जिंदगी की हैसियत

बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
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न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है .
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पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
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.नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.
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मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह  हमने हासिल की है .
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जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी ,
मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .
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शालिनी कौशिक 


[कौशल ]

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
सुन्दर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-06-2014) को "ख्वाहिश .... रचना - रच ना" (चर्चा मंच 1650) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Onkar ने कहा…
सुंदर ग़ज़ल
आशीष अवस्थी ने कहा…
बहुत ही सुंदर लेखन हैं आपका , बढ़िया गहरा अहसास दिलाती रचना शालिनी जी धन्यवाद !
I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
dr.mahendrag ने कहा…
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
ज़िन्दगी की हकीकतों से साबका कराती सुन्दर रचना

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