ऑनर किलिंग:सजा-ए-मौत की दरकार नहीं

ऑनर किलिंग:सजा-ए-मौत की दरकार नहीं 


''प्रेम''जिसके विषय में शायद आज तक सबसे ज्यादा लिखा गया होगा,कहा गया होगा ,कबीर दास भी कह गए-
''ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए''
देवल आशीष कहते हैं-
''प्यार कर्म ,प्यार धर्म प्यार प्रभु नाम है.''
     प्रेम जहाँ एक ओर कवियों ,लेखकों की लेखनी का प्रिय विषय रहा है वहीँ समाज में सभ्यता की राह में कांटे की तरह महसूस किया गया है और इसी कारण प्रेमी जनों को अधिकांशतया प्रेम की कीमत बलिदान के रूप में चुकानी पड़ी है किन्तु प्रेम की भी एक सीमा होती है और जो प्रेम सीमाओं में मर्यादाओं में बंधा हो उसे बहुत सी बार सम्मान सहित स्वीकृति भी मिली है ,किन्तु आज प्रेम का एक अनोखा रूप सामने आ रहा है और इसकी परिणिति कभी भी समाज की स्वीकृति हो ही नहीं सकती क्योंकि प्रेम का यह रूप मात्र वासना का परिचायक है  इसमें प्रेम शब्द की पवित्रता का कोई स्थान नहीं है और इस प्रेम को कथित प्रेमी-प्रेमिका के परिजन कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते और इसके कारण उनकी भावनाएं इस कदर उत्तेजना का रूप ले लेती हैं जिसे ''ऑनर किलिंग ''या सम्मान के लिए हत्या कहा जाता है.
८ अगस्त २०१२ को लगभग सभी समाचार पत्रों में सुर्ख़ियों के रूप में छाये ''ऑनर किलिंग में बाप बेटे को सजा-ए-मौत ''समाचार ने एक बार फिर इस शब्द ''प्रेम''की अनैतिकता की परतों को उधेड़ा है .इस हौलनाक वारदात को अंजाम देकर फंसी की सजा पाने वाले ६६ साल के मैथलीशरण और उसके बेटे हरेन्द्र ने २८ दिसंबर २००७ की रात तीन बजे गाँव की दलित बस्ती में खली पड़े मकान में बलकटी से ताबड़तोड़ वार कर प्रेमी युगल को  मौत के घाट उतार दिया था .क़त्ल हुआ मैथलीशरण की अविवाहिता बेटी गीता[२२]और उसके घर के सामने रहने वाले विजय के शादीशुदा बेटे सुनील[३२]का .दोनों को एक साथ देखकर आपा खो बैठे मैथलीशरण ने दोनों बेटों की मदद से उनको बेरहमी से मार डाला था.
यूँ तो क़त्ल अपराध है और अपराधी को सजा हमेशा मिलनी चाहिए किन्तु ऑनर किलिंग एक ऐसा अपराध है जिसमे न्यायालय को यह हमेशा देखना होगा कि अपराधी अपराध वृति  का है या उससे ये अपराध परिस्थितिवश हो गया है .
धारा  ३०० भा .दंड .सहिंता ऐसे अपराध को हत्या कहती है जिसमे क़त्ल किया गया है किन्तु वह भी कुछ अपवादों के अध्यधीन रहकर ही -
  धारा-३०० -एतस्मिन पश्चात् अपवादित दशाओं को छोड़कर अपराधिक मानव वध हत्या है यदि वह कार्य ,जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गयी है ,मृत्यु कारित करने के आशय से की गयी हो.
          और इसी धारा के अपवाद-१ में कहा गया है -
 ''अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी उस समय जबकि वह गंभीर व् अचानक प्रकोपन से आत्म-संयम की शक्ति से वंचित हो ,उस व्यक्ति की जिसने कि वह प्रकोपन दिया था ,मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटना वश कारित करे.
      उपरोक्त प्रावधान की नज़र से यदि हम देखते हैं तो हम्मे से कोई भी मैथलीशरण व् उसके बेटों की हरकत को फाँसी के काबिल नहीं मान सकता .''प्रेम ''हमेशा से समाज व् परिजनों की नज़रों में खटकता रहा है किन्तु सुनील व् गीता का सम्बन्ध प्रेम कहा ही नहीं जा सकता .अभी हाल ही में अनुराधा बाली उर्फ़ फिजा की दर्दनाक मौत ऐसे प्रेम का ही परिणाम है जिसमे किसी और से विवाहित चंद्रमोहन से प्रेम करना अनुराधा को आत्म-बलिदान के रूप में भुगतना पड़ा .कोई बाप-भाई ये नहीं चाहेगा कि उनकी बेटी -बहन जीवन में ऐसे मोड़ से गुज़रे .ऐसे में गलत स्थिति में फँसी अपनी बेटी-बहन व् उसके कथित प्रेमी के प्रति उनका वही रवैया होगा जो इनका था. 
  इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की नज़ीर पेश की गयी हैं जिनमे ९ मई २०११ की एक नज़ीर में सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग को ''विरल से विरलतम''की श्रैणी में माना है और ये कहा है कि मृत्यु दंड का दंडादेश सर्वथा अपेक्षित माना जाये ताकि समाज को इस वीभत्स अत्याचार से निजात दिलाई जा सके.''और एक नज़ीर में सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय''धनञ्जय चटर्जी बनाम स्टेट ऑफ़ पश्चिम बंगाल १९९४'' को प्रस्तुत किया गया जिसमे कहा गया -''कि न्यायालयों को अपराधियों के अधिकारों की चिंता से कहीं अधिक चिंता सम्पूर्ण समाज की सुरक्षा की करनी चाहिए .''
ऐसे में जो प्यार सुनील व् गीता का था क्या उसे सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से सही कहा जायेगा?इसमें या तो गीता की जिंदगी उजड्नी थी या शादीशुदा सुनील की शादीशुदा जिंदगी .ऐसे मामलों को सुप्रीम कोर्ट स्वयं ''विरल से विरलतम की श्रैणी ''नहीं दे सकती .ये मामला तो उसी तरह की श्रेणी में आता है जिसमे उच्चतम न्यायालय ने ऐसे अपराध को ''हत्या की कोटि में न आने वाले अपराधिक मानव वध माना ''है.
     उत्तर प्रदेश राज्य बनाम लखमी १९९८ में लखमी ने अपनी युवा पत्नी ओमवती जो दो बच्चों की माँ थी की हत्या की .अभियुक्त ने स्वयं स्वीकार किया कि उसकी पत्नी कि मृत्यु मानव वध है .साक्ष्य दर्शाते हैं कि जब अभियुक्त खेत से अपने घर वापिस आया तो उसने अपनी पत्नी को अन्य व्यक्ति रमे के साथ कामुकता में देखा .उसने गंभीर तथा अचानक प्रकोपन में पत्नी की हत्या की .सत्र न्यायाधीश ने उसे दोषी पाया किन्तु उच्च न्यायालय ने दोषमुक्त किया .उच्चतम न्यायालय ने भी उसे धारा ३०० के अपवाद-१ का लाभ पाने का हक़दार माना और उसकी दोषसिद्धि धारा ३०० से परिवर्तित कर धारा ३०४ के भाग १ के अधीन कर दी गयी जिसमे अधिकतम सजा आजीवन कारावास या दस वर्ष की अवधि का कारावास है .
  

