man kahin aur chal............
बढ़ते भ्रष्टाचार पर बोलें सारे दल,
अपने को पावन कहें दूजे को दलदल.
जो भी देखो कर रहा एक ही जैसी बात,
भ्रष्टाचार के छा रहे भारत में बादल.
जनता के हितों की खातिर करते हैं ये सब,
कहते ऐसी ही बातें मंच को बदल-बदल.
देश की खातिर कर रहे जो ये देखो आज,
कोई नहीं कर पायेगा चाहे आये वो कल.
सत्ता की मदहोशी में बहके नेतागण,
बोले उल्टा-पुल्टा ही मन कहीं और चल.
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अपने को पावन कहें दूजे को दलदल.
जो भी देखो कर रहा एक ही जैसी बात,
भ्रष्टाचार के छा रहे भारत में बादल.
जनता के हितों की खातिर करते हैं ये सब,
कहते ऐसी ही बातें मंच को बदल-बदल.
देश की खातिर कर रहे जो ये देखो आज,
कोई नहीं कर पायेगा चाहे आये वो कल.
सत्ता की मदहोशी में बहके नेतागण,
बोले उल्टा-पुल्टा ही मन कहीं और चल.
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टिप्पणियाँ
netaon ke baare men bilkul sahi kaha aapne
ye do-muhan saanp hain...!!
achchhi abhivyakti..
follow karne laga hoon, ab barabar aaunga..kabhi hamare blog pe aayen..
सही कह रहे हैं आप !
.
सादर,
डोरोथी.
नमस्कार !
अच्छे काव्य प्रयास के लिए आभार !
पूरी कविता का सार लगा …
मन कहीं और चल !
छंद को थोड़ा-सा और साध लें … और भी आनन्द आएगा ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
rajendra ji aapke margdarshan se shayad mere jaisee nai nai kaviyatri bhi kuchh seekh payegi .apna aashirvad mere liye banaye rakhen .