प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े


[गूगल से साभार ]

''सियासत को लहू पीने की लत है,
    वर्ना मुल्क में सब खैरियत है .''
       ये पंक्तियाँ अक्षरश: खरी उतरती हैं सियासत पर  ,जिस आरक्षण को दुर्बल व्यक्तियों को सशक्त व्यक्तियों से  बचाकर पदों की उपलब्धता  सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था .जिसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक,सामाजिक ,शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े लोगों को देश की मुख्य  धारा  में लाना था उसे सियासत ने सत्ता बनाये रखने  के लिए ''वोट '' की राजनीति में तब्दील  कर दिया .
    सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण इलाहाबाद उच्च न्यायालय  ने ख़ारिज कर दिया था .इसी साल अप्रैल में उच्चतम  न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने के पूर्ववर्ती मायावती सरकार के निर्णय को ख़ारिज कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को बरक़रार रखा और अखिलेश यादव सरकार ने इस फैसले पर  फ़ौरन अमल  के निर्देश दिए थे किन्तु वोट कि राजनीति इतनी अहम् है कि संविधान के संरक्षक ''उच्चतम न्यायालय '' के निर्णय के प्रभाव को दूर करने के लिए विधायिका नए नए विधेयक लाती रहती है  और संविधान में अपना स्थान ऊँचा बनाने की कोशिश करती रहती है.जिस प्रोन्नति में आरक्षण को उच्चतम नयायालय  ने मंडल आयोग के मामले में ख़ारिज कर दिया था उसे नकारने के लिए संसद ने ७७ वां संशोधन अधिनियम पारित कर अनुच्छेद १६ में एक नया खंड ४ क जोड़ा जो यह उपबंधित  करता है -
 ''कि अनुच्छेद १६ में की कोई बात राज्य के अनसूचित जाति औ� A4 जनजाति के किसी वर्ग के लिए जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है प्रोन्नति के लिए आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित [वर्जित] नहीं करेगी.''
   और इसके बाद ८५ वां संविधान संशोधन अधिनियम २००१ द्वारा खंड ४क में शब्दावली ''किसी वर्ग के लिए प्रोन्नति के मामले में'' के स्थान पर ''किसी वर्ग के लिए प्रोन्नति के मामले में  परिणामिक श्रेष्ठता के साथ ''शब्दावली अंतःस्थापित की गयी जो इस संशोधन अधिनियम को १७ जून १९९५ से लागू करती है जिस दिन ७७ वां संशोधन अधिनियम लागू हुआ .इसका परिणाम यह होगा कि अनुसूचित जाति व् जनजातियों के अभ्यर्थियों की श्रेष्ठता १९९५ से लागू मानी जाएगी .पहली बार ऐसा भूतलक्षी प्रभाव का संशोधन संविधान से धोखाधड़ी का प्रत्यक्ष प्रमाण है.
के सी वसंत कुमार  के मामले में सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी थी कि अनुसूचित जाति व् अनुसूचित जनजाति का आरक्षण सन २००० तक चलाया जाये और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की कसौटी आर्थिक हो तथा प्रत्येक ५ वर्ष पर इस पर पुनर्विचार हो .
  भारत संघ बनाम वीरपाल चौहान [१९९५ ] ६ एस.सी.सी.६३४ में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया ''कि सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति के लिए ''जाति ''को आधार बनाया जाना संविधान के अनुच्छेद १६[४] का उल्लंघन है.
    अनुच्छेद १६ के अनुसार-
         ''राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी.''
  जिसका एक अपवाद १६[४] है जिसके अनुसार -
    ''राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्याधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है ,नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध कर सकता है 
   इस प्रकार खंड ४ के लागू होने की दो शर्ते हैं-
  १-वर्ग पिछड़ा हो :अर्थात सामाजिक व् शैक्षिक दृष्टि से ,
 2- उसे राज्याधीन पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व न मिल सका हो.
     केवल दूसरी शर्त ही एकमात्र कसौटी नहीं हो सकती .ऐसे में सरकारी सेवा में लगे  लोगों को पिछड़ा मानना सामाजिक रूप से उन लोगों के साथ तो अन्याय ही कहा जायेगा जो इनसे अधिक योग्यता रखकर भी सरकारी नौकरियों से वंचित हैं और इसके बाद प्रोन्नति में आरक्षण के लिए केंद्र सरकार का विधेयक लाने को तैयार होना सरकार का झुकना है और इस तरह कभी ममता बैनर्जी ,कभी करूणानिधि और कभी मायावती के आगे झुक सरकार अपनी कमजोरी ह� E0��सूचित जाति व् अनुसूचित जनजाति देश में विकास पाने के आकांक्षी हैं तो अन्य जातियां भी उन्नति की महत्वाकांक्षा रखती  हैं और एक लोकतंत्र तभी सफल कहा जायेगा जब वह अपने सभी नागरिकों से न्याय करे .पहले तो स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी आरक्षण लागू किया जाना ही गलत है इस पर प्रोन्नति में भी आरक्षण सरासर अन्याय  ही कहा जायेगा .यदि ये जातियां अभी तक भी पिछड़ी  हैं तो केवल नौकरी पाने तक ही सहायता ठीक है आगे बढ़ने के लिए तो इन्हें अपनी योग्यता ही साबित करनी चाहिए और सरकार को चाहिए की अपनी वोट की महत्वाकांक्षा में थोड़ी जगह  ''योग्यता की उन्नति'' को भी दे.नहीं तो योग्यता अंधेरों में धकेले जाने पर यही कहती नज़र आएगी जो ''हरी सिंह जिज्ञासु ''कह रहे हैं -'
                   ''अपने ही देश में हम पनाहगीर बन गए ,
                         गरीब गुरबां देश की जागीर बन गए ,
                   समझ नहीं आता कब बदलेगा यह परिवेश 
                          दिखाते रहे जो रास्ता राहगीर बन गए.''
                                                  शालिनी कौशिक 
                                                          [कौशल ]