चन्दन सिंह बनाम राजस्थान राज्य में भी राजस्थान उच्च न्यायालय ने गंभीर प्रकोपन को तथ्य का विषय माना और कहा कि न्यायालय उस वर्ग ,समुदाय व् समाज के रीति रिवाजों तथा आदतों पर विचार करेगा जिसका कि अभियुक्त सदस्य है .और ऐसे में यदि हम भारतीय समाज का आकलन करें तो ये सबके सामने है कि प्रेम को धर्म परिवर्तन द्वारा निकाह में परिवर्तित करने वाले चंद्रमोहन को फिजा उर्फ़ अनुराधा बाली को छोड़कर पत्नी के पास वापस लौटना पद गया .जिस तरह का प्रेम सुनील व् गीता कर रहे थे उसे यहाँ की फ़िल्मी दुनिया ,जिसमे धर्मेन्द्र प्रकाश कौर को छड हेमा मालिनी को अपना लेते हैं या बोनी श्रीदेवी से बांध जाते हैं में या फिर कुछ उच्चवर्गीय परिवारों में ही मान्यता मिल सकती है .आम मध्यवर्गीय भारतीय जन मानस में तो प्रेम को स्वीकृति है ही नहीं और उसपर भी ऐसे प्रेम को जिसमे कथित प्रेमी प्रेमिका पहले से ही किसी और से विवाहित हैं ऐसे प्रेम को कोई स्वीकृति यहाँ क्या कहीं भी नहीं मिल सकती.और इसका परिणाम अंतत ऑनर किलिंग के रूप में सामने आता है और मैं नहीं समझती कि ऐसे प्यार के दुश्मन समाज के दुश्मन कहें जायेंगे.किसी की जिंदगी या मौत किसी के हाथ में नहीं है ऐसे में इन्होने अपराध तो किया है किन्तु सामाजिक सुरक्षा को देखता हुए इनका कदम फांसी के फंदे की ओर नहीं बढाया जा सकता है .ये धारा ३०० के अपवाद १ के लाभ के हक़दार हैं और न्यायालय को इन सभी परिस्थितियों पर विचार अवश्य करना चाहिए .
 कविवर दुष्यंत की ये पंक्तियाँ यहाँ सही कही जाएँगी-
''कैसे मंज़र नज़र आने लगे हैं ,
  गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं ,
    अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ,
     ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं .''
                           शालिनी कौशिक 
                                [कौशल]

