कौन मजबूत? कौन कमजोर ?

 
इम्तिहान
एक दौर
चलता है जीवन भर !
सफलता
पाता है कोई
कभी थम जाये सफ़र !
कमजोर
का साथ
देना सीखा,
ज़रुरत
 मदद की
उसे ही रहती .
सदा साथ
नर का
देती रही ,
साया बन
संग उसके
खड़ी है रही ,

परीक्षा की घडी
आये पुरुष की
नारी बन सहायक
सफलता दिलाती ,
मगर नारी
चले मंजिल की ओर
पीछे उसके दूर दूर तक
वीराना रहे ,
और अकेली
वह इम्तिहान में
सफलता पाती !
फिर कौन मजबूत?
कौन कमजोर ?
दुनिया क्यों समझ न पाती ?




    शालिनी कौशिक 

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-04-2013) के चर्चामंच - बुधवारीय चर्चा ---- ( 1217 साहित्य दर्पण ) (मयंक का कोना) पर भी होगी!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
वह इम्तिहान में
सफलता पाती !
फिर कौन मजबूत?
कौन कमजोर ?
दुनिया क्यों समझ न पाती ?

बेहतरीन रचना,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.
पुरुष प्रधान समाज जब इओन बातों पे ध्यान देना शुरू करेगा तभी उन्नति करेगा ...
Tamasha-E-Zindagi ने कहा…
बढ़िया रचना कविता | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
Anita ने कहा…
सही कहा है..
Bhola-Krishna ने कहा…
शालिनी जी , दुनिया न समझेगी तो भुगतेगी उसका परिणाम !अभिचान जारी रखिये ! शुभकामनाएं !
Manoj Kumar ने कहा…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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