अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं .....

अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं .....

मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन गाने निकला हूँ,
मैं गद्दारों को धरती में जिंदा गड्वाने निकला हूँ ,
वो घाटी से खेल रहे हैं गैरों के बलबूते पर ,
जिनकी नाक टिकी रहती है पाकिस्तानी जूतों पर .''
वीर रस के प्रसिद्द कवि माननीय हरिओम पंवार जी की ये पंक्तियाँ  आज अफज़ल गुरु की फाँसी पर जो सियासत विपक्षी दलों द्वारा व् अफज़ल गुरु के समर्थकों द्वारा की जा रही है ,पर एकाएक मेरी डायरी की पन्नों से निकल आई और मेरे आगे बहुत से चेहरों की असलियत को सामने रख गयी .कश्मीर और कश्मीरी अलगाववादी भारत के लिए हमेशा से सिरदर्द रहे हैं .पाकिस्तान से बचने के लिए कश्मीर भारत से जुड़ तो गया किन्तु उसके एक विशेष वर्ग की तमन्ना पाकिस्तान ही रहा और उससे ही जुड़ने को वो जब तब भारत को ऐसे जख्म देने में व्यस्त रहा जिन जख्मों के घाव कभी भी सूखने की स्थिति ही नहीं आ पाती .इस जुडाव के फलस्वरूप कश्मीरी हिन्दुओं को अपने घर छोड़ छोड़कर भागना पड़ा और आज तक भी वे विस्थापित की जिंदगी जी रहे हैं और उसपर वे अलगाववादी आज़ादी के लिए संघर्ष रत हैं वो आज़ादी जो किसी गुलामी से नहीं अपितु अपने शरणदाता को तबाह कर हासिल करने की कोशिशें जारी हैं .ऐसी ही स्थिति के सम्बन्ध में कवि गोपाल दास ''नीरज'' जी कहते हैं -
 ''गीत जब मर जायेंगे फिर क्या यहाँ रह जायेगा ,
   एक सिसकता आसुंओं का कारवां रह जायेगा ,
    आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे ,
   जब न ये बस्ती रहेगी तू कहाँ रह जायेगा .''

धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर भारतवासियों के लिए स्वर्गवास का कारण बनकर रह गया वहां का अलगाववाद इस कदर हावी हुआ कि भारतीय जनता निर्दोष होते हुए भी बलि का बकरा बनती रही .अपनी स्थिति के सही स्वरुप को न समझते हुए वहां के युवा का भटकाव इस कदर उसकी सनक बन गया कि वहां से अफज़ल गुरु नाम का एक युवा भारत के लोकतंत्र के प्रमुख स्तम्भ ''संसद ''पर ही हमले के  षड्यंत्र के लिए आगे बढ़ गया .१३ दिसंबर २०११ को साजिश के तहत जो हमला भारतीय संसद पर हुआ उसका मुख्या साजिश कर्ता ''अफज़ल गुरु '' था .इस हमले में संसद के ९ सुरक्षा कर्मियों को शहीद होना पड़ा .हमला करने वाले सभी आतंकी मारे गए किन्तु साजिश करने वाला अफज़ल गुरु अभी तक कहीं और सुरक्षित बैठा था किन्तु भारतीय दिमाग के सामने कब तक बचता ,पकड़ा गया और मौत की सजा के अधीन हुआ इसी क्रम में ९ फरवरी २०१३ को उसे तिहाड़ जेल में फाँसी पर लटका दिया गया और ये फाँसी पर जो लटका ये वह अपराधी था जिसने ऐसी गंभीर साजिश की थी कि यदि वह साजिश सफल हो जाती तो भारतीय लोकतंत्र की नैय्या ही डूब सकती थी इसीलिए  उसे जो सजा मिली वह भारतीय कानून के अनुसार अपराधी को मिली न कि किसी कश्मीरी या मराठी ,या उत्तर भारतीय या किसी दक्षिण भारतीय  को नहीं .
  किन्तु एक गलती यहाँ भारतीय सरकार से हो गयी और वह भी यूँ  कि यहाँ कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही कार्य करने की संस्कृति है यहाँ का सूत्र वाक्य है -''कि भले ही सौ गुनाहगार छूट जाएँ किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए ''जबकि जो कार्य अफज़ल गुरु ने किया था वह इस सद्भाव का अधिकारी ही नहीं था उसका परिणाम तो वैसा ही होना चाहिए था जैसा आमतौर पर पुलिस द्वारा मुठभेड़ के मामलों में किया जाता है अफज़ल ने जो किया उसे उसका दंड भी मिलगया धरती के कानून के अनुसार  किन्तु उसने जिस जिसका घर उजाड़ा  उसका दंड तो .उसे ऊपरवाले  के कानून के अनुसार ही मिलेगा किन्तु सियासत को अपनी सियासी चालों का दंड कब मिलेगा और कौन देगा ये कुछ नहीं कहा जा सकता .सियासत की आँखें आज बिलकुल अंधी हो चुकी हैं उसे केवल अपना स्वार्थ दीखता है और कुछ नहीं किसी भी तरह हो सत्ता अपने हाथ में होनी चाहिए भले ही देश समुन्द्र में समां जाये या दुश्मन देश के अधीन हो जाये उसे इस बात से कोई मतलब नहीं .अफज़ल की पत्नी व् बच्चे का दर्द उन्हें दिख रहा है किन्तु जिन वीरों की जिंदगी अफज़ल ने छीन ली क्या वे धरती पर अकेले ही पैदा हुए थे ?क्या उनका कोई नहीं था? जिससे अफज़ल  ने उन्हें छीन लिया .इस तरफ क्यूं नहीं सोच पाते ये राजनीतिज्ञ और मानवाधिकारवादी ?ये वे ही लोग हैं ये वे ही लोग हैं जिनके बारे में एक शायर कह गए हैं -
''बस्ती जला के आये थे जो बेसहारा लोग ,
 नारे लगा रहे हैं वो अमनों अमान के .'

