दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज


  
 एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे  घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते  हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी और विशेष रूप से इकलौती बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में और अधिकांशतया  इकलौती पुत्री के जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं .
               एक तो पहले ही बेटे के परिवार वाले बेटे पर जन्म से लेकर उसके विवाह तक पर किया गया खर्च बेटी वाले से वसूलना चाहते हैं उस पर यदि बेटी इकलौती हो तब तो उनकी यही सोच हो जाती है कि वे अपना पेट तक काटकर उन्हें दे दें .इकलौती बेटी को बहू बनाने  वाले एक परिवार के  सामने जब बेटी के पिता के पास किसी ज़मीन के ६ लाख रूपए आये तो उनके लालची मन को पहले तो ये हुआ कि ये  अपनी बेटी को स्वयं देगा और जब उन्होंने कुछ समय देखा कि बेटी को उसमे से कुछ नहीं दिया तो कुछ समय में ही उन्होंने अपनी बहू को परेशान करना शुरू कर दिया.हद तो यह कि बहू के लिए अपने बेटे से कहा ''कि इसे एक बच्चा गोद में व् एक पेट में डालकर इसके बाप के घर भेज दे .''उनके मन कि यदि कहूं तो यही थी कि बेटी का होना इतना बड़ा अपराध था जो उसके मायके वालों ने किया था कि अब बेटी की शादी के बाद वे पिता ,माँ व् भाई बस बेटी के ससुराल की ख़ुशी ही देख सकते थे और वह भी अपना सर्वस्व अर्पण करके.
     एक मामले में सात सात भाइयों की अकेली बहन को दहेज़ की मांग के कारण बेटे के पास न भेजकर सास ने  अपनी ही सेवा में रखा जबकि सास कि ऐसी कोई स्थिति  नहीं थी कि उसे सेवा करवाने की आवश्यकता हो.ऐसा नहीं कि इकलौती बेटी के साथ अन्याय केवल इसी हद तक सीमित रहता हो बेटे वालों की भूख बार बार शांत करने के बावजूद बेटी के विवाह में १२ लाख रूपए जेवर और विवाह के बाद बेटी की ख़ुशी के लिए फ्लैट देने के बावजूद इकलौती बेटी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है और उच्च शिक्षित होते हुए भी उसके माँ-बाप ससुराल वालों के आगे लाचार से फिरते हैं और उन्हें बेटी के साथ दरिंदगी का पूरा अवसर देते हैं और ये दरिंदगी इतनी हद तक भी बढ़ जाती है कि या तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है या वह स्वयं ही मौत को गले लगा लेती है क्योंकि एक गुनाह तो उसके माँ-बाप का है कि उन्होंने बेटी पैदा कि और दूसरा गुनाह जो कि सबसे बड़ा है कि वह ही वह बेटी है.
                 इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी इकलौती बेटी जिसे इकलौती होने के कारण अतुलनीय स्नेह प्राप्त होता है ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है .हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं .जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़िये निंदा के पात्र हैं उसी तरह सामाजिक बहिष्कार के भागी हैं दहेज़ के दानी जो इनके मुहं पर दहेज़ का खून लगाते हैं और अपनी बेटी के लिए आग की सेज सजाते हैं .
                शालिनी कौशिक
                    [कौशल]

                   
     

