खिले कमल है कीचड में ही -हाथ से नाल जुडी है .


आधी बांह का कुरता पहने ,उलटे हाथ घडी है ,
सिर पर पगड़ी पहन सुनहरी ,त्यौरी चढ़ी पड़ी है .
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अपने घर को छोड़ के भागे ,बाप का माल हड़पने ,
काम पड़े पर कहे तुनककर ,मेरी नहीं अड़ी है .
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खुद के काम के ढोल बजाये ,और में कमी निकाले ,
अपनी बात की तारीफों की आदत इसे बड़ी है .
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शीशे के घर में रहकर ये ,मारे कंकड़ पत्थर ,
भूल गया खुद उसकी मूरत ,लाठी लिए खड़ी है .
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अपने दम आगे बढ़ने की ,हिम्मत नहीं है जिसमे ,
हाथ बांधकर वह हस्ती ही ,करने नक़ल बढ़ी है .
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जिस ताकत ने किया मुल्क का ,नाम जहाँ में ऊँचा ,
उसे मिटाने की सौगंध ले ,थामी हाथ छड़ी है .
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ख़तम अगर करने की कुव्वत ,ख़तम करो मक्कारी ,
जो सत्ता की दहलीजों में,दीमक लगी कड़ी है .
.................................................................
खिले कमल है कीचड में ही ,सबने यहाँ है देखा ,
प्रभ चरण छूने को ''शालिनी'' हाथ से नाल जुडी है .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

रोचक व सामयिक रचना
लाजबाब,बेहतरीन प्रस्तुति...!शालिनी जी ...

RECENT POST -: पिता
बेनामी ने कहा…
nice
Rajendra kumar ने कहा…
बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट प्रस्तुति, धन्यबाद .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2014) को "गाँडीव पड़ा लाचार " (चर्चा मंच-1521) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मन के - मनके ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति
मन के - मनके ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति
मन के - मनके ने कहा…
सुंदर प्रस्तुति

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