भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
''भारत पाक का एकीकरण कश्मीर समस्या का एकमात्र हल -एम्.काटजू ''
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश से ऐसी बयानबाजी की उम्मीद शायद नहीं की जा सकती किन्तु ये शब्द सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के ही हैं जो उन्होंने दक्षिण एशिया मीडिया आयोग के भारतीय चैप्टर की ओर से आयोजित संगोष्ठी के संबोधन में कहे .
भारत पाक का विभाजन ब्रिटिश हुकूमत की ''बाँटो और राज करो ''की नीति के तहत हुआ किन्तु कश्मीर राज्य कोई समस्या था ही नहीं इसे समस्या बनाया पाकिस्तान ने .कश्मीर के महाराजा हरीसिंह की तटस्थ नीति की अवहेलना करते हुए पाकिस्तान का कश्मीर को सैनिकों द्वारा हड़पने की योजना बनाना इसे समस्या के रूप में जन्म देना था . शेख अब्दुल्लाह ने पाकिस्तान से बचाव हेतु भारत से मदद मांगी और इस तरह से भारत को इस मामले में दखल देना पड़ा और तब भारत सरकार ने मदद के नाम पर कश्मीर को भारत में विलय की शर्त रखी जिसे महाराजा हरीसिंह ने मान लिया .ऐसे में एक स्वतंत्र राज्य ने अपनी इच्छा से भारत में विलय स्वीकार कर लिया था और भारतीय सेना भी पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने वाली थी तब संयुक्त राष्ट्र में ये मामला भारत सरकार द्वारा उपस्थित करना इसे आज तक समस्या बनाये है क्योंकि अमेरिकी प्रभुत्व के अधीन संचालित संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी सही भूमिका का निर्वाह नहीं कर रहा है जिसके चार्टर के अनुच्छेद २[४] में सदस्य राज्यों द्वारा एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता तथा स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने का सिद्धांत है .इसलिए ऐसे में कश्मीर समस्या को सुलझाने हेतु भारत पाक एकीकरण की बात व्यर्थ है क्योंकि पाक ऐसा राष्ट्र है जो अभी तक अविकसित है या यूँ कहें कि बर्बाद है तो गलत नहीं होगा और चूंकि एक बर्बाद व्यक्ति या राष्ट्र दूसरे व्यक्ति या राष्ट्र की बर्बादी ही सोचता है ऐसे में पाकिस्तान से किसी सद्भावना की आशा व्यर्थ है .भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल ने कहा भी था ,''कि यदि भारत पाक का विभाजन न हुआ होता तो भारत सरकार में हर मंत्रालय में एक पाकिस्तान होता .''उनका तात्पर्य भी पाकिस्तान की ईर्ष्या- द्वेष की नीति से था और कितना सही था ये हम भी महसूस कर सकते हैं .
मीडिया में निरंतर प्रकाशित समाचारों के अनुसार भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं तथापि इनकी श्रृद्धा पाकिस्तान में ही है जबकि वहां भारतीय मुसलमानों को ''काफ़िर ''कहा जाता है .कुछ लोगों की ''आँखों देखी और कानो सुनी ''कहें तो भारत-पाक क्रिकेट इसका जीता जागता सबूत है .यदि भारत पाक को हरा देता है तो पाक में रह रहे हिंदूओं की मुसीबत आ जाती है और यदि पाक भारत को हरा देता है तो भारत में रह रहे मुसलमाओं की जश्न की घडी आ जाती है .पूर्व न्यायाधीश एम् .काटजू जिसे ''दिमाग में भूसा ''की संज्ञा देते हैं उसे भारतीय जनता का एक बड़ा वर्ग धर्म के प्रति कट्टरता का नाम देती है .लोगों का मानना है कि अपने धर्म का व्यक्ति भले ही अपराध में संलिप्त हो ,निंदनीय चरित्र का हो तब भी ये अन्य धर्म के शरीफ ,ईमानदार उम्मीदवार की तुलना में ''इस्लाम खतरे में है ''सुन उसे ही वोट देते हैं .