टिप्पणियाँ

क्रोध संयत करना कठिन हो जाता है, इन परिस्थितियों में..
Rajesh Kumari ने कहा…
शालिनी जी बहुत ही गंभीर मुद्दे पर आपने विचार और तत्थ्य व्यक्त किये मैं आपसे पूर्णतः सहमत हूँ जहां मैं एक रेपिस्ट की फांसी की सजा के हक में हूँ वहीँ ओनारकिलिंग में फांसी के पक्ष में नहीं हूँ कारण वाही हो सकते हैं तो आपने बताये हैं आज कल तलवार दम्पती को भी एक अपने नजरिये से सोचकर देखती हूँ तो उनसे सहानुभूति भी होती है और वो बात बेटी की हर माँ या पिता सोच सकता है इस लिए ओनर किलिंग में फांसी का समर्थन नहीं करुँगी हाँ हत्या हत्या है तो उम्रकैद तो होगी ही
kshama ने कहा…
Apne yahan qaanon behad purane aur ghise pite ho gaye hain. Lekin ye bhee sach hai,ki,qaanoon ek had tak hee apna kaam kar sakta hai. Jab tak samaj kee wikrut mansikta badaltee nahee,qaanoon kuchh nahee kar sakta.
राजेश सिंह ने कहा…
नैतिक क्या है और अनैतिक क्या यह प्राचीन काल से बहस का विषय रहा है सांस्कृतिक वैविध्य से उफनते इस देश में जहाँ बहुपत्नी के साथ साथ बहुपति प्रथा सुस्थापित रूप से विद्यमान है पितृ सतात्मक समाज के साथ ऐसे समाज भी है जहाँ सत्ता माता के हाथ में होती है .कुछ आदिवासी समाजों में जहाँ बहुपति प्रथा है शिशु के जैविक पिता की घोषणा शिशु को जन्म देने वाली माता उसके पिता को धनुष बाण देकर करती है वहा यह सुनिश्चित करना की नैतिक संबंधो की सीमा कहाँ समाप्त होकर अनैतिकता प्रारंभ होती है सदैव विवादस्पद और भ्रामक होता है यह इससे तय किया जाना चाहिए की ऐसे संबंधों से किसी अन्य के अधिकारों और स्वतंत्रता को हानि तो नहीं हो रही है.जैसे विवाहित पुरुष के अविवाहित कन्या के साथ प्रणय सम्बन्ध निःसंदेह एक स्त्री के अधिकारों पर घातक विपरीत प्रभाव डालते हैं,विषय विषद और बहस लम्बी है व्यक्तिगत यौन स्वतंत्रता और अधिकारों के हामी एक राष्ट्रीय नेता ने तो यह तक कहा कि-बलात्कार और वादाखिलाफी को छोड़कर स्त्री-पुरुष के बीच सारे सम्बन्ध जायज माने जाने चाहिए .
vastav me maulik prashn yh hai ki pyar or sex ko ek hi man kar hm uski vyakhya krne lg jate hai,honour killing vead bkvas or vikrit mastisk ki upj hai.pyar ko sima me to bandha hi nahi ja skta pr pyar krne valo ko maryada hanan ka koe hk nhi hai,"samman hatya ki ek hi sja hai o hai SAJAYEMAUT" ACCHI VAICHARIK PRASTUTI
विचारणीय बातें .....ऐसी परिस्थितियां पूरी समझ और दूरदर्शिता से संभाली जाएँ तो सभी का भला हो.......
bkaskar bhumi ने कहा…
शालिनी जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'कौशल' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 10 अगस्त को 'ऑनर किलिंग : सजा-ए-मौत की दरकार नहीं' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव
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Vinay ने कहा…
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ

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Suman ने कहा…
सोचनीय बाते लिखी है ...
बढ़िया आलेख !
Asha Joglekar ने कहा…
हम दोगले हैं । राधा क़ष्ण के प्रेम को बखानते है । हमारे बच्चे या समाज के बच्चे ये करें तो कठोर से कठोर सजा देते हैं ।

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