 और रही बात गोपनीय रूप से फाँसी देने की तो इसका जवाब सरकार पर दोषारोपण करने वालों ने स्वयं ही दे दिया है .जब तक नहीं दी गयी थी तब तक उसे डरपोक और जब दे दी गयी तब उसे क्रूर जैसे संज्ञाएँ देकर उन्होंने स्वयं ही सरकार के कार्य को सही साबित कर दिया है .देश में व्यवस्था बनाये  रखने के लिए और आम जनों की सुरक्षा के लिए सरकार को ऐसे कदम भी कभी कभी उठाने पड़ते हैं जिन्हें अगर हम खुली आँखों से देखें तो उनकी सराहनीय सोच को समझ सकते हैं .देश की सरकार हमारी चुनी हुई सरकार है और हमने ही स्वयं उसे ये अधिकार दिया है कि वह सही समय पर सही निर्णय ले और देश को विपत्तियों  से निबटने  के योग्य बनाये .अगर हम स्वयं ही अपनी सरकार पर भरोसा नहीं करेंगे तो हम किस पर भरोसा करेंगे .आज जो हाथ सरकार के साथ होना चाहिए वह हाथ हम कहीं और बढाकर अपने देश से ही गद्दारी  कर रहे हैं ऐसे में हमें यही समझ लेना चाहिए -
''महाफिज़ा के इशारे पे डूब जाते हैं ,
कई सफीने किनारे पे डूब जाते हैं ,
जिन्हें खुदा पे भरोसा नहीं हुआ करता
वो नाखुदा के इशारे पे डूब जाते हैं .''
     शालिनी कौशिक
           [कौशल ]

टिप्पणियाँ

पहली पंक्तियाँ हरिओम पंवार की हैं, कश्मीर की पीड़ामयी रचना है यह।
आतंक बादी कही का हो उसको सख्त सजा मिलनी ही चाहिए,,,,

RECENT POST... नवगीत,
World View of Prabhat Roy ने कहा…
शालिनी कौशिक कौशल ने बहुत ही सार्थक लेख लिखा है जो कि विचार करने योग्य है-हुकूमते-ए-हिंदुस्तान और भारत के सभी देशभक्त राजनीतिक दलों को पूर्णतः एकजुट होकर प्रत्येक कोटि को और रंग-ढ़ग के आंतकवाद के जटिल प्रश्न पर सर्वसम्मत राष्ट्रीय नीति का निर्माण करना चाहिए। वोट बैंक की कुटिल राजनीति ने भारत को अत्यंत कमजोर बनाकर रख दिया है। वोट बैक की कुटिल राजनीति के तहत ही जेहादी आतंकवाद के प्रति तुष्टीकरण की नीति को अंगीकार किया गया, जबकि आतंकवाद के प्रति कठोरतम निर्मम राष्ट्रीय नीति का अनुपालन किया जाना चाहिए। इजराइल वस्तुतः भारत के लिए एक उद्धरण के तौर पर मिसाल बन सकता है, जिसने कि आतंकवाद से मुकाबले पर एक सुसंगत राष्ट्रीय नीति का निर्माण कर दिखाया है।
आपका कहना सही है अफजल एक आतंकवादी था इसके सिवा कुछ नहीं ,आपको बता दूँ कि आपने अपने लेख के शुरू में जिन पंक्तियों का उद्वरण किया है वो किसी शायर कि नहीं बल्कि वीर रस के प्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार जी कि कविता की है !!
Shalini kaushik ने कहा…
जानकारी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद्
Anita ने कहा…
बहुत सही कहा है आपने..
Shalini kaushik ने कहा…
एकदम सही बात कही है आपने .thanks to comment.
Shalini kaushik ने कहा…
sarahna ke liye hardik dhanyawad
Shalini kaushik ने कहा…
jankari ke liye bahut bahut dhanyawad .maine jab ise dairy me likha to unka naam likhna bhool gayi thi .aapne meri bhool sudhar dee iske liye aabhar .
कडा रुख अपनाना ओर उस पे कायम रहना जरूरी है ... देश को एक सूत्र में बाँधने के लिए ...
महाफिज़ा के इशारे पे डूब जाते हैं ,
कई सफीने किनारे पे डूब जाते हैं ,
जिन्हें खुदा पे भरोसा नहीं हुआ करता
वो नाखुदा (हाफिज सईद ) के इशारे पे डूब जाते हैं .''