ऐसे में जब लोगों के दिल ही न मिलते हों तो देश का मिलन किसी एक समस्या का समाधान न होकर अनेकों नई समस्याओं को जन्म देने वाला होगा .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश से ऐसी बयानबाजी की उम्मीद शायद नहीं की जा सकती किन्तु ये शब्द सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के ही हैं जो उन्होंने दक्षिण एशिया मीडिया आयोग के भारतीय चैप्टर की ओर से आयोजित संगोष्ठी के संबोधन में कहे .
भारत पाक का विभाजन ब्रिटिश हुकूमत की ''बाँटो और राज करो ''की नीति के तहत हुआ किन्तु कश्मीर राज्य कोई समस्या था ही नहीं इसे समस्या बनाया पाकिस्तान ने .कश्मीर के महाराजा हरीसिंह की तटस्थ नीति की अवहेलना करते हुए पाकिस्तान का कश्मीर को सैनिकों द्वारा हड़पने की योजना बनाना इसे समस्या के रूप में जन्म देना था . शेख अब्दुल्लाह ने पाकिस्तान से बचाव हेतु भारत से मदद मांगी और इस तरह से भारत को इस मामले में दखल देना पड़ा और तब भारत सरकार ने मदद के नाम पर कश्मीर को भारत में विलय की शर्त रखी जिसे महाराजा हरीसिंह ने मान लिया .ऐसे में एक स्वतंत्र राज्य ने अपनी इच्छा से भारत में विलय स्वीकार कर लिया था और भारतीय सेना भी पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने वाली थी तब संयुक्त राष्ट्र में ये मामला भारत सरकार द्वारा उपस्थित करना इसे आज तक समस्या बनाये है क्योंकि अमेरिकी प्रभुत्व के अधीन संचालित संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी सही भूमिका का निर्वाह नहीं कर रहा है जिसके चार्टर के अनुच्छेद २[४] में सदस्य राज्यों द्वारा एक दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता तथा स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने का सिद्धांत है .इसलिए ऐसे में कश्मीर समस्या को सुलझाने हेतु भारत पाक एकीकरण की बात व्यर्थ है क्योंकि पाक ऐसा राष्ट्र है जो अभी तक अविकसित है या यूँ कहें कि बर्बाद है तो गलत नहीं होगा और चूंकि एक बर्बाद व्यक्ति या राष्ट्र दूसरे व्यक्ति या राष्ट्र की बर्बादी ही सोचता है ऐसे में पाकिस्तान से किसी सद्भावना की आशा व्यर्थ है .भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल ने कहा भी था ,''कि यदि भारत पाक का विभाजन न हुआ होता तो भारत सरकार में हर मंत्रालय में एक पाकिस्तान होता .''उनका तात्पर्य भी पाकिस्तान की ईर्ष्या- द्वेष की नीति से था और कितना सही था ये हम भी महसूस कर सकते हैं .
मीडिया में निरंतर प्रकाशित समाचारों के अनुसार भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक हैं तथापि इनकी श्रृद्धा पाकिस्तान में ही है जबकि वहां भारतीय मुसलमानों को ''काफ़िर ''कहा जाता है .कुछ लोगों की ''आँखों देखी और कानो सुनी ''कहें तो भारत-पाक क्रिकेट इसका जीता जागता सबूत है .यदि भारत पाक को हरा देता है तो पाक में रह रहे हिंदूओं की मुसीबत आ जाती है और यदि पाक भारत को हरा देता है तो भारत में रह रहे मुसलमाओं की जश्न की घडी आ जाती है .पूर्व न्यायाधीश एम् .काटजू जिसे ''दिमाग में भूसा ''की संज्ञा देते हैं उसे भारतीय जनता का एक बड़ा वर्ग धर्म के प्रति कट्टरता का नाम देती है .लोगों का मानना है कि अपने धर्म का व्यक्ति भले ही अपराध में संलिप्त हो ,निंदनीय चरित्र का हो तब भी ये अन्य धर्म के शरीफ ,ईमानदार उम्मीदवार की तुलना में ''इस्लाम खतरे में है ''सुन उसे ही वोट देते हैं .
ऐसे में जब लोगों के दिल ही न मिलते हों तो देश का मिलन किसी एक समस्या का समाधान न होकर अनेकों नई समस्याओं को जन्म देने वाला होगा .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
। लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ!