टिप्पणियाँ

धन लोलुपता संबंधों के दायरे में रहे...
दहेज रूपी दानव बेटियों के लिए बड़ा अभिशाप साबित हो रहा है लेकिन आजकल समाज के कुछ लोग बिना दहेज के शादी करने के लिए आगे आ रहें है उनकी देखा देखि हो सकता है समाज में कुछ बदलाव आये !!
रविकर ने कहा…
मार्मिक -
बदलेंगे हालात |
Rohitas Ghorela ने कहा…
बेहद विचारणीय पोस्ट ...हमारे समाज का एक ऐसा चित्र खिंचा है जिसमे "दहेज़/आत्महत्या" की छाँव शूल की तरह चुभती है।
Rohitas Ghorela ने कहा…
बेहद विचारणीय पोस्ट ...हमारे समाज का एक ऐसा चित्र खिंचा है जिसमे "दहेज़/आत्महत्या" की छाँव शूल की तरह चुभती है।
Shikha Kaushik ने कहा…
सच कह रहे हैं आप . सार्थक आलेख व् पोस्ट हेतु आभार .हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
kshama ने कहा…
Koyi zindagi bhar zinda jalta hai,to koyi jalakae maar diya jata hai...kya behtar hai?
Kunwar Kusumesh ने कहा…
मार्मिक पोस्ट.
Rajesh Kumari ने कहा…
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 4/12/12को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
minyander ने कहा…
मार्मिक प्रस्तुतीकरण !! मेरी नई रचना में आपका स्वागत है http://minyander.blogspot.in/2012/12/kalisaree.html
Dr ajay yadav ने कहा…
शालिनी मैंम ,सादर प्रणाम |
आपके कई ब्लॉग मैं निरंतर पढता हूँ ,और आप बहुत ही सार्थक लेखन कि दिशा में अग्रसर हैं |एकदम ऐसा ही लेख मैंने भी लिखा हैं जिसमे आशा कि किरण भी हैं |
http://avchetnmn.jagranjunction.com/2012/11/23/ips-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0/#comment-425
बहुत सुंदर विचारणीय प्रस्तुति ,,,,,,

recent post: बात न करो,
Pratik Maheshwari ने कहा…
जब तक क़ानून, सामाजिक व्यवस्था के आगे लाचार रहेगा, तब तक कुछ ऐसा ही चलेगा.. सोच बदलाव आ रहा है.. आशा बंधी है एक अच्छे समाज की..
Dr. Kumarendra Singh Sengar ने कहा…
बहुत सही लिखा है आपने,
काश ऐसे मुद्दों को हम इतनी सहजता से समझ पाते..
काश!!!!
Dr. Kumarendra Singh Sengar ने कहा…
बहुत अच्चा लिखा है आपने,
काश हम सब इस मुद्दे पर इतनी आसानी से समझ पाते.
काश!!!
Suman ने कहा…
सही कहा है सार्थक आलेख है !
मार्मिक पोस्ट. अच्छा है प्रेम विवाह का का प्रचलन बढ़ रहा है. वही दहेज़ और बेमेल विवाह से मुक्ति दिला सकता है.
Rekha Joshi ने कहा…
.स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं ,sarthk post pr badhai
virendra sharma ने कहा…
दहेज़ लोभी लालची मांग जांच वालों के साथ रिश्ता ही क्यों जोड़ा जाए जो माँगता हुआ आ रहा है उसे बाहर का रास्ता दिखाएँ .सहते रहने से सामने वाले का हौसला बढ़ जाता है .शुरू में ही प्रतिकार करना चाहिए .ज़ाहिलों का हौसला न बढ़ने दें .समाज और क़ानून दोनों का दवाब डालें ,मजा ज़रूर सिखाएं .

(बोझा शब्द करें बौझा की जगह )आग की चिता होती है सेज तो सिर्फ पिया की ही होती है .सूली ऊपर सेज पिया की किस विध मिलना होय ,एरी मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय .
मैं भूल नहीं कर रहा हूं, तो आप कांधला से हैं और आपने अखबारों में संपादक के नाम पत्र भी काफी लिखे हैं। कभी हमारे लिए भी कुछ लिखिए। समाचार पत्रों में कौशल देख रहा था। अच्छा लगा।
Bahut hi vicharniy lekh. Aap ne gambhir mudde ko uthaya hai.
धन लोलुपता कभी खत्म नहीं होती .... ऐसे लोगों से संबंध बना सच ही माता - पिता अपनी बेटी को आग में झोंक देते हैं .... सार्थक पोस्ट
Prabodh Kumar Govil ने कहा…
Ham sab ko lagatar is disha me kaam karna hoga, tab haalaat badal kar hi rahenge.

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