क्या राहुल सोनिया के कहने पर कुँए में कूदेंगी जयंती ?


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नईम अहमद ' नईम ' ने कहा है -
'' हथेली जल रही है फिर भी हिम्मत कर रहा हूँ मैं ,
  हवाओं से चिरागों की हिफाज़त कर रहा हूँ मैं .''
बिलकुल यही अंदाज़ दिखाते हुए पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने शुक्रवार ३० जनवरी २०१५ को कांग्रेस पार्टी छोड़ दी .राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्होंने जो किया उसके सम्बन्ध में तो उन्हें सही कहना गलत होगा किन्तु ये अवश्य कहना होगा कि ये करते हुए उन्होंने राष्ट्रपिता के ' सत्य ' के सिद्धांत का अवश्य पालन किया और वह यह कहते हुए कि ' मैंने कुछ गलत नहीं किया ' सही कह रही हैं जयंती नटराजन ,उन्होंने गलत नहीं किया और इसलिए अपने पिछले कर्मो के सम्बन्ध में जो उन्होंने राहुल गांधी के कहने पर किये उनके लिए तो उन्हें जेल जाने या फांसी चढ़ने का डर अपने मन से निकाल ही देना चाहिए और अब ये तो वक्त के ऊपर निर्भर है कि वह दिखाए कि वे सच की हिफाजत कर रही थी या स्वयं की .
   जयंती ने कहा कि उन्होंने परियोजनाओं को मंजूरी देने में कांग्रेस उपाध्यक्ष के निर्देश का पालन किया .नटराजन के मुताबिक राहुल के निर्देश पर उन्होंने वेदांत के प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं दी और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके रुख को सही बताया .ऐसे ही अदाणी परियोजना रोकने के मामले में भी जयंती नटराजन ने माना कि इस बारे में भी स्थानीय एन.जी.ओ.और लोगों की शिकायत राहुल गांधी के जरिये उनके पास पहुंचाई गयी थी और ये सब स्वयं स्वीकार कर जयंती स्वयं ही राहुल गांधी को सही साबित कर रही हैं .सुप्रीम कोर्ट द्वारा इनके उस रुख को सही बताना और जनता की शिकायतों का राहुल गांधी द्वारा इनके पास पहुँचाना निश्चित रूप में इनके लिए अपने कार्यों को सही साबित करने हेतु आवश्यक है और जब ये सही है तो सही काम कराने के लिए राहुल गांधी गलत कैसे हुए ?
    ऐसे ही ये कहती हैं कि उन्होंने परियोजनाओं को मंजूरी देने में कांग्रेस उपाध्यक्ष के निर्देश का पालन किया लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी उपेक्षा ,तिरस्कार व् अपमान किया .जल्दबाजी में बुलाये गए एक संवाददाता सम्मलेन में उन्होंने कहा कि मैंने सभी पर्यावरण मुद्दों पर केवल पार्टी लाइन और नियम पुस्तिका का पालन किया जबकि संविधान के अनुच्छेद ७५ के खंड [४] में प्रत्येक मंत्री संविधान की तीसरी अनुसूची के प्रारूप १ में राष्ट्रपति द्वारा जो शपथ ग्रहण करता है उसमे वह शपथ लेते हुए कहता है -
   '' मैं ,अमुक ईश्वर की शपथ लेता हूँ /सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ ,कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा ,मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा ,मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात ,अनुराग या द्वेष के बिना ,सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा। ''
    इसके साथ ही संघ का मंत्री तीसरी अनुसूची के प्रारूप २ में गोपनीयता की शपथ भी ग्रहण करता है ,जिसमे वह कहता है -
   ''मैं ,अमुक ,ईश्वर की शपथ लेता हूँ /सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ ,कि जो विषय संघ के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जायेगा अथवा मुझे ज्ञात होगा ,उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को ,तब के सिवाय जबकि मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो ,मैं प्रत्यक्ष अथवा  अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूँगा। ''