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
कश्मीर समस्या जो आलमी बने रहे ताउम्र ,राष्ट्रीय होना उन्हें लघु होना दिखना ही लगा जिन्हें .खाब देखना अच्छी बात है लेकिन खाब देखो कलाम वाले प्रयत्न करो उन्हें पाने का ,खाब देखते देखते
पंडित जी को झटका तब लगा जब हिंदी चीनी भाई भाई के किरदारों ने उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया भारत पे हमला बोल दिया .कानपुर की तब हथियार और असलाह बनाने वाली फक्ट्री में जूते बनते
थे ....छोडिये शालिनी जी बात आपके आलेख की हो रही थी जो हर मायने में एक संतुलित और तार्किक आलेख है .लघु और सुन्दर .
कश्मीर समस्या जो आलमी बने रहे ताउम्र ,राष्ट्रीय होना उन्हें लघु होना दिखना ही लगा जिन्हें .खाब देखना अच्छी बात है लेकिन खाब देखो कलाम वाले प्रयत्न करो उन्हें पाने का ,खाब देखते देखते
पंडित जी को झटका तब लगा जब हिंदी चीनी भाई भाई के किरदारों ने उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया भारत पे हमला बोल दिया .कानपुर की तब हथियार और असलाह बनाने वाली फक्ट्री में जूते बनते
थे ....छोडिये शालिनी जी बात आपके आलेख की हो रही थी जो हर मायने में एक संतुलित और तार्किक आलेख है .लघु और सुन्दर .
शालिनी जी
बहुत गंभीर विषय पर लेखनी चलाई है …
एकीकरण की बात करने वाले एम्.काटजू महोदय को भारत अथवा पाकिस्तान के नागरिकों के मन में दबी उस तरह की किसी तीव्र इच्छा और छ्टपटाहट का एहसास हुआ था क्या जो बर्लिन दीवार के दोनों तरफ़ 1990 से कुछ पहले पूरे विश्व ने देखी थी … और जिसके परिणामस्वरूप जर्मनी का पुनर्एकीकरण संभव हुआ !
पाकिस्तान की कोई बड़ी औक़ात भी नहीं है , हमारे नपुंसक शासन ने इसे व्यर्थ तरज़ीह दे'कर सर चढ़ाया हुआ है … और इस क्लीवत्व का प्रसार हम बांग्लादेश के परिप्रेक्ष में देख कर फ़ैसला कर सकते हैं कि भिखारी और कायरों के आगे झुकते जाने से भारत के मूल नागरिकों को और कितना ख़ामियाजा उठाने के लिए विवश होना पड़ सकता है !!
हक़ीक़त यह है कि विभाजन के बाद से मात्र आतंकवाद में तरक्की करने के अलावा पाकिस्तान हर मोर्चे पर चारों खाने चित हुआ है । दिन ब दिन उसकी स्थिति सरेंडर को तैयार बैठे गुर्गे जैसी होती जा रही है । पाकिस्तान पर नियंत्रण करने की सामर्थ्य वाला शासन जिस दिन भारत में आ जाएगा ,पाकिस्तान स्वयं समर्पण कर देगा …
वंदे मातरम् !
शुभकामनाओं सहित…
राजनीतिक हितों का संरक्षण करना ही रहा है .यदि संयुक्त राष्ट्र एक तटस्थ संस्था होती ,काश्मीर समस्या निपट जाती .काटजू साहब की इस बात में सारांश है :जाति से ,धर्म से आगे निकलके
बहुलांश सोच ही नहीं पाता लेकिन 90 %को बे -वकूफ कहना उनका भाषिक दारिद्र्य ही है .शब्दों का एक संस्कार ,भाषा की एक गरिमा होती है जिसकी हदों को काटजू लांघ गए हैं .
जहाँ तक काटजू साहब का प्रश्न है ,न्यायाधीश के रूप में उनका एक सुनाम है इसलिए लोग उनसे आजके राजनीतिज्ञ जैसे भाषा की उम्मीद नहीं करते - आपका लेख विचारोत्पदक है.
जहाँ तक काटजू साहब का प्रश्न है ,न्यायाधीश के रूप में उनका एक सुनाम है इसलिए लोग उनसे आजके राजनीतिज्ञ जैसे भाषा की उम्मीद नहीं करते - आपका लेख विचारोत्पदक है.