सरकार का विरोध :सही तथ्यों पर हो

Protests against Delhi gang rape: Pics (© Reuters):
दिल्ली गैंगरेप केस न केवल सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का घ्रणित उदाहरण है बल्कि सरकार के दोष को खुलेरूप में प्रदर्शित करता है .गैंगरेप राजधानी की सड़कों पर हुआ और एक ऐसी बस में किया गया जिसे वहां आवागमन का अधिकार ही नहीं था क्या  कहा जाये इसे ?यदि राजधानी में इस तरह की बस में इस तरह का घिनोना अपराध किया जा सकता है तो देश के अन्य स्थानों की सुरक्षा के सम्बन्ध में तो कुछ कहा ही नहीं जा सकता पिछले काफी समय से अन्ना ,केजरीवाल ,बाबा रामदेव जिस भ्रष्टाचार  के खिलाफ जंग लड़ रहे थे और दिल्लीवासी जिसमे बढ़ चढ़कर उनका साथ दे रहे थे उसकी भेंट एक उदयीमान प्रतिभा को ही चढ़ना पड़ गया .घरेलू हिंसा के मामले में सरकार की सीधी  जिम्मेदारी नहीं बनती है किन्तु यहाँ सरकार दोषी है पूरी तरह से दोषी है और संभव है कि इसकी भरपाई सरकार को सत्ता से बाहर  होकर करनी पड़े और ये सही भी है जो सरकार अपने कर्तव्य  के पालन में असफल है उसे सत्ता में बने रहने  का कोई नैतिक हक़ नहीं है क्योंकि सत्ता वह मुकुट है जो काँटों से भरा है जिसे पहनने वाला भी काँटों से पीड़ित होता है और पहनने की इच्छा रख  छीनने की कोशिश करने वाला  भी .और वर्तमान सरकार का जहाँ तक इस घ्रणित दुष्कृत्य के घटित  होने की बात है तो पूरा दोष है किन्तु घटना की सूचना प्राप्त होने के बाद से सरकार व् सरकारी मशीनरी द्वारा जो कार्य प्रणाली अपनाई गयी वह सराहनीय कही जाएगी .
    घटना की सूचना पर मात्र ४ मिनट में पुलिस का पहुंचना ,७२ घंटे में सभी आरोपियों का पकड़ा जाना पुलिस की कार्यप्रणाली पर ऊँगली उठाने की इजाजत  नहीं देता .
     डाक्टरों द्वारा पहले ये कहना कि पीडिता की हालत ऐसी नहीं है कि उसे कहीं बाहर ले जाया जाये फिर एकाएक उसे सिंगापूर ले जाना एकबारगी राजनितिक हस्तक्षेप को दर्शाता है किन्तु इस स्थिति को वह भली भांति समझ सकते हैं जिनका कोई अपना कहीं न जाने की स्थिति में पहले बीमारी झेलता है किन्तु स्थिति काबू से बाहर होने पर परिवारीजनो द्वारा सारी विपरीत स्थितयों का सामना करते हुए उसे सूदूर स्थान पर स्थित अस्पताल में पहुँचाया जाता है ताकि यथासंभव इलाज कराया जा सके .
   आनन् फानन में पीडिता का दाह संस्कार कराया जाना भी विवाद का विषय बना है जबकि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी जनता है कि ऐसा करना जन हितार्थ ही है .मेरी स्वयं की जानकारी में एक पिता पुत्र का क़त्ल होने पर पोस्ट मार्टम  के बाद जब उनका शरीर उनके घर लाया गया तो रात होने के बावजूद बहुत जल्दी ही उनके परिजनों की शोकाकुल स्थिति को देखते हुए उनका दाहसंस्कार कर दिया गया जबकि किसी हिन्दू परिवार में रात्रि में दाह संस्कार की परंपरा नहीं है और ऐसा ही एक अन्य हत्या के मामले में भी किया गया .फिर वर्तमान मामला जहाँ सारे देश में शोक की लहर है ,स्थिति कभी भी बिगड़ सकती है ऐसे में सरकार का यह कदम विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए .
              मैं सरकार की पक्षधर नहीं हूँ और न ही किसी भी दोषी का मैंने कभी साथ दिया है और न कभी दूँगी किन्तु न ही चाहूंगी कि विरोध मात्र विरोध के बिंदु पर अटक कर रह जाये .विरोध हमेशा सही तथ्यों पर आधारित हो तभी मान्यता प्राप्त कर सकता है
           शालिनी कौशिक
                    [कौशल ]


टिप्पणियाँ

tips hindi me ने कहा…
आपकी बात में दम है की विरोध सही तथ्यों पर होना चाहिए, लेकिन क्या सरकार का ये फर्ज नहीं बनता कि वो जन्मूल्यों को ध्यान में रखते हुए सख्त कानून बनाएं | लेकिन इस सरकार में शामिल कुछ कानून के हिमायती ये दुहाई दे कर कि कानून बनाना संसद का काम है इसमें आम जनता दखल नहीं दे सकती, ये कह कर कानून को अपने ढंग से अपने फायदे के लिए अपने मन मुताबिक बनाना चाहते हैं | इसके साथ ही मुझे ये लगता है कि इस मुद्दे पर बनने वाले कानून का भी यही हश्र होगा जो लोकपाल बिल का हुआ है | मैं चाहता हूँ की काश ! ऐसा न हो |

नये साल पर कुछ बेहतरीन ग्रीटिंग आपके लिए
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
'सरकार चाहे जिस दल की हो पर देश तो अपना है' के आधार पर ही जन-संघर्षों को भी चलाया जाना चाहिए। पहले से मौजूद कानूनों का ईमानदारी से पालन हो तथा समाज मे फैली भ्रांतियों यथा पोंगापंथ को धर्म मान कर उनकी ऊल-जलूल बातों का महिमामंडन बंद होना चाहिए। तभी समाज मे शांति व सौहार्द को कायम किया जा सकता है।
चिरनिद्रा में सोकर खुद,आज बन गई कहानी,
जाते-जाते जगा गई,बेकार नही जायगी कुर्बानी,,,,

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तथ्यों के आधार पर ही तो सरकार और पुलिस कठघरे में खड़ी हो रही है आपका कहना सही है कि विरोध तथ्यों के आधार पर ही होना चाहिए !!

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