ये शेर बढ़िया मार आपने ! भगवन इन्हें सद्बुद्धि दे !
virendra sharma ने कहा…
बेशक अफज़ल को नौ साल तक कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक बनाए रहने के बाद फांसी देना क़ानून सम्मत ही था .इस प्रक्रिया को और भी द्रुत किया जा सकता था .चलो देर आयद दुरुस्त आयद .

यहाँ मुद्दा अब उमर अब्दुल्ला साहब हैं जो कहते थे अफज़ल को फांसी दी तो अमन चैन को घाटी में आग लग जायेगी .कहीं से कोई चिड़िया का अंडा भी न गिरा .अब वह खुद भावनायें भडका रहे हैं

.हाथों के तोते उड़े हुए हैं उनके .ये भी राहुल ब्रिगेड के ही वफादार बताये जाते हैं .

यहाँ मुद्दा है यासीन मालिक को गिफ्ट वीजा किसने दिया ,यह है ?.वह जाके पाकिस्तान की सरज़मीं पे जाके कहें -काश्मीर मुद्दा सुलगाये रखना है .सरकार खामोश रहे .

और ये महबूबा मुफ़्ती और इनके आका ये तो खेलते ही आतंकियों की गोद में हैं .उमर अब्दुल्ला भी शेख अब्दुल्ला के पोते ही साबित हुए .

कौन सी तरफदारी चाहतीं रहतीं हैं आप अपनी काबिल सरकार की ?आप हैं तो तरफदार .हम राष्ट्र के तरफ दार हैं किसी सरकार के नहीं .मकरी निजाम के नहीं .
virendra sharma ने कहा…
भय बिन होत न प्रीत गोसाईं -

डरने से काम नहीं चलता .सरकारें डरा नहीं करतीं अब सरकारी वकील ही कह रहा है सरकार ने नियम का उल्लंघन किया है .फांसी से पहले अफज़ल के घर वालों को सूचित करके मिलने का एक

मौक़ा

देना चाहिए था .होता तब भी वही जो अब हो रहा है इससे ज्यादा नहीं .आखिर आठ सालों तक राष्ट्र पति की क्षमा याचना कोअफज़ल के मामले में भी लटकाए ही रखा गया न .फिर ऐसी क्या

आफत

आन पड़ी थी .बुलवा लेते घर वालों को सरकार का सेकुलर चेहरा भी सलामत रहता .सरकार को अपने पे भरोसा रखना चाहिए था .

अब जब कि श्रीनगर के शहादती कब्र गाह में एक खाली कब्र खोद दी गई है .ठीक जम्मू कश्मीर मुक्ति मोर्चा के संस्थापक मकबूल भट की बगल से इसी ईदगाह इलाके में जिन्हें फरवरी 1984 में

फांसी के बाद तिहाड़ जेल में ही दफन किया गया था .एक काले मार्बिल पत्थर पर समाधि आलेख भी लिख दिया गया है अफज़ल गूर के लिए :

"The mortal remains of the martyr of the nation Afzal Guru are lying with the Govt of India ,Which are awaited (to be burried here ),"the epitaph engraved in Urdu

read.

सरकार को सांप सूंघ गया है .मरा हुआ सांप बन गई है अफज़ल की फांसी सरकार के गले की .क्या ऐसी सरकार की आरती उतारी जाए .जो प्रतिक्रिया भी देर से करती है क्रिया तो करती ही नहीं है .
बेनामी ने कहा…
बहुत सही कहा ...आतंकवाद की ना तो कोई जाती होती ना कोई धर्म ...
अरे जो काम ही अधर्म का करे उसका क्या धर्म ....
जो हमारे नेता अपने वोट बैंक के लिए आतकवाद को धर्म और जाती से जोड़ते है ...
वो अपनी घिनोनी राजनीती का गन्दा चेहरा दिखाते है ...
मै तो कहता हु उन्हें भी फांसी लगा दो ...
अफजल की फंसी देर से लिया मगर सही कदम है ...
-AC

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