जख्म देकर जाएँगी.
जिंदगी लेके रहेंगी या तहीदस्त जाएँगी.
है अजब अंगेज़ हाल-ए-दिल हमारा क्या कहें,
मीठी बातें उनकी हमको खाक ही कर जाएँगी.
भोली सूरत चंचल आँखें खींचे हमको अपनी ओर ,
फसलें-ताबिस्ता में ये यकायक आग लगा जाएँगी.
रवां-दवां रक्स इनका है इसी जद्दोजहद में ,
कैसे भी फ़ना करेंगी ले सुकून जाएँगी.
सोच सोच में व्याकुल क्या करेगी ''शालिनी''
जाते जाते भी उसे ये जख्म देकर जाएँगी.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
बहुत ही खुबसूरत शब्दों का समायोजन....
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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जिंदगी लेके रहेंगी या तहीदस्त जाएँगी.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.....
बधाई |
जाते जाते भी उसे ये जख्म देकर जाएँगी.
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल बहुत ही अच्छा लगा पढ़ कर!
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आज पूरे 36 घंटे बाद ब्लॉग पर आया हूँ!
धीरे-धीरे सब जगह पहुँच जाऊँगा!
जिंदगी लेके रहेंगी या तहीदस्त जाएँगी.
है अजब अंगेज़ हाल-ए-दिल हमारा क्या कहें,
मीठी बातें उनकी हमको खाक ही कर जाएँगी.
Kya baat hai! Gazab kee panktiyan!
जाते जाते भी उसे ये जख्म देकर जाएँगी.
khoobsoorat gazal ka meetha zakhm!!
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
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