     ऐसे में जब जयंती मानती  हैं कि राहुल गांधी के निर्देशों को मानने में केबिनेट के भीतर और बाहर उनकी काफी आलोचना हुई थी तो उन्होंने संविधान में ली गयी शपथ को दरकिनार करते हुए वह कार्य क्यों किया जबकि वे केंद्र में जिम्मेदार मंत्री थी और मंत्री होने के कारण वे अपनी इन दोनों शपथ से बंधी हुई थी जिसके अनुसार उन्हें संविधान का पालन करना होता है न कि पार्टी लाइन या नियम पुस्तिका का और सोनिया गांधी या राहुल गांधी उनकी पार्टी के हाईकमान श्रेणी में थे संविधान की नहीं और वे कोई नौसिखिया मंत्री नहीं थी बल्कि अनुभवी खांटी श्रेणी की राजनीतिज्ञ व् अधिवक्ता हैं और सविधान को भली भांति जानती व् समझती हैं , इसलिए ऐसे में संविधान को दरकिनार कर वे अपनी पार्टी लाइन पर चल रही थी तो कैसे कह सकती हैं कि मैंने कुछ गलत नहीं किया ,अब कोई आपसे यह कहे कि कुँए में कूद जा तो क्या आप कूद जाओगे या किसी के कहने पर आप बैल के सामने खड़े होकर उससे कहने लग जाओगे कि आ बैल मुझे मार ,नहीं न फिर ऐसे में उनके कहने पर राहुल गांधी या सोनिया गांधी दोषी कैसे ? हाँ इतना अवश्य है कि वे ये कहकर कांग्रेस को एक सही पार्टी ही साबित कर रही हैं और सोनिया गांधी को श्रेष्ठ हाईकमान ,क्योंकि वे स्वयं ये मान रही हैं कि राहुल के निर्देशों का पालन करने पर भी सोनिया गांधी ने उनकी उपेक्षा ,तिरस्कार और अपमान किया ,इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से जयंती नटराजन ने सोनिया गांधी की भारतीय संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा ही साबित की है जो जयंती द्वारा राहुल के निर्देश मानने पर उनकी संविधान के प्रति ली गयी शपथ को दरकिनार करने में सोनिया की नाराजगी से प्रकट होती है और जयंती ने जिस पार्टी लाइन के लिए संविधान की शपथ को दरकिनार किया आज उसे छोड़ने का मन बना लिया वह भी तब जब पार्टी सत्ता से बाहर है और अपने दुर्दिन देख रही है और जयंती को पार्टी का माहौल घुटन भरा दिखा वह भी इस वक्त जब पार्टी सत्ता में नहीं है और उन्होंने इस्तीफा भी पार्टी से तब दिया उस वक्त के कार्यों के लिए जो सत्ता में रहते हुए किये थे और जिसके कारण सत्ता में पार्टी के रहते हुए ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और तब से लेकर अब तक उन्हें पार्टी में घुटन नहीं हुई थी .ऐसे में उनके लिए अपनी कार्यप्रणाली और बयानबाजी को नकारते हुए पार्टी के माहौल को घुटन भरा कहना उनके अवसरवादी राजनीतिज्ञ होने का ही प्रमाण देता है जो सत्ता से पार्टी की दूरी को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति का मोड़ दे रहा है .
    अपनी इस तरह की बयानबाजी से वे भले ही ऊपरी तौर पर सोनिया राहुल पर दोषारोपण कर रही हैं किन्तु भीतरी तौर  पर खुद को ही दोषी साबित कर रही हैं क्योंकि अगर कहीं भी कुछ गलत है तो वह जयंती की कार्यप्रणाली है जो संविधान के प्रति श्रद्धा निष्ठा की शपथ लेकर भी उसका पालन नहीं करती और अपने भय,पक्षपात ,अनुराग या द्वेष को अपने साथ रखते हुए अपनी पार्टी हाईकमान व् उपाध्यक्ष को दोषी दिखाने का यत्न करती है जिन दोनों का ही कृत्य स्वयं उनकी बयानबाजी से ही किसी दोष के घेरे में नहीं आता बल्कि उन्हें संविधान का सम्मान करने वाला और न्याय व् जनता के हित का हितेषी ही साबित करता है .ऐसे में सलीम अहमद ' सलीम' के शब्द इनके प्रलाप को अनर्गल साबित करने हेतु खरे साबित होते हैं ,जो कहते हैं -
 ''आग उगलते हुए सूरज से बगावत की है ,
  मोम के पुतलों ने कैसी यह हिमाकत की है .''

शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

टिप्पणियाँ

Anita ने कहा…
विचारणीय मुद्दा...

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