उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़ जमीनी हकीकत से जुड़े.


उत्तर प्रदेश सरकार राजनीति छोड़ जमीनी हकीकत से जुड़े.

सरकारें बदलती हैं पर राज्य प्रशासन चलने के तरीके नहीं बदलते .मायावती सरकार ने राज्य का धन वोट बटोरने को जिले बनाने में खर्च कर दिया पहले पूर्ण विकसित बडौत की जगह अविकसित बागपत बनाया और अब जाते जाते कानून व्यवस्था में अविकसित शामली को जिले का दर्जा दे वहां के खेतों के लिए मुसीबत खड़ी कर गयी मुसीबत इसलिए क्योंकि प्रशासन अब किरण में समस्त न्यायालयों की सुविधा होने के बावजूद जिला न्यायालय मुख्यालय पर होने के बहाने की पूर्ति के लिए खेतो की जमीन की ओर देख रहा है .दूसरी ओर अखिलेश यादव हैं जिनकी सरकार कभी  बेरोजगारी भत्ता तो कभी कन्या विद्या धन के रूप में राज्य का पैसा लुटा रही है और ये लुटाना ही कहा जायेगा जब पात्र व्यक्ति तो सरकार की सहायता से वंचित रह जाएँ और ''अपात्र ''जुगाड़ भिडाकर राज्य के धन को हासिल कर लें .मैंने अपने एक पूर्व आलेख में शामली जिला न्यायलय के लिए कैराना को उचित स्थान कहा था आप भी चाहें तो उस आलेख का निम्न प्रस्तुति करण में अवलोकन कर सकते हैं  
कैराना उपयुक्त स्थान :जनपद न्यायाधीश शामली : 


जिला न्यायालय के लिए शामली के अधिवक्ता इस सत्य को परे रखकर सात दिन से न्यायालय के कार्य  को ठप्प किये हैं जबकि सभी के साथ शामली इस प्रयोजन हेतु कितना उपयुक्त है वे स्वयं जानते हैं.
             शामली 28 सितम्बर २०११ को मुज़फ्फरनगर से अलग करके  एक जिले के रूप में स्थापित किया गया .जिला बनने से पूर्व शामली तहसील रहा है और यहाँ तहसील सम्बन्धी कार्य ही निबटाये जाते रहे हैं. न्यायिक कार्य दीवानी ,फौजदारी आदि के मामले शामली से कैराना और मुज़फ्फरनगर जाते रहे हैं .
    आज कैराना न्यायिक व्यवस्था  के मामले में उत्तरप्रदेश में एक सुदृढ़ स्थिति रखता है    कैराना में न्यायिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि के बारे में बार एसोसिएशन कैराना के अध्यक्ष ''श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट ''जी बताते हैं -
                                    
