श्रेय-एक लघु कथा

श्रेय-एक लघु कथा

''राजू .....राजू .....''मद्धिम सी पड़ती आवाज़ में अनुपम बाबू जी ने अपने पोते को पुकारा ,.....हाँ दादा जी .....कहकर तेज़ी से राजू बाहर से भागता हुआ आया ,.....बाबू जी ने उसे आँख खोलकर देखा ,कुछ कहते कहते रुक गए ,....दादा जी ,''आप कुछ कहिये तो जो आप कहेंगें मैं पूरा करूँगा ,अपने प्राण देकर भी पूरा करूँगा ,आप कहिये तो .''...नहीं रे!तेरे प्राण नहीं चाहियें ,तू ऐसा मत कह ,..कहते कहते बाबू जी रोने लगे .....''दादा जी !कहिये तो आप एक बार कहिये तो मैं अपनी पूरी शक्ति लगाकर भी आपकी बात को पूरी करूँगा ,कहिये तो ..''
''राजू ! ....जी दादा जी .......काम मुश्किल तो है पर मैं चाहता हूँ कि मैं ये कोठी तेरे और अपने धेवतो के नाम कर जाऊं ,तेरे लिए ये काम मुश्किल है क्योंकि इस सबका मालिक वास्तव में तू ही है ,पर मेरे वे धेवते .....उनका क्या होगा राजू .....वे तो बिल्कुल नाकारा हैं ,अगर उन्हें घर भी नहीं मिला तो कहाँ ठोकर खाते फिरेंगे फिर आज तो सब तेरे हाथ में है कल को तेरी शादी हो जायेगी तब तू अगर विवश हो गया तब क्या होगा ?''राजू सब ध्यान से सुन रहा था ...दादा जी के चुप होने पर गहरी साँस लेते हुए बोला ,दादा जी ,जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा .''
और अगले दिन ही राजू ने वकील साहब को बुलाकर दादा जी के कहे मुताबिक उनकी वसीयत करा दी .अब दादा जी खुश थे और राजू को ढेरों आशीर्वाद दे रहे थे और धेवते इसका सारा श्रेय दादा जी को दे रहे थे .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

Http://meraapnasapna.blogspot.com ने कहा…
heart touching....uff....amazing...:-))

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