जख्म देकर जाएँगी.
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उलझने हावी हैं दिल पर कब तलक ये जाएँगी, जिंदगी लेके रहेंगी या तहीदस्त जाएँगी. है अजब अंगेज़ हाल-ए-दिल हमारा क्या कहें, मीठी बातें उनकी हमको खाक ही कर जाएँगी. भोली सूरत चंचल आँखें खींचे हमको अपनी ओर , फसलें-ताबिस्ता में ये यकायक आग लगा जाएँगी. रवां-दवां रक्स इनका है इसी जद्दोजहद में , कैसे भी फ़ना करेंगी ले सुकून जाएँगी. सोच सोच में व्याकुल क्या करेगी ''शालिनी'' जाते जाते भी उसे ये जख्म देकर जाएँगी. शालिनी कौशिक http://shalinikaushik2.blogspot.com/