     ''   '' सन १८५७ में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रथम  स्वतंत्रता संग्राम के द्वारा ऐतिहासिक क्रांति का बिगुल बजने के बाद मची उथल-पुथल से घबराये ब्रिटिश शासन के अंतर्गत संयुक्त प्रान्त [वर्तमान में उत्तर प्रदेश ] ने तहसील शामली को सन 1887 में महाभारत काल के राजा कर्ण की राजधानी कैराना में स्थानांतरित कर दिया तथा तहसील स्थानांतरण के दो वर्ष पश्चात् सन १८८९ में मुंसिफ शामली के न्यायालय  को भी कैराना में स्थानांतरित कर दिया .ब्रिटिश शासन काल की संयुक्त प्रान्त सरकार द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश [तत्कालीन संयुक्त प्रान्त ]में स्थापित होने वाले चार मुंसिफ न्यायालयों -गाजियाबाद ,नगीना ,देवबंद व् कैराना है.मुंसिफ कैराना के क्षेत्राधिकार  में  पुरानी तहसील कैराना व् तहसील बुढ़ाना का  परगना कांधला सम्मिलित था .मुंसिफी कैराना में मूल रूप से दीवानी मामलों का ही न्यायिक कार्य होता था .विचाराधीन वादों  की संख्या को देखते हुए समय समय पर अस्थायी अतिरिक्त मुंसिफ कैराना के न्यायालय की स्थापना भी हुई ,परन्तु सन १९७५ के आसपास माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा कैराना में स्थायी अतिरिक्त मुंसिफ कैराना के न्यायालय की स्थापना की गयी .इस न्यायालय के भवन के लिए ९ मार्च सन १९७८ को उच्च न्यायालय इलाहाबाद के प्रशासनिक न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री ह्रदयनाथ सेठ द्वारा भवन का शिलान्यास किया गया .बार एसोसिएशन कैराना  की निरंतर मांग के उपरांत दिनांक ६ मई 1991 को कैराना में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय की स्थापना की गयी .तथा बाद में ४ जनवरी 1993 से कैराना में सिविल  जज सीनियर डिविजन का न्यायालय स्थापित हुआ  २ अप्रैल २०११ में यहाँ ए.डी.जे.कोर्ट की स्थापना हुई .''
ऐसे में राजनीतिक फैसले के कारण शामली को भले ही जिले का दर्जा मिल गया हो किन्तु न्यायिक व्यवस्था के सम्बन्ध में अभी शामली बहुत पीछे है .शामली में अभी कलेक्ट्रेट  के लिए भूमि चयन का मामला भी पूरी तरह से तय नहीं हो पाया है जबकि कैराना में अध्यक्ष महोदय के अनुसार तहसील भवन के नए भवन में स्थानांतरित होने के कारण ,जहाँ १८८७ से २०११ तक तहसील कार्य किया गया वह समस्त क्षेत्र इस समय रिक्त है और वहां जनपद न्यायाधीश के न्यायलय के लिए उत्तम भवन का निर्माण हो सकता है .साथ ही कैराना कचहरी में भी ऐसे भवन हैं जहाँ अभी हाल-फ़िलहाल में भी जनपद न्यायाधीश बैठ सकते हैं और इस सम्बन्ध में किसी विशेष आयोजन की आवश्यकता नहीं है.फिर कैराना कचहरी शामली मुख्यालय से मात्र १० किलोमीटर दूरी पर है ऐसे में यदि हाईकोर्ट ध्यान दे तो शामली जनपद न्यायाधीश के लिए कैराना उपयुक्त स्थान है क्योंकि शामली में अभी भी केवल तहसील कार्य ही संपन्न हो रहे हैं और जनपद न्यायधीश की कोर्ट वहां होने के लिए अभी शामली को बहुत लम्बा सफ़र तय करना है.
                 और उपरोक्त के सम्बन्ध में कैराना के वकीलों ने ओ एस डी श्री उमेश चन्द्र श्रीवास्तव जी को ज्ञापन भी दिया किन्तु इस सबके बावजूद यह कहकर ''जिला न्यायालय जिला मुख्यालय पर होते हैं ''अब शामली के गावों की,जंगलों की भूमि जो की खेती आदि के काम आती है 
में निरीक्षण कर राज्य का पैसा व् समय दोनों बर्बाद किये जा रहे हैं .जिस राज्य की हाईकोर्ट ही मुख्यालय राजधानी लखनऊ के स्थान पर इलाहाबाद में स्थापित है वहां यह तर्क कुतर्क ही प्रतीत होता है और यदि यह कहा जाये की हाईकोर्ट वहां पहले से ही स्थापित है तो कैराना में भी पहले से ही इतनी कोर्ट स्थापित  हैं जितनी की स्थापना के लिए अभी शामली जिले को नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं  फिर रही यातायात की सुविधा की बात तो जो सरकार जनता के पैसे का दुरूपयोग कर जनता की जमीन हड़प कर जिला न्यायालय के लिए कदम आगे बढ़ा सकती है क्या वह एक कदम सरकरी धन के सदुपयोग में खर्च नहीं कर सकती .कैराना में जिला न्यायालय स्थापित कर वादकारियों को सीधी  बस सेवा प्रदान कर .इसलिए सरकार से बस यही अनुरोध है की एक बार राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर जनता के हित की सोचें व् सरकारी धन का दुरूपयोग बंद करें .
                                           शालिनी कौशिक 
                                         [कौशल] 
  

टिप्पणियाँ

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर आप सादर आमंत्रित हैं.
ये सीख सदैव यही रहती है, काल और मान्यताएं हम भले ही बदल लें लेकिन ये आज से वर्षों पहले भी ऐसे ही थी और आज भी ऐसी ही बनी रहेंगे. वह बात और है कि इसको समझने वाले कितना समझते हें?
आपकी बातो में दम है सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए,,,,,

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virendra sharma ने कहा…
होने के बहाने की पूर्ति के लिए खेतो(खेतों ) की जमीन की ओर देख रहा है ......खेतों
भिड़ाकर ....दोनों मुद्दे मौजू उठाएं हैं आपने कैराना वाला मुद्दा पहले भी आपकी इस पोस्ट पर पढ़ा था .यह सब राजनीतिक दृष्टि हीनता का नतीजा है मायोपिक विजन तो इन वोट खोरों के लिए छोटा शब्द है .वोटों का गणित लोक तंत्र की रीढ़ बनके रह गया है .दुखद स्थिति है यह .साधन और उपयुक्तता दोनों की अनदेखी हुई है दोनों मामलों में .
शालिनी जी सामयिक पोस्ट और इस सुंदर विश्लेषण सबके सामने रखने के लिये बहुत बधाई. राजनीतिक निर्णय सोच समझ कर लिये जाएँ तो ज्यादा अच्छा हो.
Rakesh Kumar ने कहा…
आपने बहुत ही शालीनता से
अच्छा विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है.
सार्थक विश्लेषण के लिए आभार शालिनी जी.

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