टिप्पणियाँ

Shikha Kaushik ने कहा…
YOU ARE RIGHT .RESERVATION IS CURSE FOR GENERAL STUDENTS AND CANDIDATES .WELL WRITTEN .THANKS
virendra sharma ने कहा…
सब वोट बैंक का चक्कर है .इस या उस अल्प संख्यक /जाति समूह /बिरादरी /कबीले को खुश करने के लिए ही उस संविधान में संशोधन का प्रावधान वोट खोरों ने बना रख्खा है जिनके लिए संविधान एक रखैल है .सत्ता के ये टुकड़ खोर देश को टुकडा टुकडा कर खाना चाहतें हैं .मजेदार बात यह है गरीब गरीब ही बना हुआ है .गरीबों की मलाईदार परत ही आरक्षण की मलाई चाट रही है .अब एक परिवार में जो अनु-सूचित जाति का प्राणि डॉ बन गया ,मेडिकल कोलिज में प्रोफ़ेसर बन गया ,उसके बच्चों को आरक्षण क्यों ?और जब आरक्षण से नौकरी लग गई तो काम के मामले में,गुणवत्ता के मामले में पिछली पंक्ति के सरकारी नौकरों को आरक्षण क्यों ?.क्या मीरा कुमार अभी भी सामाजिक तौर पर पीछे समझी जायेंगी .उनके बच्चों के बच्चों के बच्चन को पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण क्यों ?
virendra sharma ने कहा…
सब वोट बैंक का चक्कर है .इस या उस अल्प संख्यक /जाति समूह /बिरादरी /कबीले को खुश करने के लिए ही उस संविधान में संशोधन का प्रावधान वोट खोरों ने बना रख्खा है जिनके लिए संविधान एक रखैल है .सत्ता के ये टुकड़ खोर देश को टुकडा टुकडा कर खाना चाहतें हैं .मजेदार बात यह है गरीब गरीब ही बना हुआ है .गरीबों की मलाईदार परत ही आरक्षण की मलाई चाट रही है .अब एक परिवार में जो अनु-सूचित जाति का प्राणि डॉ बन गया ,मेडिकल कोलिज में प्रोफ़ेसर बन गया ,उसके बच्चों को आरक्षण क्यों ?और जब आरक्षण से नौकरी लग गई तो काम के मामले में,गुणवत्ता के मामले में पिछली पंक्ति के सरकारी नौकरों को आरक्षण क्यों ?.क्या मीरा कुमार अभी भी सामाजिक तौर पर पीछे समझी जायेंगी .उनके बच्चों के बच्चों के बच्चन को पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण क्यों ?
आपने बहुत सही बात कही है .हमें सरकार के इस असवैंधानिक कदम का विरोध करना चाहिए .आपके इस लेख को फेसबुक पर 'हमारी आवाज' समूह में शेयर किया गया है .इस बेहतरीन लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
India Darpan ने कहा…
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई

इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।
DR. ANWER JAMAL ने कहा…
Nice.

हार्दिक शुभकामनाएं.
रविकर ने कहा…
उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।।
राजनीतिज्ञ का हित इसी में है कि लोग आपस में बटे रहें। जनता का हित इसी में है कि वे आपस में एकता बनाये रहें। आरक्षण का विरोध उस तबके के शिक्षित समुदाय से होना चाहिए जिन्हें इसका लाभ मिलने की संभावना हो। तभी बात सही मायने में बन पायेगी।
रविकर ने कहा…




प्रोन्नति-पैमाना बने, पिछला कौशल-कार्य |
इसमें आरक्षण गलत, नहीं हमें स्वीकार्य ||
केवल तुष्टीकरण को, करती है सरकार।
कुर्सी के ही वास्ते, यहाँ उमड़ता प्यार।।
वाणी गीत ने कहा…
कहीं तो रुकना होगा ...प्रताड़ित होने का लाभ लेते दूसरों को कब तक प्रताड़ित करते रहेंगे !
मगर लगता है कि नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कौन सुनेगा !
नेता लोग बस वोट बेंक के चक्कर में रहते हैं ... अगर इमानदारी से संविधान को लागू किया जाता तो आज ६५ सालों में स्थिति में सुधार आया होता ... न की आपसी वैमनस्य बढता ... रेसर्वेशन जरूरी है पर कब तक और किसके लिए ... इस पर इमानदारी से बहस की जरूरत है ...
आरक्षण अब वोट की राजनीति का हिस्सा बन गयी है .
एक गंभीर विषय पर सुंदर प्रस्तुति !
सुन्दर आलेख के लिए बधाई...

aarakshan ek behad samvedanhil mudda jarur hai par ek nye bat samne ubhar kar samne aa rhi hai vo yah hai ki"aarakshit varg me hi ek naya sawarn varg banta ja raha hai,aur puri takat se vah varg sangthit ho apne hi varg ke garibo ke shoshan ke chakravyuh ke tane-bane bunne me mashgul hai.abhi mai purvanchal ke gaon me kuch esa hi dekha,yah varg savarno se bhi ghatak var krne baj nhi aate"KHUDA JANE YE KIS BASTI SE AAYE HI,N JANE KESE KESE KAHAR DHAYE HAI,ERADE ENKE SAWARNO SE BHI SHATIR HAI,.......YE APNI HI BASTI KE APNE HI BHAEE HA...."

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