपति जी से क्षमादान की अपील कर सकते हैं और न ही राष्ट्रपति जी संविधान के अनुच्छेद ७२ के अंतर्गत उन्हें मिलने वाले मृत्यु दंड का क्षमादान ,प्रविलंबन ,विराम या परिहार ही कर रहे हैं और न ही हमारे यहाँ कार्यपालिका को न्यायपालिका को न्याय करने के सम्बन्ध में निर्देश देने की कोई शक्ति ही दी गयी है .
राजनीतिज्ञों के प्रति जनता का वर्तमान रवैय्या कोई एक दिन की उपज नहीं है यह धीरे धीरे हुए अनुभवों का परिणाम है जिसके कारण आज राजनीतिज्ञ अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं .ये तो वह ईद का चाँद भी नहीं जो साल भर में दिखाई देता है ये तो उस कड़कती बिजली के सामान हैं जो जब जब बादल रुपी चुनाव सिर पर आते हैं चमकना शुरू कर देती है .और फिर कहीं न कहीं गिरकर आग लगा देती है .ऐसे में दामिनी के पिता को चाहिए कि वे न्याय व्यवस्था पर यकीन करते हुए अपने घर को ऐसी बिजली से बचाएं जो केवल तबाह करना जानती है बिलकुल वैसे ही जैसे कारगिल शहीद संदीप उन्नीकृष्णन के माता पिता ने राजनीतिज्ञों के लिए अपने घर के दरवाजे बंद कर अपने घर को उनसे बचाया था .
आज की स्थितियों में तो ये राजनीतिज्ञ उन्हें चुनाव लड़ दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद तक प्रस्तावित कर सकते हैं किन्तु चुनाव पश्चात् इनके तरीके जैसे कि सभी जानते हैं ''रात गयी बात गयी ''की तरह ये उन्हें कहीं का भी नहीं छोड़ेंगे जैसे बीजेपी ने कानूनी मामले के कारण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से उमा भारती जी से इस्तीफा तो ले लिया किन्तु मामला समाप्त होने पर पहले तो उन्हें मुख्यमंत्री पद वापस नहीं किया और तो और बीजेपी छोड़ने को ही विवश कर दिया .
अतः मेरा दामिनी के पिता से यही अनुरोध है कि वे हमारी न्याय व्यवस्था पर विश्वास करें और इन राजनीतिज्ञों से दूरी बनाये रखें और इस प्रकार राजनीतिज्ञों से जुड़कर दामिनी के संघर्ष को जो उसे वर्तमान व्यवस्था के पंगु होने के कारण करना पड़ा और जनता के विरोध प्रदर्शन ,जो उसे दामिनी को न्याय दिलाने व् सबकी सुरक्षा के लिए करने पड़े ,पर पानी न पड़ने दें .
शालिनी कौशिक
{कौशल }
टिप्पणियाँ
राजनेता हमारे बनाये हुए हैं और हम ही उन तक ना जाए क्यूँ नहीं
सकता है तब एक शातिर
बदमाश को कसाब वाली नियति तक लाने के लिए क्यों नहीं आ सकता .भले चुनाव नज़दीक हैं लेकिन इस वक्त दवाब काम करेगा .आज का दिन बड़ा शुभ है आज अफज़ल बदमाश को फांसी हुई है
(गुरु कैसा ?)वह दिन और भी बड़ा होगा जिस दिन इस ज्वेनाइल को फांसी के फंदे तक ले जाया जाएगा .
अच्छी पोस्ट है आपकी .
उस दुखी परिवार को आप ज्यादा निशाने पे न लें .भले इसे आनुषांगिक तबाही कोलेटरल डेमेज कहा जाए .
-----क्या आप लोगों को स्वयं न्याय-व्यवस्था पर विशवास नहीं ....पीड़ित अपनी संतुष्टि हेतु जो भी कर रहा है क्यों न करने दिया जाय ....