शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .
न्याय के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण कथन है ''कि भले ही सौ गुनाहगार छूट जाएँ किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए .''मैंने शोधार्थियों के वर्तमान शोध में से केवल एक के शोध का अवलोकन किया है और उसके आधार पर मैं कह सकती हूँ कि माननीय कुलाधिपति महोदय का ये कथन उन शोधार्थियों के ह्रदय को गहरे तक आघात पहुँचाने वाला है जिन्होंने अपनी दिन रात की मेहनत से ये उपाधि प्राप्त की है .और जिस शोध का मैं यहाँ जिक्र कर रही हूँ उसके आधार पर मैं ये दावे के साथ कह सकती हूँ कि पी एच.डी.को लेकर जो सारे में ये फैला रहता है कि ये धन दौलत के बल पर हासिल कर ली जाती है यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है बल्कि कुछ शोधार्थी हैं जो अपनी स्वयं की मेहनत के बलबूते इस उपाधि को धारण करते हैं न कि दौलत से खरीदकर .डॉ . शिखा कौशिक ने इस वर्ष चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से ''हिंदी की महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में स्त्री-विमर्श ''विषय पर पी एच.डी.की उपाधि प्राप्त की है और यदि कुलाधिपति महोदय इस शोध का अवलोकन करते तो शायद उनके मुखारविंद से ये कथन नहीं सुनाई देते .
६ अध्यायों में विस्तार से ,हिंदी उपन्यास में चित्रित परंपरागत नारी जीवन ,नारी जीवन की त्रासदी और विड्म्बनाएँ ,सुधारवादी आन्दोलन और नारी उत्थान ,समाज सुधार संस्थाओं का योगदान ,महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में चित्रित नारी की आर्थिक स्वाधीनता तथा घर बाहर की समस्या ,महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में चित्रित परिवार-संसद का विघटन ,विवाह संस्था से विद्रोह ,महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में राजनैतिक चेतना ;महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण ,महिला उपन्यासकरों के उपन्यासों में चित्रित कुछ अतिवादी और अराजकतावादी स्थितियां ,सामाजिक संबंधों में दरार और विश्रंखलता ,स्वछंद जीवन की प्रेरणा से पाशव जीवन की ओर प्रवाह ,मुस्लिम नारी समाज की भिन्न स्थिति का संत्रास आदि आदि -स्त्री विमर्श का जो शोध डॉ.शिखा कौशिक जी ने विभिन्न उपन्यासों ,पत्र-पत्रिकाओं के सहयोग से प्रस्तुत किया है वह सम्पूर्ण राष्ट्र में नारी के लिए गौरव का विषय है .संभव है कि अन्य और शोधार्थियों के शोध भी इस क्षेत्र में सराहना के हक़दार हों ,इसलिए ऐसे में सभी शोधों को एक तराजू में तौलना सर्वथा गलत है और इस सम्बन्ध में तभी कोई वक्तव्य दिया जाना चाहिए जब इस दिशा में खुली आँखों से कार्य किया गया हो अर्थात सम्बंधित शोधों का अवलोकन किया गया हो.ऐसे में मेरा कहना तो केवल यही है -
''कैंची से चिरागों की लौ काटने वालों ,
सूरज की तपिश को रोक नहीं सकते .
तुम फूल को चुटकी से मसल सकते हो ,
पर फूल की खुशबू समेट नहीं सकते .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
आपने जिस विषय पर प्रकाश डाला है वो काफी विचारणीय व प्रभावशाली है..
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
ये बात सही है कि आज अधिकांश लोग धन की ताकत पर अपने शोध-कार्य को संपन्न करवाते हैं पर सभी ऐसा नहीं करते हैं,,,,ऐसे में उन्हें अवश्य कष्ट होता है जो मेहनत से अपना शोध-कार्य करते हैं.
अच्छे लेख के लिए बधाई..
आलमी स्तर पर कोई स्थान नहीं है .
आप पीएचडी की बात करतीं हैं मैं एक डीलिट(हिंदी )महिला का किस्सा बयान करना चाहूंगा .उनके पति और वह स्वयं भी वाल्किंग में राष्ट्रीय ,एशियाई प्रतियोगिताओं में इनाम लाते रहे हैं .अखबार
को एक रिपोर्ट देनी थीं .मेरे पास आईं -
मैंने इमला बोला -हरियाणा के श्री ......उन्होंने लिखा हरियाणा केसरी ...यह स्तर है डीलिटों का थोक के भाव मिलते हैं .
आप शिखाजी के अभिनव शोध कार्य की अलग से समीक्षा लिखिए अभिनव विषय है उनका उसे यूं जाया न करें उसके अंश ब्लॉग पे रखें .
विश्वविद्यालयों में शोध छात्रों का हर स्तर पर शोषण होता है मैंने इस विश्वविद्यालयीन व्यवस्था को एक छात्र के रूप में चार वर्षों तक और प्राध्यापक के बतौर 38 बरस तक नज़दीक से देखा है
.सेना के ऑडरली की मानिंद इनका सेवन होता है .हाँ प्रतिरक्षा व्यवस्था में तो रह ही रहा हूँ फिलाल .
शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए ,हमारे लिए बेश -कीमती है आपकी लिखी .
और रही राज्यपाल जी की बात तो उन्होंने जो पढ़ा उसमे उनका कोई हाथ नहीं है , उनके भाषण लिखने वाला अगर उन्हें कोई फ़िल्मी गाना भी लिख के दे देता तो शायद वो उसे भी पढ़ देते |
सादर